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कोरोना:1 हफ्ता, 600 से ज्यादा जिले- कोई मौत नहीं, क्या हैं संकेत 

600 जिलों में एक हफ्ते में कोई जान नहीं गई है लेकिन फिर भी सावधानी क्यों जरूरी है

कौशिकी कश्यप
फिट
Updated:
600 जिलों में एक हफ्ते में कोरोना से कोई जान नहीं गई लेकिन फिर भी सावधानी क्यों जरूरी है?
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600 जिलों में एक हफ्ते में कोरोना से कोई जान नहीं गई लेकिन फिर भी सावधानी क्यों जरूरी है?
(फोटो: फिट हिंदी)

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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्षवर्धन ने 15 फरवरी को जानकारी साझा की जो राहत की खबर मानी जा सकती है. पिछले 7 दिनों में देश के 188 जिलों में कोविड-19 का कोई भी नया केस सामने नहीं आया है.

वहीं, कोरोना के एक्टिव केसेज में गिरावट के साथ ही एक सप्ताह में 602 जिलों में कोरोना संबंधी एक भी मौत का मामला सामने नहीं आया. ये आंकड़ा 10 फरवरी तक का है. यहां तक कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में कुछ दिन ऐसे बीते जब कोरोना से कोई मौत रिकॉर्ड नहीं की गई.

वहीं, बीते एक महीने से देश में रोजाना कोरोना मामलों की संख्या 15 हजार से कम दर्ज हो रही है और करीब डेढ़ महीने से मौतों का आंकड़ा 200 से नीचे दर्ज हो रहा है. आंकड़े भले ही सुधरती तस्वीर पेश कर रहे हों लेकिन सावधानी बेहद जरूरी है, वरना ये तस्वीर कभी भी बदल सकती है. इसे हम महाराष्ट्र, केरल और ब्रिटेन के उदाहरण से समझ सकते हैं.

महाराष्ट्र में 15 जनवरी से नए मामलों में आ रही गिरावट को देख कर कोरोना से राहत की उम्मीद बन रही थी, तो पिछले हफ्ते अचानक नये मामलों में बढ़ोतरी से साफ हो रहा है कि महामारी अभी खत्म होने की कगार पर नहीं है. महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री राजेश टोपे ने कहा, "मुझे लगता है कि कोरोना के मामले कई कारणों से बढ़ रहे हैं, जिसमें लोकल ट्रेनों को शुरू करना भी शामिल है."

जाहिर तौर पर लॉकडाउन स्थायी उपाय नहीं है. व्यापारिक और शैक्षणिक संस्थान भी खुल गए हैं. लेकिन लॉकडाउन और पाबंदियों से निकलने और वैक्सीनेशन ड्राइव शुरू होने से हम कोरोना वायरस को लेकर बेफिक्र नहीं हो सकते हैं.

16 फरवरी को 42 दिनों बाद महाराष्ट्र में फिर से कोरोना के मामले बढ़ने लगे हैं. एक बार फिर से महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा कोरोना के नए मामले सामने आए. अब तक केरल में सबसे ज्यादा कोरोना के मामले सामने आ रहे थे लेकिन महाराष्ट्र ने केरल को पीछे छोड़ दिया है. सोमवार के दिन महाराष्ट्र में 3365 नए कोरोना के मामले सामने आए जबकि केरल में ये आंकड़ा 2884 का था. महाराष्ट्र में कोरोना का ये आंकड़ा बीते 30 नवंबर के बाद सबसे बड़ा आंकड़ा माना जा रहा है.

बात करें केरल की तो कोरोना महामारी पर नियंत्रण को लेकर इस राज्य की काफी तारीफ हुई थी. लेकिन जनवरी में वहां भी दूसरे राज्यों की तरह संक्रमण के मामले लगातार बढ़ने लगे. राज्य सरकार इस पर अंकुश नहीं लगा पा रही है. दिसंबर के बाद से राज्य में औसतन हर दिन कोरोना संक्रमण के 5000 से ज्यादा मामले सामने आए, कुछ दिनों में आंकड़ा 6000 को भी पार कर गया.

मई मे जब पहली बार लॉकडाउन में ढील दी गई, तो केरल में केसेज की दैनिक गिनती जून के पहले सप्ताह तक 100 के अंदर रह गई थी. उस समय तक, महाराष्ट्र में एक दिन में 2,000 से अधिक मामले आ रहे थे. दिल्ली और तमिलनाडु जैसे राज्यों में हर दिन 1,000 से अधिक मामलों का पता चल रहा था.

