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कोरोना पर उसे चिढ़ाते थे, सुसाइड से पहले लिखा- ‘मैं दुश्मन नहीं’

मैंने पहले कभी उसे रोते हुए नहीं देखा था. वो बार-बार सिर्फ यही कहता कि उसे किसी साजिश के तहत फंसाया गया है. 

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“क्वॉरंटीन से लौटने के बाद वो सिर्फ रोता रहता था. मैंने पहले कभी उसे रोते हुए नहीं देखा था. वो बार-बार सिर्फ यही कहता कि उसे किसी साजिश के तहत फंसाया गया है. पूरे दिन वो दूसरे कमरे में पड़ा रहा. मैं उसके पास जाती और पूछती कि वो ठीक तो है ना, लेकिन वो कोई जवाब नहीं देता.”

ऊषा, 37 साल के मोहम्मद दिलशाद, जिसने 5 अप्रैल को अपनी कलाइयों की नसें काटकर खुद को फांसी पर लटका लिया, की मां ने हिमाचल के ऊना जिले के बाणगढ़ गांव से द क्विंट से बातचीत में बताया.

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बाणगढ़ गांव के लोग दिलशाद पर शक करने लगे थे. उनको अंदेशा था कि दिलशाद कोविड-19 से संक्रमित हो चुका है और वो गांव के दूसरे लोगों को भी बीमार कर देगा. लोगों ने उसे दो मुसलमानों (जो कि दिल्ली के निजामुद्दीन से तबलीगी जमात की बैठक से आए थे) को मार्च के आखिर में गांव में अपने स्कूटर पर ले जाते देखा था. लोगों ने पहले उसे खूब ताने दिए फिर पुलिस को इसकी जानकारी दी.

लोगों के तानों से परेशान होकर दिलशाद ने उनकी बात मान ली और अस्पताल में भर्ती हो गया. तीन दिनों के बाद उसकी रिपोर्ट निगेटिव आई और अगले ही दिन उसने अपनी जिंदगी खत्म कर ली.

दिलशाद मिरासी समुदाय से था जो कि शादियों में गाना गाने का काम करते हैं. कुछ साल पहले उसने अपने परिवार की मदद के लिए चिकेन मीट बेचना शुरू कर दिया था. करीब दस साल पहले उसके पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी. अपनी सात बहनों की शादी कराने के बाद वह बाणगढ़ गांव में अपनी बीवी, मां और पांच साल की एक बेटी, जिसे उसने अपनी एक बहन से गोद लिया था, के साथ अच्छे से रह रहा था.

द क्विंट ने उसके परिवार, गांव के सरपंच और पुलिस अधिकारियों से बात कर यह समझने की कोशिश की कि 11 अप्रैल की तारीख तक उसकी मौत की जांच में क्या सामने आया है.

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दिलशाद के आखिरी शब्द

यह दिलशाद की पॉकेट डायरी है जो उसकी अलमारी में मिली. यह डायरी दिलशाद को दफ्न करने से पहले परिवारवालों को मिली. खुद को फांसी पर लटकाने से पहले उसने अपनी दोनों कलाइयों को काट लिया था.

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वो अचानक चला गया

दिलशाद की मौत के बाद जब परिवारवाले उसे दफ्न करने की तैयारी कर रहे थे, उसकी अलमारी में एक पॉकेट नोटपैड मिला. पेंसिल से लिखे उसके आखिरी शब्द देखकर परिवारवाले हैरान रह गए, फिर उन्होंने इसे पुलिस को सौंप दिया. नोट में लिखा था: ‘मैं किसी का भी दुश्मन नहीं हूं.’ ऊना के एसपी कार्तिकेयन जी. ने इसकी पुष्टि की कि पुलिस ने इस सबूत को रिकॉर्ड में रख लिया है.

ऊषा, जो कि दिलशाद से बात करने वाली सबसे आखिरी शख्स थी, ने बताया उसके बेटे ने उस बातचीत में क्या-क्या कहा था.

