आजादी के 75 साल बाद भी एनीमिया हमारे देश की महिलाओं और बच्चों में एक बड़ी समस्या बना हुआ है. हाल ही में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) 5 की रिपोर्ट से पता चलता है कि NFHS 4 की तुलना में एनीमिया से ग्रसित महिलाओं और बच्चों की संख्या में वृद्धि दर्ज हुई है.
देश में आधी से अधिक महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं, और बच्चे, एनीमिक हैं यानी उनमें खून की कमी है. एनिमिया अभी भी हमारे देश के सामने एक बड़ी समस्या बन क्यों खड़ा है? चूक कहां हो रही है? एनिमिया से जीतने के उपाय क्या हैं?
इस लेख में हम इन सारे सवालों के जवाब की तलाश करेंगे.
Anaemia आजादी के 75 सालों बाद भी क्यों है बड़ी समस्या- NFHS 5 की रिपोर्ट
1. एनीमिया किसे कहते हैं?
एनीमिया शब्द आपने कई बार और कई लोगों से सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है? एनीमिया का मतलब है, शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल) की कमी होना. ऐसा तब होता है, जब शरीर में रेड ब्लड सेल के बनने की दर उनके नष्ट होने की दर से कम हो होने लगती है. ऐसा होने के कई कारण होते हैं और उनकी वजह से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.
सरल भाषा में शरीर में खून की कमी को एनीमिया कहते हैं.
एनीमिया पर AIIMS दिल्ली की अनुभवी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ अपर्णा के शर्मा, फिट हिंदी से कहती हैं, "NFHS -5 में महिलाओं के लिए अलग-अलग कैटेगरी दी गयी है. तीनों ही कैटेगरी में एनीमिया के स्तर में बढ़ोतरी देखी गयी है पर किशोरियों और उम्रदार महिलाओं में एनीमिया ज्यादा बढ़ा हुआ देखा गया है. वहीं प्रेग्नेंट महिलाओं में उनकी तुलना में बढ़त थोड़ी कम है. इससे यह पता चलता है कि देश में एनीमिया दूर भगाने का फोकस किशोरियों और उम्रदार महिलाओं पर थोड़ा कम है".
Expand2. NFHS 5 डेटा क्या कहता है?
"एनिमिया प्रोग्राम हमारे देश में सालों से है पर जब तक किसी मुद्दे को राजनीतिक प्राथमिकता नहीं मिलती है, तब वह आबादी का ध्यान अपने ऊपर आकर्षित नहीं कर पता है. जब 2018 में सरकार द्वारा एनिमिया मुक्त भारत की घोषणा की गयी तब से इसे गंभीरता से लिया जा रहा है. एनिमिया के लिए तैयार की गयी स्ट्रैटेजी सही दिशा में जा रही है".
डॉ शीला सी वीर, डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डेवलपमेंट सेंटरडॉ शीला सी वीर ने फिट हिंदी से कहा, NFHS सिर्फ पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर रिपोर्ट नहीं बनाती है. ये पूरी आबादी पर सर्वे करती है. अभी एनिमिया से चल रही लड़ाई में केवल पब्लिक हेल्थ सेक्टर और पब्लिक स्कूल की ओर ध्यान दिया जा रहा है. जबकि ध्यान प्राइवेट हेल्थ सिस्टम की ओर भी बराबर होना चाहिए. एनिमिया हर वर्ग के लोगों में पाया जा रहा है.
"हमें समस्या से भागना नहीं चाहिए. हां, समस्या तो है और हम मानते हैं. लेकिन कहीं न कहीं एनीमिया की परिभाषा को हमें फिर से देखने की जरुरत है. हाल में ही लैन्सेट में आयी एक स्टडी के अनुसार, WHO एनीमिया के लिए जो परिभाषा का उपयोग करता है, वो भारत के मामले में शायद थोड़ा ज्यादा है, खास कर के बच्चों के मामले में".