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पिछले महीने, केरल में पॉजिटिविटी दर 12% से अधिक थी, जिससे अधिकारियों को राज्य भर में कोविड के मानदंडों को कसने के लिए मजबूर होना पड़ा. हालांकि, पॉजिटिविटी दर 13 फरवरी को घटकर 7% से नीचे हो गई.

लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि 14 फरवरी को केरल में कोरोना वायरस संक्रमितों के नए मामलों ने राज्य में 10 लाख का नंबर पार कर दिया. महाराष्ट्र के बाद ये दूसरा राज्य है, जिसने इतने सारे मामले दर्ज किए हैं.

रविवार को, पूरे देश में 1.37 मामले सामने आए उनमें से सिर्फ केरल से 63,484 एक्टिव केस थे.

मुंबई में इंटरनल मेडिसिन एक्सपर्ट और ‘The Coronavirus: What You Need to Know About the Global Pandemic’ के लेखक डॉ स्वप्निल पारिख कहते हैं, "चिंता का कारण कभी दूर नहीं हुआ."

उन्होंने कहा कि पाबंदियों में सख्ती और ढील से दूसरे देशों में कोरोना की कई लहर देखी गई है और ये अपेक्षित है.

बता दें, यूके में कोरोना वायरस के नए वेरिएंट ने मुश्किलें पैदा की. क्रिसमस और पाबंदियों में ढील भी एक वजह बनी. वहां हालात बिगड़ गए और देश को वापस सख्त लॉकडाउन में जाना पड़ा.

एक रिपोर्ट के मुताबिक 4 जनवरी को कोविड संक्रमित 27,000 लोग अस्पताल में थे- ये आंकड़ा पिछले साल अप्रैल में महामारी के पीक के समय भर्ती लोगों की तुलना में 40% ज्यादा था.

डॉ पारिख के मुताबिक, एक पैथोजन के ट्रांसमिशन की डिग्री तीन मुख्य कारकों पर निर्भर करती है: एजेंट, होस्ट और पर्यावरण, और इन तीनों का मिला-जुला असर. जबकि एजेंट (वायरस) का नया म्यूटेटिंग वेरिएंट अपने आप में चिंता का कारण है, बदलते तापमान के साथ-साथ इसके जवाब में हमारा व्यवहार संक्रमण के प्रसार में एक प्रमुख भूमिका निभाता है.

“जब तापमान में गिरावट होती है, तो ये वायरस को तेजी से फैलने देता है. ये तब भी होता है, जब आर्द्रता विशेष रूप से हाई या लो होती है.”
डॉ स्वप्निल पारिख

दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन में सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुमित रे कहते हैं,

“सिर्फ इसलिए कि हमारे मामले अभी कम हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि फिर से बढ़त नहीं होगी. लेकिन हमें शहरों के भीतर छोटे क्षेत्रों के बड़े सीरोपॉजिटिविटी डेटा का विश्लेषण करने की जरूरत है और इस डेटा को सार्वजनिक करने की जरूरत है. एक संभावना है कि कुछ क्षेत्र अच्छे स्तर पर पहुंच गए हैं और वहां कम मामले होंगे - लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि मामलों में एक और उछाल नहीं दिख सकता. आपको सावधान रहना होगा.”

अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर और वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील कहते हैं “मेरा मानना है कि हमें अभी भी सावधान रहना होगा, हम पहले से ही जानते हैं कि वेरिएंट्स डेवलप हो रहे हैं - क्या होगा अगर कल एक वेरिएंट डेवलप हो जो इन वैक्सीन से बच जाए? ये अभी तक नहीं हुआ है, लेकिन ये संभव है. इसलिए ये अभी खत्म नहीं हुआ है.”

वैक्सीन आने और कोरोना के नए मामलों में गिरावट के कारण एक तरह की लापरवाही आई है. मास्क, फिजिकल डिस्टेन्सिंग, सैनिटाइजेशन जैसे सेफ्टी प्रोटोकॉल को नजरअंदाज किया जा रहा है. ये चीजें नई लहर को न्योता देने जैसी हैं.

भारत अभी भी वैश्विक स्तर पर कोरोना के सबसे ज्यादा मामलों में दूसरे नबंर पर है.

भले ही देश में 16 जनवरी से वैक्सीनेशन अभियान शुरू हो चुका है, लेकिन ये अभी सिर्फ हेल्यकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स के लिए है. कुल मिलाकर वैक्सीन अभी हमारी पहुंच से दूर है. कोरोना महामारी साल 2020 के साथ पीछे नहीं छूटी है. हमें अभी भी वायरस से खतरा है और इसलिए सभी सावधानियों को पालन करना जरूरी है.

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Published: 16 Feb 2021,09:22 PM IST

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