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Spine Health Care Tips: आजकल की लाइफस्टाइल में लोगों का ज्यादातर समय कंप्यूटर/लैपटॉप पर घंटों झुक कर काम करते गुजरता है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक ऐसा पॉस्चर रीढ़ की हड्डी में कई समस्याएं पैदा कर सकता है.
रीढ़ की हड्डी इंसान के शरीर का मेजर ऑर्गन सिस्टम है. इसका स्ट्रक्चर बहुत जटिल होता है, जिसमें 100 से ज्यादा ज्वॉइंट्स, लिगामेंट्स, सॉफ्ट टिशूस और मांसपेशियां आपस में जुड़ी होती हैं. इनमें से किसी भी एक चीज में कोई रुकावट आने से रीढ़ की हड्डी से जुड़ी समस्या पैदा हो सकती है, जिसके कारण हड्डी, ज्वॉइंट्स, लिगामेंट्स या मांसपेशियों को नुकसान पहुंच सकता है.
ये हैं वो 4 गलतियां जो रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंचाती हैं:
देर तक एक ही पोजीशन में न रहें: हर 30 मिनट में अपने शरीर की स्थिति को बदलना चाहिए, क्योंकि लंबे समय तक बैठने, खड़े रहने या किसी स्थिर मुद्रा में रहने से दर्द और परेशानी हो सकती है. बार-बार ब्रेक लेने का मतलब यह नहीं है कि आप अपना काम छोड़ दें, बल्कि काम के बीच में 2-3 मिनट थोड़ा चल लें या अपनी कुर्सी पर बैठे-बैठे बॉडी पार्ट्स को मूव कर लें.
देर तक न झुकें: अपने कंधों को आगे की ओर झुका कर रखने से रीढ़ की हड्डी को नुकसान पहुंच सकता है. इसकी वजह से किफोसिस जिसे 'हैंचबैक' भी कहा जाता है, होने की आशंका बढ़ जाती है. अधिक समय तक आगे की ओर झुके रहने से रीढ़ की हड्डी की बनावट को नुकसान होता है.
लंबे समय तक नीचे की ओर देखते न रहें: कंप्यूटर या डेस्क पर लंबे समय तक काम करने के साथ-साथ सेल फोन पर पढ़ने या टाइप करने जैसी ऐक्टिविटीज के कारण अकसर सिर को आगे की ओर झुकाने से पॉस्चर खराब हो जाता है, जिससे गर्दन और ऊपरी पीठ की मांसपेशियों में तनाव होता है. एक आसान तरीका यह है कि हमेशा अपने कंधे को चौड़ा करना याद रखें और सिर आपके कंधे के बीच में होना चाहिए.
काम करने के लिए सोफे/बीन बैग का उपयोग न करें: लंबे समय तक बैठ कर काम करते समय सही कुर्सी का इस्तेमाल करना बेहद जरुरी है. कुछ लोग सोफे/बेड/बीन बैग पर बैठ कर घंटों लैपटॉप पर काम करते रहते हैं. ऐसा करना रीढ़ की हड्डी के साथ शरीर के दूसरे अंगों के लिये भी हानिकारक है.
रेगुलर एक्सरसाइज करें: रीढ़ की हड्डी के टिशूज की मरम्मत और रीमॉडलिंग उन पर पड़ने वाले तनाव से प्रभावित होती है. रेगुलर एक्सरसाइज और मजबूती देने वाली गतिविधियां एक स्वस्थ, मजबूत और अधिक स्थिर रीढ़ को बढ़ावा देंगी.
रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन को बनाए रखें: रेगुलर एक्टिविटी और स्ट्रेचिंग से रीढ़ की हड्डी के लचीलेपन को बनाए रखने में मदद मिलती है. लचीलापन चोट के जोखिम को कम करने के लिए जरुरी है.
हेल्दी फूड खाएं: हेल्दी फूड जॉइंट्स और रीढ़ की हड्डी के विकास और मरम्मत में मदद करते हुए, फूड से मिलने वाला पर्याप्त पोषण, रीढ़ की हड्डी के टिशूज को मजबूत बनाने में योगदान देता है, जिससे चोट लगने का खतरा कम हो जाता है.
विटामिन डी और कैल्शियम की मात्रा चेक करते रहें: शरीर में विटामिन डी और कैल्शियम की मात्रा चेक करते रहें. जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से सप्लीमेंट्स लें.
बहुत अधिक वजन न उठाएं: हमेशा 10 पाउंड से अधिक वजन वाली वस्तुओं को संतुलित तरीके से उठाने की कोशिश करें. अपने सामान, बैकपैक या पर्स को ज्यादा लोड करने से बचें.
रीढ़ की हड्डी से जुड़े एक आर्टिकल में डॉ. विनीश माथुर ने फिट हिंदी को बताया था,
समय-समय पर ब्रेक लें: अपने पैरों और पीठ को ऐक्टिव बनाए रखने के लिए समय-समय पर ब्रेक लेकर लंबे समय तक बैठने या खड़े रहने से बचें.
अच्छा पॉस्चर बनाए रखें: गलत पॉस्चर पीठ और गर्दन के दर्द का सबसे आम कारण है, इसलिए बैठने, खड़े होने और लेटने के दौरान हेल्दी पॉस्चर अपनाएं.
एक अच्छे तकिए और गद्दे का उपयोग करें: एक व्यक्ति अपने जीवन का औसतन एक-तिहाई हिस्सा सोने में बिताता है, इसलिए, इस अवधि के दौरान रीढ़ और सिर को उचित सहारा देने से रीढ़ के हेल्थ पर गहरा प्रभाव पड़ेगा.
अपनी पीठ या बाजू के बल सोएं: ये स्थिति आम तौर पर पेट के बल सोने की तुलना में रीढ़ की हड्डी के लिए अधिक सहायक होती है.
एक्सपर्ट ने सही तरीके से बैठने के कुछ आम तरीके बताए हैं:
कूल्हों, घुटनों और एंकल जैसे जोड़ों (joints) को 90° या उससे थोड़ा अधिक पर, आरामदायक पोजीशन में रखें.
घुटनों के जोड़ों को कूल्हे के जोड़ों पर या नीचे रखें.
एंकल के जोड़ों को घुटनों के सामने रखें.
घुटने के जोड़ के पीछे और सीट के सामने के किनारे के बीच तीन उंगलियों की चौड़ाई का अंतर रखें.
पैरों को फर्श पर या फुटरेस्ट पर सपाट रखें.
रीढ़ को स्वस्थ बनाए रखने के लिए एक सक्रिय दृष्टिकोण अपनाना जरूरी होता है. इसमें नियमित एक्सरसाइज, सही पॉस्चर का पालन करना (खासकर वो लोग जो लंबे समय तक बैठे रहते हैं), आरामदायक कुर्सियों का इस्तेमाल करना, घूमने-फिरने के लिए नियमित रूप से काम से ब्रेक लेना, तेजी से गिरने से बचना, सीमित ड्राइविंग और हमेशा लक्षणों पर ध्यान देना शामिल है. इन सभी बातों पर ध्यान देने से भविष्य में होने वाली गंभीर विकलांगता के संभावित कारणों को रोकने में मदद मिल सकती है.
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