डॉ अपर्णा के शर्मा, सीनियर गयनेकोलॉजिस्ट, AIIMS दिल्लीExpand3. ये हैं एनीमिया के प्रमुख कारण
एनीमिया जन्म के समय मौजूद स्थिति (जन्मजात) या आपके द्वारा विकसित की स्थिति के कारण हो सकता है. जानें क्या कहते हैं हमारे एक्स्पर्ट्स-
डॉ शीला सी वीर के अनुसार इसके कई कारण हैं. उनमें से कुछ हैं ये, फूड ईटिंग हैबिट (food eating habit), गर्भावस्था में मां का एनिमिक होना, जन्म के बाद बच्चे के ऊपरी आहार पर ध्यान न देना और पेट में वर्म (कीड़ा) का होना भी है.
वहीं डॉ अपर्णा के शर्मा ने फिट हिंदी को एक जर्नल में प्रकाशित रिव्यू का उल्लेख करते हुए बताया कि एनीमिया सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है बल्कि ये एक सामाजिक समस्या भी है. सिर्फ स्वास्थ्य सम्बंधी कमियां नहीं है बल्कि घर की महिलाओं खास कर मां के शिक्षा का स्तर भी उसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है. मां की पढ़ाई-लिखाई और परिवार की आर्थिक स्थिति एनीमिया के स्तर का एक बेहद महत्वपूर्ण सूचक है.
Expand4. बच्चों में एनीमिया का कारण
PMCH, पटना में सीनियर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अजय कृष्ण कहते हैं, “परिवारों में बदलता ‘फूड कल्चर'. अब लोग जिन खाद्य पदार्थों का प्रचार टीवी या मोबाइल पर देखते हैं वही खाते हैं. पहले लोग अधिकतर खाने में चावल, दाल, सब्जी खाते थे और अब चिप्स, नूडलेस, जंक फूड, पैक्ट जूस खाने का चलन बढ़ गया है. इसका कारण है देश में बढ़ता जंक फूड का बाजार और इसकी मार्केटिंग जो बड़े-बड़े अभिनेता करते हैं.”
आज के समय में एनिमिया का बड़ा कारण जंक फूड है.
डॉ शीला सी वीर ने बच्चों में एनिमिया के बढ़े हुए स्तर पर चिंता जताई और कहा कि बच्चों में भी एनिमिया का स्तर बढ़ा हुआ है और इसका कारण है गर्भावस्था में मां का एनिमिक होना और जन्म के बाद बच्चे के ऊपरी आहार पर ध्यान न देना. ऊपरी ढूध और दाल के पानी जैसे खाद्य पदार्थ देना कुपोषण का कारण बनता है. पौष्टिक आहार देने की जगह जंक फूड का सेवन बढ़ता है, बच्चों में एनिमिया.
गर्भवती महिलाओं को यह बताना जरुरी है कि बात सिर्फ खून की कमी की ही नहीं है बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के संपूर्ण और सही विकास की भी है. एक बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि महिलाएं मां बनने के सफर की शुरुआत स्वस्थ और एनिमिया मुक्त अवस्था में ही करें.
Expand5. क्यों देश में आजादी के 75 साल बाद भी एनीमिया की समस्या बनी हुई है?
भारत में एनीमिया की स्थिति पर फिट हिंदी से बात करते हुए हमारे एक्स्पर्ट्स ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए स्थिति सिर्फ खराब ही है. बात कहीं-कहीं संभल भी रही है. जैसे झारखंड और हरियाणा जहां पर स्थिति में सुधार देखा गया है. खास कर प्रेग्नेंट महिलाओं में. जहां पर प्रोग्राम पर अच्छे से अमल किया गया है वहां पर किसी-किसी वर्ग में सुधार देखा गया है. कंप्लायंस इकलौता महत्वपूर्ण फैक्टर है, जिसमें हम फैल कर रहे हैं.