‘मैं उठ चुकी थी और उस वक्त पानी भर रही थी जब उसने कहा कि वह घर के पीछे वाले बाथरूम में नहाने जा रहा है. जब 20 मिनट बाद भी वह नहीं लौटा. तो मुझे चिंता होने लगी. मैंने अपने रिश्तेदारों से पूछा कि उन्होंने उसे देखा है, लेकिन किसी ने उसे देखा नहीं था. फिर हम सभी उसे ढूंढने के लिए निकले, उसकी पत्नी पीछे की छप्पर की तरफ गई तो वह फंदे से लटका दिखा, उसकी कलाइयों से खून निकल रहे थे,’ ऊषा ने बताया.

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स्कूटर की सवारी

दिलशाद के चाचा दिलावर खान ने तबलीगी जमात के सदस्यों को स्कूटर से लिफ्ट देने के बारे में बताया, ‘इलाके के एक मौलवी ने उसे बुलाकर कुछ लोगों की मदद करने को कहा. जमात के वो लोग गांव की मस्जिद में रहना चाहते थे, लेकिन लोगों ने कहा लॉकडाउन की वजह से यह मुमकिन नहीं हो पाएगा. फिर मौलवी ने कहा कि हम इतना तो कर सकते हैं कि इन लोगों को हाईवे पर या कहीं छोड़ दें. उसके बाद मौलवी ने दिलशाद को बुलाया और इन लोगों को कहीं भी छोड़ देने के लिए कहा.’

इसके ठीक बाद, गांव वाले दिलशाद के परिवार के खिलाफ हो गए. ‘लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे, हालांकि उन्होंने कभी हमारे सामने कुछ नहीं कहा.’ कुछ अफवाहें उड़ी कि किसी ने उसे स्कूटर पर दो दाढ़ी वालों को लिफ्ट देते देखा था. फिर जल्द ही सब लोग इस बारे में बातें करने लगे.

इससे पहले कि दिलशाद पुलिस को बुलाता, लोगों ने पुलिस को इसकी जानकारी दे दी थी. बाणगढ़ गांव की सरपंच परमिला देवी हैं, लेकिन वो इस बारे में बात करने के लिए मौजूद नहीं थी. उनकी जगह उनके पति अरुण कुमार ने फोन उठाया और हमारे सवालों का जवाब दिया. कुमार ने बताया कैसे गांव वालों ने दिलशाद की शिकायत कर पुलिस को बुलाया.

‘लॉकडाउन की घोषणा के बाद गांव में इसे बड़ी सख्ती से लागू किया जा रहा था, दिलशाद ने दो लोगों को अपने स्कूटर पर बिठाया था और गांव से बाहर निकलने में उनकी मदद की थी. गांव वाले यह देखकर डर गए, अनजान लोगों के साथ दिलशाद को देखकर उनका संदेह बढ़ गया. भय के मारे उन्होंने पुलिस को बुला लिया. वहां करीब 30 लोग थे और पुलिस वाले थे जब दिलशाद ने पूरी बात कबूल ली थी.’
अरुण कुमार

दिलशाद ने फिर कहा कि उसने दिल्ली में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए दो लोगों की मदद की और उन्हें गांव से बाहर उनके घर बिलासपुर के रास्ते में छोड़ दिया था.

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लोग दिलशाद से कहते रहे कि उसने जमात के लोगों को लिफ्ट देकर गांव के लोगों की जिंदगी खतरे में क्यों डाली. लोग उसे ताने दे रहे थे. अगर किसी ने उसके सामने नहीं भी कहा हो, तो भी लोग सोच तो ऐसा ही रहे थे,’ कुमार ने बताया.

दिलशाद ने अधिकारियों के साथ जाकर अपनी जांच करवाई और उसका टेस्ट निगेटिव आया.

लेकिन तब तक गांव के लोगों ने दिलशाद की बहन से दूध खरीदना बंद कर दिया था, जो कि उसी गांव में रहती है. ‘सभी हमारे साथ ऐसा बर्ताव कर रहे थे जैसे कि हमने कुछ खौफनाक काम कर दिया है. दिलशाद जब लौटकर आया तो हमने उसे सारी बातें बताई, ये सब सुनकर वह बेहद परेशान हो गया था.’

