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पश्चिम बंगाल: मुर्शिदाबाद अस्पताल में 14 शिशुओं की मौत के बाद जांच के आदेश

Murshidabad: प्रारंभिक जांच में कुपोषण और जन्म के समय कम वजन को मौतों का अंडरलाइंग कारण बताया गया है.

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<div class="paragraphs"><p>मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल</p></div>
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मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल

(फोटो: विकिमीडिया कॉमन्स/फिट हिंदी)

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पश्चिम बंगाल के बरहामपुर शहर के मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में तीन दिन के अंदर कम से कम 14 शिशुओं की मौत हो गई है. इसके बाद पश्चिम बंगाल स्वास्थ्य विभाग ने मामले की जांच के लिए एक टीम भेजी है.

रिपोर्ट के मुताबिक, 6 से 8 दिसंबर के बीच मरने वाले 14 बच्चों में से नौ शिशुओं और एक बच्चे की शुक्रवार को सिर्फ 24 घंटों के भीतर मौत हो गई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार एमएमसीएच के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. भोलानाथ आइच ने कहा, "मरने वाले सात बच्चों की उम्र एक से चार दिन के बीच थी. दूसरे शिशुओं की उम्र नौ महीने के भीतर थी."

10 बच्चों में सबसे बड़ा बच्चा कथित तौर पर लगभग ढाई साल का था.

क्या हुआ? प्रेस से बात करते हुए, मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एमएमसीएच) के प्रिंसिपल अमित दान ने कहा, "प्रारंभिक जांच से पता चलता है कि ज्यादातर मामलों में, अंडरलाइंग कारण कुपोषण और जन्म के समय कम वजन था. जबकि उनमें से एक मृत पैदा हुआ था, दो शिशु को जन्मजात बीमारियां थीं और बाकियों को सेप्सिस इन्फेक्शन था."

अस्पताल ने यह भी आरोप लगाया है कि इनमें से सात शिशुओं को पहले से ही गंभीर हालत में दूसरे छोटे अस्पतालों से मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया था.

“यहां लाए गए सभी बच्चों का वजन पहले से ही कम था और बाद में उनकी मृत्यु हो गई. उन्हें बचाना मुश्किल था क्योंकि उन्हें इस अस्पताल तक पहुंचाने में 5-6 घंटे लग गए.”
अमित दान, प्रिंसिपल- मुर्शिदाबाद मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एमएमसीएच)
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आगे क्या? अस्पताल के अधिकारियों के मुताबिक, घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई गई है.

अधिकारियों के मुताबिक, टीम कोलकाता से भेजी जा चुकी है और जल्द ही अपनी रिपोर्ट सौंपेगी. स्वास्थ्य विभाग के एक सीनियर अधिकारी ने कहा, "रिपोर्ट मिलने के बाद ही हम मौतों के कारण की पहचान कर पाएंगे."

एमएमसीएच सरकार द्वारा चलाया जाने वाला मेडिकल कॉलेज है और इसमें सिक न्यूबॉर्न केयर यूनिट (SNCU) में लगभग 60 बेड हैं. हालांकि, अधिकारियों के अनुसार, यह क्षमता से अधिक चल रहा है और फिलहाल यहां 100 से अधिक बच्चों का इलाज किया जा रहा है.

(इंडियन एक्सप्रेस और हिंदुस्तान टाइम्स के इनपुट के साथ लिखा गया)

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