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(अगर आपको खुदकुशी के ख्याल आ रहे हों या आप किसी को जानते हैं जो इससे परेशान हो, तो कृपया उनसे नरमी के साथ बात करें और स्थानीय आपातकालीन सेवाओं, हेल्पलाइन और मेंटल हेल्थ एनजीओ के इन नंबरों पर कॉल करें.)
37 साल के मोहम्मद दिलशाद ने 5 अप्रैल को अपनी कलाई की नस काटकर खुद को फांसी पर लटका लिया.
हिमाचल प्रदेश के बाणगढ़ गांव के लोग दिलशाद पर शक करने लगे थे. उनको अंदेशा था कि दिलशाद कोविड-19 से संक्रमित हो चुका है और वो गांव के दूसरे लोगों को भी बीमार कर देगा.
लोगों के तानों से परेशान होकर दिलशाद ने उनकी बात मान ली और अस्पताल में भर्ती हो गया. तीन दिनों के बाद उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई और अगले ही दिन उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली.
इससे पहले 2 अप्रैल को, ANI ने उत्तर प्रदेश से दो कथित कोरोनोवायरस संबंधित आत्महत्याओं की खबर चलाई थी. केरल में कथित तौर पर 7 खुदकुशी के मामले सामने आए, जो शराब की लत और लॉकडाउन में इसके अभाव से जुड़ी थीं.
सुसाइड के कारण हमेशा एक नहीं होते, लेकिन भारत में वे अक्सर आर्थिक मुश्किलों से जुड़े होते हैं.
फिट ने इस सिलसिले में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट और डायरेक्टर ऑफ सेंटर फॉर मेंटल हेल्थ डॉक्टर सौमित्र पठारे से बात की. उन्होंने बताया कि COVID-19, लॉकडाउन की चिंता और लोगों के जीवन पर इसका क्या असर पड़ रहा है.
डॉक्टर पठारे ने कहा कि अभी तक हम ‘डर से जुड़े सुसाइड’ के केस देख रहे हैं. वायरस का डर तो है ही, लेकिन आर्थिक असुरक्षा से लेकर बेरोजगारी और खाने की कमी का भी डर है.
हालांकि डॉक्टर पठारे इस बात पर जोर देते हैं कि सुसाइड और मानसिक बीमारी हमेशा सीधे तौर पर एक-दूसरे से नहीं जुड़ी होती है. खास तौर से भारत में, जो लोग सुसाइड से मरते हैं, उनमें अक्सर मानसिक रोग देखने को नहीं मिलता. कई अन्य फैक्टर्स, मुख्य रूप से आर्थिक या सामाजिक वजहें होती हैं.
उन्होंने कहा, “इस पर त्वरित एक्शन लेने की जरूरत नहीं है. हमें आत्महत्या की बढ़ती दर के मद्देनजर अनिवार्य रूप से काउंसलिंग की जरूरत फिलहाल नहीं है. इसकी जगह सरकार को संकट के आर्थिक असर का पता लगाने और उसे कम करने की जरूरत है. ये डर और चिंताओं को कम करने में एक बड़ी भूमिका निभाएगा. ”
वो चेताते हैं कि ये एक बढ़ता हुआ संकट है और हमें सुसाइड केसेज की जटिलता को समझने और टारगेटेड पॉलिसीज लागू करने की जरूरत है. जैसे-जैसे COVID-19 के मामले बढ़ रहे हैं, वैसे ही आशंकाएं भी बढ़ेंगी, लेकिन इसके साथ ही आर्थिक मुश्किलों को लेकर सचेत रहना होगा.
शराबबंदी और लॉकडाउन ने लैंगिक हिंसा की खतरे की घंटी बजा दी है. घरेलू हिंसा के मामले बढ़ गए हैं. और ये एक बड़ी चिंता है क्योंकि महिलाओं को सुसाइड के लिए उकसाने में लैंगिक हिंसा एक बड़ा कारण है.
वो कहते हैं, “आत्महत्या की दर तब तक नहीं बदलेगी जब तक कि हम आत्महत्या के मामलों को संरचनात्मक रूप से संबोधित नहीं करेंगे. इस पर एक बहु-आयामी, बहु-क्षेत्रीय नजरिये से सोच की जरूरत है. ”
सुसाइड जैसा मुद्दा काफी जटिल है और भारत एक बड़ा देश है - इसलिए इसके लिए विशेष ग्रुप्स का हस्तक्षेप करना भी अहम है.
उदाहरण के लिए, महिलाओं के साथ होने वाली लैंगिक हिंसा को संबोधित करने वाला कोई ग्रुप, पुरुषों की शराब की लत को लेकर काम करने वाला ग्रुप.
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Published: 14 Apr 2020,07:34 PM IST