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Children With Disabilities: बच्चों में डिसेबिलिटी अगर शुरुआती स्टेज में पता चल जाए और माता-पिता वक्त रहते इस पर कदम उठा लें, तो विकलांग बच्चों के जीवन में एक बहुत बड़ा अंतर आ सकता है. इससे न सिर्फ बच्चों की मुश्किलें कम होंगी बल्कि वो बेहतर जीवन जी सकेंगे.
इस आर्टिकल में हम आपको बच्चों से जुड़ी डिसेबिलिटी के बारे में कुछ बेहद जरुरी बातें बतायेंगे.
ऐसे कौन से लक्षण होते हैं, जिसे देख शिशुओं के माता-पिता को सतर्क हो जाना चाहिए? डिसेबिलिटी की वजह से बच्चों को किन परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है? अगर किसी बच्चे को सुनने में परेशानी आए तो उसे किस तरह की देखभाल की जरूरत है? फिट हिंदी ने एक्सपर्ट्स से जाना इन सवालों के जवाब.
आजकल ज्यादातर बच्चों को नियमित रूप से पीडियाट्रिशियन के पास ले जाया जाता है. ये डॉक्टर विजिट्स शिशुओं की डेवलपमेंट पर नजर रखने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होते हैं. शहरों के प्राइवेट हॉस्पिटल में ही नहीं बल्कि शहर और गांव के सरकारी हॉस्पिटल में भी 6, 10 और 14 हफ्तों पर वैक्सीनेशन विजिट होते हैं.
डेवलपमेंट के कुछ प्रमुख पहलुओं की बात करें, तो उम्र के खास मोड़ पर एक खास माइलस्टोन पूरा करना महत्वपूर्ण होता है. आइये ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण माइलस्टोन्स के बारे में जानते हैंः
2 महीने पर- सोशल स्माइल यानी जब आप बच्चे की आंखों में झांककर देखते हैं, तो वह आपको देखकर मुस्कुराता है, हालांकि कोई आवाज नहीं निकालता.
4 महीने पर- सिर स्थिर होने लगता है और हर पोजिशन में सीधा तना रहता है.
6 महीने पर- हाथों के बीच वस्तुओं की अदला-बदली सीख लेता है, अपना नाम पुकारे जाने पर रिस्पॉन्स देता है और पीछे से आने वाली आवजों पर सिर घुमाकर देखता है (हालांकि अभी उनका विजन फील्ड विकसित हो रहा होता है).
8 महीने पर- बिना कोई खास सहारा लिए बैठने लगता है और पीठ सीधे टिका सकता है.
9 महीने पर- दो अलग-अलग अक्षरों को जोड़कर तुतलाना सीखता है, जैसे ‘दादा-मामा‘ वगैरह कहना सीखता है (हालांकि यह जरूरी नहीं कि वह किसी खास व्यक्ति को संबोधित करने वाले शब्दों को बोलने लगे).
1 साल पर- सहारा लेकर खड़ा होता है और फर्नीचर के इर्द-गिर्द घूमने लगता है, कुछ कदम बढ़ाना सीखता है.
अगर आपका बच्चा संभावित उम्र तक बताई गई बातों में से कोई भी माइलस्टोन नहीं छू सका है, तो आपको अपने पीडियाट्रिशियन से जरूर बात करनी चाहिए.
डॉ. पूनम सिदाना कहती हैं कि कुछ महत्वपूर्ण रिसोर्स उपलब्ध हैं, जिनकी मदद से शिशुओं के डेवलपमेंट का मूल्यांकन किया जा सकता है, कुछ ऐप्स भी हैं, जो आपके शिशु के डेवलपमेंट और माइलस्टोन को ट्रैक करती हैं.
