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Women's Day 2024: महिलाएं अक्सर अपने कंधों पर अपने परिवार की सेहत की जिम्मेदारी लेकर चलती हैं. खासतौर पर, बड़े परिवारों की महिलाएं घर के सभी सदस्यों की हेल्थ और वेलबिंग पर ध्यान देती हैं लेकिन अपनी खुद की जरूरतों को लेकर अक्सर लापरवाह बनी रहती हैं. यही वजह है कि महिलाओं को हेल्थकेयर के बारे में जागरूक बनाने, खासतौर से कुछ ऐसे रोगों को लेकर उन्हें सजग और सतर्क करना जरूरी है जो महिलाओं को प्रभावित करते हैं ताकि समय रहते उनका डायग्नॉसिस और ट्रीटमेंट सही समय पर हो सके.
फिट हिंदी ने स्त्री रोग विशेषज्ञ से बात की और जाना महिलाओं में कौन-कौन सी बीमारियां साइलेंट किलर की तरह होती हैं और उनसे कैसे बचा जा सकता है.
देश में महिलाओं की सेहत को लेकर जागरूकता का अभाव अभी भी है. भारत में बचाव के उपायों को काफी हद तक नजरंदाज किया जाता है. यही वजह है कि ऐसे कई रोग घातक साबित होते हैं जिनसे महिलाओं को बचाया जा सकता है. इसके अलावा, महिलाओं के सामने कई तरह की सामाजिक-आर्थिक बाधाएं भी होती हैं जो उन्हें क्वालिटी हेल्थकेयर सेवाओं का लाभ लेने से रोकती हैं.
पिछले कुछ सालों में जहां हेल्थकेयर सेक्टर में सुधार हुआ है और समाज में लैंगिक दृष्टि से भेदभाव भी घटा है.
डॉ. अनुजा पोरवाल आगे बताती हैं कि कई रोग और कंडीशंस भी ऐसी होती हैं, जिनके लिए स्पेश्यलाइज्ड केयर की जरूरत है लेकिन इनसे जुड़ा हर एक व्यक्ति इनकी अनदेखी करता है.
ऐसी कई बीमारियां हैं जो साइलेंट रोगों की श्रेणी में आती हैं. इनमें हाइपरटेंशन (High BP), क्रोनिक किडनी रोग, ऑस्टियोपोरोसिस समेत रोग शामिल हैं. इनके लक्षण जब तक उभरते हैं तब तक रोग काफी एडवांस स्टेज में पहुंच चुका होता है. कई बार, लैंगिक भेदभाव के चलते भी परिवार इनके इलाज विकल्पों को नहीं चुनता.
प्री-मेनोपॉजल समस्याओं पर भी सही समय पर ध्यान देने से इन्हें काफी हद तक मैनेज किया जा सकता है.
एक्सपर्ट के मुताबिक सबसे जरूरी है कि महिलाएं खुद इनके बारे में जागरूक बनें और इनसे बचाव के लिए जरूरी उपायों को अपनाएं और अगर पहले से ही कोई समस्या है तो कारगर तरीके से उससे निपटे.
मातृत्व स्वास्थ्य (Maternal health)- मातृत्व स्वास्थ्य की कमी के चलते आगे चल के माताओं और उनके बच्चों के लिए इकोनॉमिक डिस्पैरिटीज बढ़ जाती हैं. खराब हेल्थ की वजह से अक्सर बच्चों की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और महिलाएं भी इस वजह से आर्थिक गतिविधियों से नहीं जुड़ पातीं.
हेल्थकेयर सुविधाओं में विस्तार और सुधार के बावजूद, माताओं की मृत्यु के आंकड़े कई विकासशील देशों की तुलना में ऊंचे हैं. इसके प्रमुख कारण हैं, प्रसव पूर्व और प्रसव बाद देखभाल सुविधाओं का अभाव या सेवाओं का इस्तेमाल नहीं करना. इसके अलावा, देखभाल सुविधाओं को हासिल करने में देरी, मेडिकल सुविधाओं तक पहुंचने में देरी और क्वालिटी केयर का उपलब्ध नहीं होना भी काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.
जो महिलाएं अपने परिवारों में फैसले लेने की प्रक्रियाओं से एक्टिव रूप से जुड़ी होती हैं, वे इस प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठा पाती हैं जबकि बाकी महिलाओं की इनसे दूरी बनी रहती है
डॉक्टर बताती हैं कि इसके अलावा क्वालिटी केयर तो ज्यादातर भारतीय महिलाओं के लिए उपलब्ध नहीं हैं, जिसकी वजह से युवा महिलाओं में रोगों और मृत्यु के मामले काफी अधिक सामने आते रहे हैं.
कार्डियोवैस्कुलर हेल्थ- कार्डियोवैस्कुलर रोग भारत में महिलाओं की मृत्यु का बड़ा कारण है. यहां तक की पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में हृदय रोगों के चलते मृत्यु के अधिक मामले दर्ज किए जाते हैं.
डॉ. अनुजा पोरवाल कहती हैं कि ये लैंगिक भेद का परिणाम है. इसके पीछे एक कारण सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर भेदभाव है जिसकी वजह से महिलाएं अपने लिए देखभाल के विकल्पों को नहीं चुन पाती हैं.
मानसिक स्वास्थ्य- मानसिक स्वास्थ्य के अंतर्गत कई पहलुओं को शामिल किया जाता है जिनमें डिप्रेशन, स्ट्रेस और सेल्फ-वर्थ संबंधी सोच का रोल सबसे बड़ा होता है.
भारत में, महिलाओं के मामले में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी डिसऑर्डरों को प्रभावित करने वाले कारणों में, परिवार और ऑफिस का खराब माहौल, अशिक्षित या कम शिक्षित होना, बुढ़ापा, बच्चे का न होना, बिना आर्थिक लाभ वाले काम से जुड़ा होना और जीवनसाथी से नहीं बनना भी शामिल हैं.
कुपोषण- भारतीय महिलाओं के सामने अक्सर गरीबी और कुपोषण जैसी समस्याएं गंभीर रूप से खड़ी होती हैं. पोषण किसी भी व्यक्ति के हेल्थ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है लेकिन कुपोषण का असर उनकी फिजिकल और मेंटल हेल्थ, दोनों पर पड़ता है. फिलहाल भारत में कुपोषण की शिकार महिलाओं का आंकड़ा दूसरे विकासशील देशों के मुकाबले काफी अधिक है.
स्तन कैंसर और दूसरे आनुवंशिक कैंसर- भारत में कैंसर रोग एक विकराल महामारी का रूप लेता जा रहा है और देश में महिलाओं में स्तन कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं.
फिट हिंदी से बात करते हुए डॉ. अनुजा पोरवाल आंकड़ों का जिक्र करती हैं और कहती हैं कि, दुनियाभर में, 2020 तक करीब 70% कैंसर के मामले विकासशील देशों में दर्ज किए गए जिनमें लगभग 20% मामले अकेले भारत में सामने आए थे.
इसके अलावा, भारत का हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर भी कुछ ऐसा है कि यहां स्वास्थ्य संबंधी जांच और सुविधाओं तक महिलाओं की पहुंच अधिक विकसित देशों की तुलना में कम है. 2021 में, भारत में ट्रेन्ड ओन्कोलॉजिस्ट और कैंसर सेंटर भी कम थे जिसकी वजह से हेल्थकेयर सिस्टम पर अधिक दबाव था.
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