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15 नवंबर, मंगलवार को ऑक्सफोर्ड एकेडमिक में प्रकाशित एक नए अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया भर के पुरुषों में स्पर्म काउंट और स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन घट रहा है. यह भारत में भी देखा गया है.
यह क्यों मायने रखता है: स्टडी के अनुसार निकट भविष्य में रिप्रोडक्टिव क्राइसिस आ सकता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि अगर स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन 40 मिलियन प्रति मिलीलीटर से कम हो जाता है, तो यह प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है और प्रजनन संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है. इससे पुरुषों में टेस्टिकुलर कैंसर और जेनिटल बर्थ डिफेक्ट में भी वृद्धि हो सकती है.
अध्ययन से जुड़े नंबर: शोधकर्ताओं ने भारत सहित 53 देशों के 57,000 से अधिक पुरुषों से डेटा जमा किया, 223 अध्ययनों से डेटा का विश्लेषण किया और स्पर्म काउंट पर लिखे गए 868 आर्टिकल कंसल्ट किए. आयु, सैंपल कलेक्ट करने का तरीका और प्रतिभागियों (participants) द्वारा इजैक्युलेट (ejaculate) किये बिना व्यतीत किये गए समय को ध्यान में रखा गया.
स्टडी में क्या पता चला: 1973-2018 के बीच औसत स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन में 51.6% की गिरावट आई है. इसका मतलब है कि औसत स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन 101.2 मिलियन प्रति मिलीलीटर से गिरकर 49 मिलियन प्रति मिलीलीटर तक आ गया है. इसके अलावा, 1973-2018 के बीच स्पर्म काउंट में 62.3% की गिरावट देखी गई है.
लेकिन, क्या यह गिरावट लगातार हुई है? नहीं. 1970 के दशक के दौरान और उसके तुरंत बाद, स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन में हर साल 1.16% की गिरावट आ रही थी. लेकिन 2000 के दशक के बाद, स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन में हर साल 2.64% की गिरावट आने लगी.
क्या यह इस तरह की पहली स्टडी है? नहीं. इसी जर्नल ने 2017 में टेम्पोरल ट्रेंड्स इन स्पर्म काउंट: ए सिस्टमैटिक रिव्यू एंड मेटा-रिग्रेशन एनालिसिस नाम का एक आर्टिकल निकाला था, जिसमें दिखाया गया था कि 1981-2013 के बीच, नॉर्थ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के पुरुषों में, स्पर्म कॉन्सन्ट्रेशन 50% से अधिक गिरा था.
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