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World Diabetes Day 2022: डायबिटीज एक ऐसा रोग है, जो पूरे शरीर को बुरी तरह से प्रभावित करता है फिर वो चाहे बड़ों में हो या बच्चों में. सरल भाषा में समझें तो, बच्चे के शरीर में ब्लड शुगर का लेवल नॉर्मल से बढ़ जाने को डायबिटीज कहते हैं. बच्चों और बड़ों में ब्लड शुगर के लेवल का मापदंड एक ही होता है.
बच्चों में टाइप 1 डायबिटीज का जोखिम ज्यादा होता है. इस स्थिति में शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन नहीं बना पाता है.
डायबिटीज को अगर समय पर नियंत्रण न किया जाए, तो यह कई रोगों को बुलावा देता है. इससे हृदय, किडनी एवं आंख संबंधी रोग होने का खतरा बढ़ जाता है. फिट हिंदी ने मेदांता अस्पताल, गुरुग्राम के एंडोक्रिनोलॉजी एंड डायबिटोलॉजी के डायरेक्टर, डॉ. सुनील कुमार मिश्रा से बच्चों में डायबिटीज और उसकी वजह से बढ़ रहे जोखिमों के बारे में बातचीत की.
“बच्चों में अधिकतर टाइप 1 डायबिटीज पाया जाता है. पर बीते कुछ समय से टाइप 2 डायबिटीज के मामले भी बढ़ रहे हैं क्योंकि बच्चों में ओबेसिटी बढ़ गयी है. टाइप 1 डायबिटीज में बहुत जल्दी इंसुलिन की क्षमता कम हो जाती है. जिससे बच्चे में प्यास ज्यादा लगना, वजन घटना, बार-बार पेशाब आना जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं. अगर ऐसा हो रहा है, तो बच्चे का ब्लड शुगर जरुर जांच कराएं” ये कहते हुए डॉ सुनील ने बच्चों में डायबिटीज के कुछ लक्षणों को बताया.
थकान ज्यादा होना: बच्चों के ब्लड में शुगर का घटता और बढ़ता स्तर थकान पैदा कर सकता है
बार-बार पेशाब आना: टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज में बच्चे को पेशाब ज्यादा आता है
बहुत ज्यादा प्यास लगना: शुगर का स्तर बढ़ने की वजह से उन्हें अधिक प्यास लग सकती है
भूख ज्यादा लगना: ब्लड में शुगर का स्तर बढ़ने से बच्चे को ज्यादा भूख लग सकती है. ऐसा इसलिए क्योंकि इंसुलिन के अपर्याप्त उत्पादन की वजह से बॉडी में एनर्जी की कमी हो जाती है, जिससे बच्चा अक्सर भूखा महसूस करता है.
वजन कम होना: डायबिटीज की वजह से बच्चों का वजन तेजी से कम हो सकता है.
अक्यूट कॉम्प्लिकेशन और लॉन्ग-टर्म कॉम्प्लिकेशन
1.अक्यूट कॉम्प्लिकेशन:
तीव्र जटिलताएं आमतौर पर बहुत अधिक ब्लड-शुगर के स्तर के कारण होती हैं - उनमें से एक डायबिटीज कीटोएसिडोसिस है, जिसमें शरीर में ग्लूकोज का स्तर बहुत अधिक होता है और शरीर फैट के मेटाबलिज्म के कारण रक्त में एसिड उत्पन्न करना शुरू कर देता है. शुरू में उन एसिड को शरीर द्वारा निष्प्रभावी कर दिया जाता है, लेकिन एक सीमा के बाद शरीर का बफर सिस्टम उस एसिड को बेअसर करने में सक्षम नहीं होता है और रक्त का पीएच बदल जाता है, जिसके परिणामस्वरूप एक गंभीर चिकित्सा आपात वाली स्थिति पैदा हो सकती है.
दूसरी ओर यदि हम बच्चों को इंसुलिन देते हैं, तो यह हाइपोग्लाइसीमिया (लो ब्लड-शुगर) का कारण बन सकता है, जो कभी तो हल्का होता है पर कभी-कभी गंभीर हो सकता है. जिस स्थिति में चिकित्सा सहायता की आवश्यकता पड़ सकती है.
2.लॉन्ग-टर्म कॉम्प्लिकेशन:
डायबिटीज की लॉन्ग-टर्म कॉम्प्लिकेशन में शरीर के विभिन्न अंगों जैसे आंखों, नसों, किडनी और हृदय को पहुँचने वाले नुकसान शामिल है. लंबे समय तक अनियंत्रित डायबिटीज के मामलों में इन जटिलताओं की संभावना काफी बढ़ जाती है.
डायबिटीज को शुरू से ही कंट्रोल करना बहुत जरूरी है. कई परीक्षणों में यह देखा गया है कि जिन मामलों में डायबिटीज को लंबे समय तक नियंत्रण में रखा गया है, उनमें लॉन्ग-टर्म कॉम्प्लिकेशन की संभावना भी कम होती है.
इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि एचबीए1सी के स्तर को 7 से नीचे और यदि संभव हो तो 6.5 से नीचे तक बनाए रखा जाए, जब तक कि यह हाइपोग्लाइसीमिया को इंडूस किए बिना किया जा सके.
माता-पिता रखें इन बातों का ख्याल:
बच्चे के ब्लड में शुगर के स्तर की जांच समय-समय पर करें
बच्चे के लाइफस्टाइल में बदलाव करें
ध्यान रखें कि बच्चा डाइट में ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन करें, जिससे उसके ब्लड शुगर का स्तर नॉर्मल रहे
बच्चे को नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करवाएं
वर्ल्ड डायबिटीज डे पर इस आर्टिकल को दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.
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Published: 23 Mar 2022,10:16 AM IST