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दुनिया जबकि अभी भी कोविड महामारी (COVID pandemic) से जूझ रही है, एक और वायरल संक्रमण मंकीपॉक्स (monkeypox) के तेजी से फैलने की खबर खतरे की घंटी बजाने के लिए काफी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार एक महीने पहले – इसका पहला मामला 12 मई को सामने आया था– कम समय में मंकीपॉक्स 23 देशों में फैल गया है, जहां यह एंडेमिक नहीं है.
हालांकि, हर कोई इस सवाल का जवाब मिलने के इंतजार में खामोश नहीं बैठा है. कई देश बुरे हालात का सामना करने के लिए पहले से ही चेचक की वैक्सीन (smallpox vaccines) का स्टॉक करने में जुट हैं.
क्या ऐसा करना जरूरत से ज्यादा सावधानी दिखाना है, जिसकी वजह कोविड है?
क्या हम शुरुआती चेतावनी के संकेतों की अनदेखी कर पुरानी गलतियों को दोहराएंगे?
कितनी आशंका है कि मंकीपॉक्स एक और ग्लोबल पैंडेमिक की वजह बन सकती है?
इस पर एक्सपर्ट्स का क्या कहना है?
मंकीपॉक्स फीवर मंकीपॉक्स वायरस की वजह से होता है. यह नाम फफोले (blisters) या ‘पॉक्स’ (pox) से आया है, जो कि अक्सर संक्रमण के साथ होता है.
इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. सत्यजीत रथ फिट से बात करते हुए कहते हैं, “हालांकि इसे 'मंकीपॉक्स' कहा जाता है, मगर यह रोडेंट्स (चूहे, गिलहरी वगैरह) के साथ-साथ दूसरे जानवरों में भी पाया जाता है.”
हालांकि मंकीपॉक्स से मरीज आमतौर पर सिर्फ हल्का बीमार होता है, और आमतौर पर कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है, मगर यह कुछ मामलों में जानलेवा हो सकती है– खासकर 6 महीने से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों में.
WHO के अनुसार मंकीपॉक्स ज्यादातर मध्य और पश्चिम अफ्रीका के उष्णकटिबंधीय वर्षावन इलाकों (tropical rainforest area) में होता है. इन इलाको में यह बीमारी कई सालों से एंडेमिक (endemic) है.
मंकीपॉक्स के इस समय चर्चा में होने की वजह यह है कि पिछले कुछ हफ्तों में यह बीमारी दुनिया के दूसरे इलाकों में फैल गई है, जिनमें से कई मरीजों की इन इलाकों में कोई ट्रैवेल हिस्ट्री नहीं है.
हालांकि इसका जवाब काफी हद तक एक पहेली है, मगर एक्सपर्ट की अलग-अलग अनुमान हैं.
डॉ. रथ कहते हैं, “मुझे नहीं लगता कि यह इस समय ‘अचानक’ फैल रहा है. पहले भी जब-तब यह छोटे स्तर पर फैलती रही है.”
दूसरी ओर, जाने-माने महामारी विज्ञानी डॉ. जे. पी. मुलियिल की राय है कि बीमारी का मौजूदा फैलाव इंसानी व्यवहार के पैटर्न में बदलाव का नतीजा ज्यादा है.
वह फिट को बताते हैं, “जाहिर तौर पर यह आउटब्रेक– अभी भी एक बहुत ही मामूली फैलाव है– उन लोगों से जिन्हें एंडेमिक क्षेत्रों से कुछ खतरा है, उनके संपर्क के बाद उन लोगों के साथ करीबी संपर्क होता है, जो इन क्षेत्रों में नहीं गए हैं.”
IISER पुणे की इम्यूनोलॉजिस्ट और वैज्ञानिक डॉ. विनीता बल का कहना है, “मुझे लगता है कि वायरल से होने वाली संक्रामक बीमारियों, खासकर जूनोटिक वायरल संक्रमणों (zoonotic viral infections) के प्रति बहुत ज्यादा चौकन्ना होना दुनिया भर में आशंकाओं को जन्म दे रहा है.”
कोविड के शुरुआती दिनों में ट्रांसमिशन दर और वायरस के संभावित असर को कम करके आंका गया था– ऐसा माना जाता था कि इसकी ट्रांसमिशन क्षमता कम होती है, और यह सिर्फ बहुत करीबी संपर्क से ही फैलती है. कुछ ने यह भी दलील दी थी कि कोविड सिर्फ बड़ी बूंदों से फैलता है.
आज हम जानते हैं कि तब चीजें कैसे आगे बढ़ीं.
तो, क्या हम इसी तरह के हालात को मंकीपॉक्स के मामले में दोहराया जाता देख रहे हैं?
डॉ. जे.पी. मुलियिल कहते हैं कि दोनों की तुलना कतई नहीं की जा सकती है. “कोविड एक पूरी तरह नई बीमारी थी.”