इस सवाल के जवाब पर डॉ. पूनम सिदाना फिट हिंदी से कहती हैं, "प्रीमैच्योर शिशुओं के मामले में यह ध्यान दें कि पिडियाट्रिशियन ज्यादातर पहले दो वर्षों के लिए “करेक्शन उम्र” का इस्तेमाल करते हें. इसका मतलब यह है कि वे शिशु की उम्र की गणना उसकी वास्तविक जन्मतिथि से न कर उसकी अनुमानित जन्म तिथि (EDD) से करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि प्रीमैच्योर शिशुओं को डेवलपमेंट के मामले में दूसरे बच्चों की बराबरी करने के लिए अधिक समय लगता है".
डेवलपमेंट वास्तव में, एक बहुत बड़ा विषय है जिसमें किसी बच्चे के डेवलपमेंट को प्रभावित करने वाली कई परिस्थतियां शामिल होती हैं. ये शारीरिक, मेंटल, न्यूरोलॉजिकल भी हो सकती हैं और इनकी वजह से जीवन भर प्रभावित करने वाले रिजल्ट्स भी सामने आ सकते हैं.
शारीरिक जटिलताओं के मामले में, सेरीब्रल पैल्सी का जिक्र होता है. इसमें मांसपेशियों में जकड़न और मूवमेंट पर असर पड़ता है, जो आमतौर पर हाथ या पैर को प्रभावित करती हैं, आधे या कई बार पूरे शरीर को भी प्रभावित कर सकती है.
इसी तरह से विजन और हियरिंग इम्पेयरमेंट में सीमित दृष्टि समस्याओं से लेकर पूर्ण नेत्रहीनता (blindness) और हियरिंग प्रॉब्लम हो सकती है, जिसके लिए चश्मे, स्पेशल एक्सेसरीज, मोबिलिटी ट्रेनिंग या हियरिंग एड्स की जरूरत हो सकती है.
विकास संबंधी परेशानियों से जूझने वाले शिशुओं को लर्निंग, मेमोरी रिटेंशन और प्रॉब्लम-सॉल्विंग इशूज जैसी परेशानियां हो सकती हैं, जो उनके एकेडमिक या प्रोफेशनल जीवन पर असर डाल सकती हैं.
एएसडी से ग्रस्त बच्चों को स्पेश्यलाइज़्ड थेरेपी और इंटरवेंशन की जरूरत हो सकती है ताकि वे उनके लक्षणों और लाइफ क्वालिटी में सुधार हो सके. विकास संबंधी समस्याओं से ग्रस्त बच्चों में दूसरी कई बिहेवियरल परेशानियां भी हो सकती हैं, जैसे कि हाइपरएक्टिविटी, इम्पल्स विटी या इमोशनल डीरेग्यूलेशन और इन मामलों में थेरेपी की आवश्यकता हो सकती है.
हियरिंग प्रॉब्लम किस हद तक गंभीर है और उसका कारण क्या है, यह पता लगाना जरुरी है. कुछ के मिडल इयर में समस्या होती है, जिसे हियरिंग एड्स की मदद से दूर किया जा सकता है जबकि कुछ को कॉकलियर इंप्लांट्स की जरूरत होती है. इन इंप्लांट्स को सजर्री की मदद से कानों में फिट किया जाता है और ये मंहगे भी हो सकते हैं, लेकिन इनके रिजल्ट्स बेहद शानदार होते हैं, खासतौर पर तब जबकि इन्हें जल्दी इंप्लांट किया जाए.
इसमें शामिल हैं:
माता पिता का सपोर्ट और मार्गदर्शन, जो कि बेहद महत्वपूर्ण है
हियरिंग एड और कॉक्लियर इम्प्लांट का इस्तेमाल
स्पीच थेरेपी
इंटीग्रेटेड एजुकेशन सिस्टम
सुनने की शक्ति के स्तर के हिसाब से विशेष शिक्षा सेवाएं
प्रोफेशनल हेल्प और समय-समय पर फॉलो अप
देखभाल का स्तर बच्चों की खास जरूरतों के हिसाब से होता है और समय के साथ बदलता भी रहता है.
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