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नेचर नामक जर्नल में मंगलवार, 22 मार्च को प्रकाशित एक स्टडी के अनुसार, पहली बार, एक पूरी तरह से पैरलाइज्ड मरीज एएलएस (एमियोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस) ब्रेन इम्प्लांट का उपयोग करके वाक्य बनाकर कम्यूनिकेट करने में सक्षम था.
als.org के अनुसार डाइअग्नोसिस के बाद एएलएस मरीजों की एवरेज लाइफ एक्सपेक्टेंसी 2 - 5 साल होती है.
हालांकि इस समय इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है, लेकिन यह तकनीक रोगियों को कुछ हद तक अपने परिवारों के साथ कम्यूनिकेट करने और उनकी स्थिति को कम अकेला बनाने में मदद कर सकती है.
एएलएस के बाद के चरणों में, रोगी वर्बल रूप से या संकेतों के माध्यम से कम्यूनिकेट नहीं कर पाते हैं, लेकिन वे अपनी आंखों से अक्षर, या 'हां' और 'नहीं' सिग्नल कर पाते हैं. जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है, यह क्षमता भी चली जाती है.
स्टडी का मकसद था यह पता लगाना कि क्या पूरी तरह पैरलाइज्ड रोगियों में न्यूरॉन फायरिंग जारी रहती है, और क्या उनका उपयोग ब्रेन इमप्लान्ट की मदद से रोगियों के विचारों को समझने के लिए किया जा सकता है.
नेचर जर्नल की इस स्टडी की ही तरह पहले और भी स्टडी की गई हैं रोगियों पर, जिनमें लिमिटेड आँख और मुँह मूव करने की क्षमता थी.
जर्मनी में टुबिंगन विश्वविद्यालय के सहयोग से वाईस सेंटर फॉर बायो एंड न्यूरो इंजीनियरिंग के रिसर्चरों द्वारा आयोजित यह स्टडी 2018 में शुरू हुई और इसमें एक 36 वर्षीय पुरुष पार्टिसिपंट शामिल हैं, जो पूरी तरह से पैरलाइज्ड हैं.
रिसर्चरों ने रोगी के मस्तिष्क के उस हिस्से में दो 64 माइक्रो इलेक्ट्रोड ऐरै को इमप्लान्ट किया जो मोटर मूवमेंट को नियंत्रित करता है.
कई असफल प्रयासों और तकनीकों के बाद, रिसर्चरों ने रोगी को अपने ब्रेन फायरिंग को नियंत्रित करने के लिए ऑडिटोरी न्यूरोफीडबैक का प्रयास करने का निर्णय लिया.
अभ्यास के साथ, रोगी फीडबैक की फ्रीक्वेंसी का पालन अपनी ब्रेन ऐक्टिविटी को नियंत्रित करने में सक्षम हुआ.
फिर वह अपने विचारों और जरूरतों को कम्यूनिकेट करने के लिए शब्दों और वाक्यांशों को बनाने के लिए अपने न्यूरॉन फायरिंग को मॉड्यूलेट करके अक्षर चुनने में सक्षम था.
"उस समय तक सब कुछ कंसिस्टेंट हो गया, और वह उन पैटर्न्स को रिपीट कर पाता था” ओनस जिम्मरमैन, जो वाइस सेंटर के एक न्यूरोसाइंटिस्ट और स्टडी के लेखक हैं, ने न्यूयॉर्क टाइम्स को बताया.
रोगी ने पहले दिन से ही ऑडिटोरी न्यूरोफीडबैक के प्रति अच्छी तरह रिस्पॉन्ड किया, अध्ययन लेखकों का कहना है.
बहुत से रोगियों के कम्यूनिकेशन में निर्देश शामिल थे जैसे कि उन्हें अपने हाथ कहां रखना है, वह अपना सिर कितना ऊँचा उठाना चाहते हैं, और वह किस तरह का भोजन करना चाहते हैं.
बाद में वह सामाजिक संपर्क और मनोरंजन का अनुरोध करने में सक्षम था, स्टडी के लेखकों ने रिपोर्ट किया.
245 वे दिन उन्होंने कहा, "मैं टूल (एक बैंड) द्वारा एल्बम को तेज वॉल्यूम पर सुनना चाहता हूं”.
कुछ ही महीनों में, वह लंबे पूर्ण वाक्य बनाने में सक्षम था. 461 और 462 वे दिन उन्होंने कहा, 'क्या आप मेरे साथ डिज्नी की विच एण्ड विजर्ड, अमेजन पर देखना चाहेंगे?' और अपने 4 साल के बेटे से कहा, 'मेरी सबसे बड़ी इच्छा है एक नया बिस्तर और कल मैं तुम्हारे साथ बारबेक्यू के लिए आऊंगा'.
अध्ययन के लेखकों के अनुसार, हालांकि यह तकनीक रोगी के लिए जीवन को आसान बना सकती है, वे मिसिन्टर्प्रटैशन के डर से स्पेलर पर चिकित्सा उपचार तक नहीं जाएंगे.
"आप निश्चित रूप से एक भी शब्द मिसइंटरप्रेट नहीं करना चाहते हैं. अगर स्पेलर का आउटपुट हो, “वेंटिलेटर बंद कर दो”, तो हम ऐसा नहीं करेंगे, जोनस जिमरमैन ने बताया.
“वह निर्णय परिवार के सदस्यों का होगा”, उन्होंने कहा.
अध्ययन के लेखकों के अनुसार, वे अब रोगियों के रिश्तेदारों के उपयोग के लिए इसे और अधिक यूजर-फ्रेंडली बनाने के लिए टेक्नोलॉजी को और सरल और एफिशियंट बनाने पर फोकस कर रहे हैं.
रिसर्चरों का मानना है कि यह तकनीकी मुद्दों के कारण हो सकता है और वे कोशिश कर रहे हैं अल्टर्नेट पार्ट्स और अल्टर्नेट नॉन-इन्वेसिव तकनीक इस्तेमाल करने का.
(न्यूयॉर्क टाइम्स, और विज्ञान से इनपुट के साथ लिखित)
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