वह कहते हैं कि हमें कोविड के बारे में एकदम कुछ भी नहीं पता था, शुरुआत में कई सिर्फ अटकलें थीं, जो नए तथ्य सामने आने के बाद खत्म हो गईं.
डॉ. मुलियिल कहते हैं, “इस मामले में, हम इस बीमारी के बारे में पहले से ही बहुत कुछ जानते हैं.”
डॉ. विनीता बल के अनुसार, एक खास फर्क यह है कि, “यह डीएनए टाइप (DNA type) का एक पुराना वायरस है, जो आरएनए वायरस (RNA viruses) की तुलना में आमतौर पर कम म्यूटेट होता है, जिससे SARS-CoV2 संबंधित है.”
डॉ. मुलियिल कहते हैं, इसी वजह से DNA म्यूटेशन में आमतौर पर कम गलतियां होती हैं.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह कहते हैं, “इस (मंकीपॉक्स) में सेकेंडरी अटैक की दर बहुत कम है. इसलिए आपको संक्रमित होने से पहले लंबे समय तक करीबी संपर्क में रहने की जरूरत होगी.”
डॉ. मुलियिल कहते हैं, “पब्लिक हेल्थ के नजरिये से इसके बहुत बड़े पैमाने पर फैलने की संभावना नहीं है.”
WHO ने भी पिछले हफ्ते, कुछ इसी तरह का दावा किया था.
हालांकि वायरस के बारे में हम जितना जानते हैं, उससे पता चलता है कि इसके वैश्विक महामारी बनने की ज्यादा संभावना नहीं है. डॉ. बल कहती हैं, “इसे काबू में रखने के लिए गहराई से निगरानी, संक्रमित व्यक्तियों पर पाबंदियां लगाने जैसे कदमों की जरूरत है.”
डॉ. रथ के अनुसार, असल समस्या, जो कोविड-19 महामारी से हम पर आई है, वह यह है कि “भारत में और असल में दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था की पहुंच हकीकत में कुशल और दूरदराज इलाकों तक नहीं हैं और ऐसी बीमारियों की रियल टाइम सर्विलांस की सावधानीपूर्वक निगरानी की व्यवस्था नहीं है.”
वह कहते हैं, “और हम आने वाले समय के लिए इन कमियों को दुरुस्त करने के लिए वास्तविक हालात को देखते हुए पर्याप्त रूप से योजना नहीं बना रहे हैं.”
जब चेचक के टीके (smallpox vaccines) बनाए गए, तो इन्हें मंकीपॉक्स के खिलाफ भी असरदार पाया गया. तबसे 1980 में चेचक के खात्मे के बाद से इन वैक्सीन को बनाना बंद कर दिया गया था.
हालांकि 2019 में इन वैक्सीन में से एक जेन्निऑस (Jynneos) को खासकर मंकीपॉक्स के खिलाफ इस्तेमाल के लिए FDA द्वारा मंजूरी दी गई थी.
अब, यूके सहित कुछ प्रभावित देशों ने खतरे के ज्यादा जोखिम वाले लोगों के लिए स्मालपॉक्स वैक्सीन की पेशकश शुरू कर दी है.
मुलियिल से यह पूछे जाने पर कि क्या मंकीपॉक्स को रोकने के लिए स्मालपॉक्स की वैक्सीन लगाना एक सही उपाय है, उनका कहना था “मुझे उम्मीद है कि वे इसे लेकर खिलवाड़ नहीं करेंगे.”
“मैंने स्मालपॉक्स वैक्सीन लगवाई है. सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं इस समय 72 साल का हूं. कम उम्र के लोगों को इसे लगवाने का मौका नहीं मिला. यह सभी को दी गई थी क्योंकि स्मालपॉक्स एक जानलेवा बीमारी है, लेकिन ईश्वर का शुक्र है कि यह खत्म हो चुकी है!”
डॉ. मुलियिल विस्तार से समझाते हुए कहते हैं कि वैक्सीन के साइड इफेक्ट ‘कोई मजाक नहीं’ हैं, जिनमें तेज बुखार से लेकर दिमाग में भ्रम (delirium) तक होना शामिल है.
इसके अलावा, हालांकि WHO ने एक बयान में कहा कि स्मालपॉक्स और मंकीपॉक्स दोनों की रोकथाम के लिए अबनई अपडेटेड वैक्सीन को मंजूरी दे दी गई है, उन्होंने अभी के हालात में देशों को वैक्सीन का भंडार करने और पूरी आबादी को वैक्सीन लगवाने की आपाधापी से परहेज करने को कहा है.
आप खुद को मंकीपॉक्स से संक्रमित होने से कैसे बचाएंगे?
WHO कहता है, ‘साफ-सफाई बनाए रखें, और सुरक्षित सेक्स करें'
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