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नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) ने नीट अंडर-ग्रेजुएट की प्रवेश परीक्षा के लिए अधिकतम उम्र सीमा हटा दी है. परीक्षा के वर्ष के 31 दिसंबर तक 18 वर्ष की आयु पूरी करने वाले उम्मीदवार परीक्षा में बैठने के पात्र होंगे.
यह नियम 2022 की परीक्षा के साथ लागू हो जाएगा.
सीबीएसई ने 2017 में एक नोटिफिकेशन जारी कर सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए परीक्षा में बैठने की अधिकतम उम्र सीमा 25 वर्ष तय की थी.
एसी, एसटी और ओबीसी कैंडिडेट के लिए अधिकतम उम्र सीमा 30 साल निर्धारित की गई थी.
समाचार एजेंसी ANI के मुताबिक एनएमसी के सेक्रेट्री डॉ. पुलकेश कुमार ने 9 मार्च 2022 को नेशनल टेस्टिंग एजेंसी के सीनियर डायरेक्टर डॉ. देवव्रत के दफ्तर को भेजे कम्यूनिकेशन में इस बदलाव की जानकारी दी है.
इसमें कहा गया है, "21 अक्टूबर 2021 को एनएमसी की चौथी बैठक में यह फैसला किया गया कि नीट अंडर-ग्रेजुएट कोर्स के लिए प्रवेश परीक्षा में बैठने के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र की सीमा नहीं होनी चाहिए.
''इसलिए रेग्युलेशंस ऑन ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन 1997 के नियमों में संशोधन कर दिया गया है.''
इससे पहले कई बार सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्ट में परीक्षा के लिए निर्धारित अधिकतम उम्र के मानदंड को चुनौती दी गई थी.
नेशनल मेडिकल कमीशन यानी कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग, 33 सदस्यों का एक भारतीय रेगुलेटरी बाडी है, जो चिकित्सा शिक्षा और चिकित्सा पेशेवरों को नियंत्रित करता है. 25 सितंबर 2020 को भारतीय चिकित्सा परिषद के स्थान पर इसका गठन हुआ.
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग चिकित्सा योग्यताओं को मान्यता देता है, मेडिकल स्कूलों को मान्यता देता है, चिकित्सकों को पंजीकरण अनुदान देता है, और चिकित्सा पद्धति की निगरानी करता है और भारत में चिकित्सा बुनियादी ढांचे का आकलन भी करता है.
फिट हिंदी ने मेडिकल क्षेत्र से जुड़े कुछ चिकित्सक और डॉक्टर बनने की इच्छा रखने वाले स्टूडेंट्स से नीट अंडर-ग्रेजुएट की प्रवेश परीक्षा के लिए अधिकतम उम्र सीमा हटा देने पर उनकी प्रतिक्रिया जानने की कोशिश की.
इसी वर्ष मेडिकल में दाखिला लेने वाली सलोनी कहती हैं, ”मेरे हिसाब से इस फैसले का असर पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों होगा. पॉजिटिव असर ये होगा कि तनाव कम हो जाएगा अधिकतम आयु सीमा हटने से. कोशिश करते रहने का सुनहरा मौका हाथ में रहेगा. साथ ही जो किसी मजबूरी और उम्र सीमा पार कर जाने के कारण डॉक्टर बनने का सपना पूरा नहीं कर पाए थे अब वो भी इसे सच करने की कोशिश में जुट जाएँगे. इसका नेगेटिव असर हमारी सोच पर पड़ सकता है. अधिकतम उम्र सीमा नहीं रहने पर हर साल परीक्षा देते रहने वाली मानसिकता बनी रहेगी. जिसकी वजह से हम लाइफ में आगे नहीं बढ़ पाएंगे”.
वहीं मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहे आदित्य ने भी सलोनी की बात से सहमत होते हुए इस फैसले से खुशी व्यक्त की है, पर इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि इसका एक नुकसान ये भी होगा कि हर साल परीक्षार्थियों की संख्या बढ़ेगी, जिससे प्रतियोगिता और भी मुश्किल हो जाएगी. विदेश में मेडिकल की पढ़ाई करने वालों के लिए भी यह फैसला काफी मददगार साबित होगा.
सफदरजंग हॉस्पिटल, दिल्ली के सीनियर रेजिडेंट, डॉ निरंजन जादव कहते हैं, “डॉक्टर बनने का सफर बहुत लंबा होता है और अगर इस सफर की शुरुआत देर से होगी तो इसका प्रभाव वर्क-लाइफ बैलेन्स पर पड़ेगा”.
“मैं 31 साल का, अपने पीजी (Post Graduation) के अंतिम वर्ष में हूँ. कई बार लगातार 3 दिनों तक बिना घर गए मरीजों को देखता और सर्जरी करता रहता हूँ. थक जाता हूँ. सोचिए जो लेट से बड़ी उम्र में यहां आएँगे तो उनका क्या होगा?”
डॉ निरंजन के पूछे गए इस सवाल का जवाब फिट हिंदी ने IMA के पूर्व प्रेसिडेंट और पारस एचएमआरआई हॉस्पिटल, पटना के युरॉलजी, नेफरोलोजी और ट्रैन्स्प्लैंटेशन के डायरेक्टर, डॉ अजय कुमार से पूछा.
इस पर उनका कहना था “अगर कोई कैंडिडेट फिट नहीं होगा, तो वो NEET UG परीक्षा पास नहीं कर पाएगा”.
“NMC ने बहुत सही कदम उठाया है. इससे कई लोगों को मदद मिलेगी. पैसों की किल्लत, समय का आभाव या दूसरी जिम्मेदारियों के कारण जो लोग डॉक्टर बन कर समाज की सेवा करने का अपना सपना पूरा नहीं कर पाए थे, उनके लिए ये सुनहरा अवसर है. इससे शहरों के साथ-साथ गाँवों और दूर दराज के इलाकों के मेधावी छात्र/छात्राओं को मौका मिलेगा" ये कहा डॉ अजय कुमार ने.
“अगर कोई 30 वर्ष की आयु में मेडिकल क्षेत्र में आते हैं, तो पूरी पढ़ाई खत्म करते-करते 50 साल की उम्र तक वो सीखते ही रहेंगे. प्रैक्टिस और अनुभव बेहद जरूरी है, इस फील्ड में” ये कहना है फोर्टिस हॉस्पिटल में सीटीवीसी के डायरेक्टर व एचओडी, डॉ उदगीथ धीर का.
डॉ उदगीथ धीर ने इस फैसले को जहां ‘लेट ब्लूमरस’ के लिए फायदेमंद बताया है, वही ‘सुपर स्पेशीऐलिटी एरा’ की ओर बढ़ती मेडिकल दुनिया के लिए उचित नहीं ठहराया है. उनके अनुसार भारत को एक्स्पर्ट डॉक्टरों की जरुरत है, जो इस अधिकतम आयु सीमा को हटाने से नहीं मिलने वाली है.
कोविड के दौर ने हमें बताया कि देश में चिकित्सा से जुड़े सामानों का घोर आभाव है. ऐसे में इन सुविधाओं को युद्ध स्तर पर बढ़ाने की जरुरत है. वहीं दूसरा सबसे बड़ा पहलू ये सामने आया कि दवा और चिकित्सा साधन उपलब्ध रहने के बावजूद अगर ट्रेंड स्वास्थ्यकर्मियों की कमी हो, तो कोई भी संकट ज्यादा विकराल रूप ले सकता है.
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