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यदि आप स्वस्थ खाने और अपने शरीर की देखभाल करने के शौकीन हैं, तो निश्चित रूप से यह बहुत अच्छी बात है. हालांकि हमारे शरीर को एक निश्चित तरीके से दिखने के दबाव में, स्वास्थ्य के बारे में हमारे विचार, कभी-कभी हमें दूसरी बीमारियों के रास्ते पर ले जा सकते हैं.
आइए इसके बारे में और जानते हैं.
दिल्ली में स्थित फोर्टिस हेल्थकेर अस्पताल के डिपार्टमेंट ऑफ मेंटल हेल्थ एण्ड बिहेवियरल साइंस के डायरेक्टर और एचओडी, डॉ समीर पारिख, बताते हैं कि ऑर्थोरेक्सिया उस कंडीशन को कहते हैं, जिसमें किसी व्यक्ति के लिए सही भोजन खाना या सही आहार का पालन करना इतना जरुरी हो जाता है कि वह अपने जीवन के दूसरे पहलुओं को नजरंदाज करने लगता है.
अमृता हॉस्पिटल्स, कोच्चि के मनोचिकित्सा और व्यवहार चिकित्सा विभाग के प्रोफेसर और प्रमुख डॉ बिंदू मेनन कहती हैं कि इससे स्वस्थ शरीर के बजाय, इटिंग डिसऑर्डर और स्वास्थ्य में कमी पैदा होती है.
डॉ मेनन ने इसे हमारे लिए दो घटकों में विभाजित किया है:
भोजन के प्रति अनहेल्थी ऑब्सेशन
इसमें शामिल हो सकती है, डीटॉक्सीफिकेशन, सफाई, शुद्धिकरण, लो फैट कंटेंट आदि के नाम पर कुछ खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करना या भोजन से हटाना.
इससे अक्सर शर्म और अपराध बोध के साथ तरह-तरह की चिंताएं पैदा होती हैं, खासकर अगर कोई ऐसा भोजन खा लिया जाए, जो पालन किए जा रहे डाइट के अनुसार अनहेल्थी है.
सही कॉम्बिनेशन के लिए, भोजन की खोज, खरीद और वजन करने में बहुत समय व्यतीत होता है.
इसके कारण और भी चिकित्सा सम्बंधी समस्याएं खड़ी हो सकती हैं, जैसे की मैल्नूट्रिशन, विटामिन डिफिशन्सी और डीहाइड्रेशन. जिनसे कभी-कभी जान को खतरा भी हो सकता है.
सामाजिक और व्यावसायिक डिसफंक्शन
इनमें शरीर की छवि संबंधी समस्याएं शामिल हो सकती हैं, जैसे फूला हुआ या मोटा महसूस करना और इनसे जुड़ी चिंता, डिप्रेशन और सेल्फ-वर्थ की समस्याएं.
ऑर्थोरेक्सिया, सही खाने के प्रति एक जुनून है, जो आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है या जैसा कि डॉ मेनन ने पहले कहा था, "पैराडाक्सिकल लैक ऑफ हेल्थ" का कारण बन सकता है.
डॉ मेनन बताती हैं कि ऐंगशस, ऑब्सेसिव (कठोर, रूढ़िवादी सोच- शैली वाले) या स्कीटज़ोटाईपल (अजीब विश्वास वाले) पर्सनैलिटी टाइप वालों में ऑरथोरेक्सिया की संभावना अधिक होती है.
डॉक्टर कहती हैं कि महामारी ने समस्या को और भी बढ़ा दिया है, साथ ही इसके प्रति कमजोर लोगों की संवेदनशीलता भी बढ़ा दी है.
डॉ. पारिख व्यायाम और सही आहार की सलाह देते हैं, लेकिन इस हद तक नहीं कि यह दैनिक गतिविधियों में बाधा डालने लगे.
वह सोशल मीडिया, जिसके कारण ‘आदर्श’ शरीर के प्रति ओब्सेशन और भी बढ़ सकता है और लोगों को आहार और व्यायाम के कठोर रास्ते पर ले जा सकता है, के खिलाफ सतर्क रहने को भी कहते हैं.
डॉ मेनन इससे निपटने के लिए कुछ सुझाव भी देती हैं. वह वैज्ञानिक प्रमाण देखने की सलाह देती हैं न कि दावों को. वे किसी भी डाइट को शुरू करने से पहले एक योग्य चिकित्सक से परामर्श करने की सलाह देती हैं, खासकर बच्चों, बुजुर्गों और गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं के मामले में या फिर उनके लिए जो किसी मेडिकल स्थिति से पीड़ित हैं.
(रोशीना ज़ेहरा एक प्रकाशित लेखक और मीडिया पेशेवर हैं. आप उनके काम के बारे में अधिक जानकारी यहां प्राप्त कर सकते हैं.)
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