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क्वॉरंटीन से वापसी

दिलावर खान ने उन हालात के बारे में बताया जिसमें दिलशाद की मौत हुई, ‘क्वॉरंटीन से लौटने के बाद वह एकदम बदल गया था. वह बेहद उदास था इसमें कोई शक नहीं है. वह लगातार रो रहा था. मुझे यकीन नहीं हो रहा कि उसने खुदकुशी कर ली. मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा कि उसके दिल और दिमाग में क्या चल रहा था.’

वह 4 अप्रैल को दोपहर करीब 2 बजे घर लौटा था और 5 अप्रैल को सुबह 7 बजे उसने अपनी जान दे दी.

सरपंच के पति अरुण कुमार ने बताया कि पुलिस को उसने बुलाया था. ‘मुझे दिलशाद के एक रिश्तेदार ने पूरी जानकारी दी थी, जिसके बाद मैंने पुलिस को बुलाया था. गांव का प्रधान होने की वजह से उन्हें इसकी जानकारी देना मेरी जिम्मेदारी है. फिर मैं पुलिस के साथ उसके घर गया. मेरे पास सुबह 7:52 बजे फोन आया था,’ कुमार ने बताया, साथ में यह दावा भी किया कि वह गांव का असली प्रधान है, उसकी पत्नी सिर्फ आधिकारिक तौर पर इस पद पर है. उसने बताया जब पुलिस दिलशाद के घर पहुंची, उसके परिवारवाले बहुत नाराज हो गए थे. कुमार ने कहा, ‘दिलशाद का परिवार गांव के लोगों को बददुआ दे रहा था.’

दिलशाद की पत्नी महक खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करती है और अपना पूरा ध्यान अपनी बच्ची की देखरेख में लगा रही है. ‘वो एक अच्छा और सीधा आदमी थे. लोग बार-बार उन्हें ताना नहीं देते तो आज वो जिंदा होते. दिलशाद की सेहत बिलकुल ठीक थी और ये आखिरकार साबित भी हो गया था. पता नहीं लोगों का बर्ताव इतना खराब क्यों हो गया था?’

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मौत का जिम्मेदार कौन?

दिलशाद के परिवार को पता है कि उन्हें अपनी पूरी जिंदगी गांव में ही बितानी है. और यही वजह है वो गांव के किसी व्यक्ति का नाम नहीं लेना चाहते.

‘मैं गांव में राशन के स्टोर पर बैठता हूं, दिलशाद की मां राशन लेने के लिए आई थी. उसे जो भी चाहिए था मैंने दे दिया और पैसे भी नहीं लिए. वह रो रही थी. उसने मृत्यु-प्रमाण पत्र दिलाने में मदद मांगी. क्योंकि दिलशाद की मौत उसके घर पर हुई है, यह सर्टिफिकेट पंचायत ही मुहैया कराएगा. मैंने उसे सब करवाने का भरोसा दिया,’
अरुण कुमार

ऊषा ने बताया सभी बैंक खाते, घर और दूसरे कागजात दिलशाद के नाम पर हैं इसलिए मृत्यु-प्रमाण पत्र लेना बहुत जरूरी है.

जहां दिलशाद की मौत के बाद उसका परिवार सदमे में है, ऊना के एसपी कार्तिकेयन ने द क्विंट को बताया कि अब तक की जांच से लगता है कि यह सामाजिक कलंक की वजह से की गई खुदकुशी का मामला है. उन्होंने कहा, ‘हम दिलशाद की विसरा जांच की रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं लेकिन अभी सारे जांच केन्द्र बंद होने की वजह से इसमें देरी लग रही है. फिलहाल हम CrPC की धारा 174 के तहत मामले की जांच कर रहे हैं, जिसके तहत अस्वाभाविक मौत की जांच होती है.

एसपी ने आगे बताया कि दिलशाद के परिवारवालों के बयान रिकॉर्ड कर लिए गए हैं, जिसमें उसकी डायरी नोट भी शामिल है. ‘इस मामले में किसी को आरोपी ठहराना मुश्किल होगा क्योंकि ना दिलशाद ने अपने नोट में किसी का नाम लिया है, ना ही परिवारवालों ने किसी पर आरोप लगाया है.’

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