एक्स्पर्ट्स के अनुसार ये कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:
एनिमिया से चल रही लड़ाई में केवल पब्लिक हेल्थ सिस्टम और पब्लिक स्कूल की ओर ध्यान देना. जबकि ध्यान पब्लिक के साथ-साथ प्राइवेट हेल्थ सिस्टम और स्कूल की ओर बराबर होना चाहिए. प्राइवेट कंपनियों में काम करती महिलाओं, फ़्रंट लाइन वर्करस की तरफ फोकस नहीं करना.
एनीमिया के खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार है, जिसका इस्तेमाल अभी भी ठीक से नहीं किया है, वो है आईवी (IV) आयरन या आयरन का इंजेक्शन.
महिलाओं में दो प्रेगनेंसी के बीच अंतर कम होना.
खाने से जुड़े कई तरह के अंधविश्वास या रोक (taboo) का होना.
चाइल्डफंड इंडिया की वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रतिभा पांडे कहती हैं, "हमारे देश में खाने से जुड़े कई तरह के रोक (taboo) हैं, जिनके बारे में जागरूकता बढ़ाते हुए उन्हें खत्म करने की आवश्यकता है. एनीमिया पर सरकारों का और देशवासियों का फोकस कभी रहा ही नहीं. शुरू से सभी का ध्यान स्टंटिंग और वेस्टिंग पर ज्यादा रहा है".
Expand6. एनीमिया को हराने के क्या हैं उपाय?
12/12 के नियम पर चलें यानी कि हर 12 वर्ष की उम्र से ऊपर की लड़की/महिला का हीमोग्लोबिन 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर होना चाहिए.
अगर लड़की स्वस्थ नहीं है, तो वो स्वस्थ मां नहीं बन सकती वैसे ही अगर मां स्वस्थ नहीं है, तो वो एक स्वस्थ उम्रदार महिला नहीं बन सकती. ये एक साइकल बन जाता है, जो शुरुआत होती है एक लड़की से.
एक्स्पर्ट्स के सुझाए कुछ उपाय.
आयरन युक्त डायट खाएं
पौष्टिक आहार लें
आयरन की गोली खाएं
समय-समय पर डीवर्मिंग (deworming) करें
पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक खून निकालने पर गायनेकोलॉजिस्ट से जरूर संपर्क करें
प्रेग्नेंसी में आयरन और फोलिक एसिड का सेवन करें
हीमोग्लोबिन की जांच कराते रहें खास कर गर्भावस्ता में
खून की कमी होने पर आईवी (IV) आयरन या आयरन का इंजेक्शन लें
गर्भनिरोधक विधियों की जानकारी और जागरूकता बढ़ाएं
परिवार की लड़कियों और महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें
घर-परिवार में सफाई का ध्यान रखें
पब्लिक स्कूलों की तरह ही प्राइवेट स्कूलों में भी किशोरियों को आयरन की गोली खाने को दें
एनिमिया का पता लगाने के लिए खून की जांच कराते रहना एक महत्वपूर्ण कदम है. साल में एक बार हीमोग्लोबिन की जांच करानी चाहिए. अगर कम है, तो डॉक्टर से सलाह लें और इलाज कराएं.
फ्रंट लाइन वर्करों को मोटिवेट (motivate) करते रहें ताकि एनिमिया मुक्त भारत अभियान पर अमल सही और सुचारु रूप से किया जाए.
गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली गर्भावस्था के पहले 3 महीने बीतने के बाद दिया जाना चाहिए.
गर्भावस्था के शुरू के 3 महीने में फालिक एसिड का सेवन जरूरी है.
Expand7. एनिमिया से लड़ने में आती कुछ बाधाएं ये भी हैं
हमारे यहां हीमोग्लोबिन के स्तर का पता चलना भी मुश्किल है. कारण है लोगों में जांच को ले कर गंभीरता की कमी.
“आयरन पॉट यानी कि लोहे के बर्तन में खाना पकाने से मिलने वाला आयरन एलिमेंटल आयरन (elemental iron) होता है, जो हमारा शरीर सोख (absorb) नहीं पता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (National Institute Of Nutrition) ने ही मुझे बताया कि लोहे के बर्तन में खाना पकाने का कोई फायदा नहीं है. यह एक ऐसा भ्रम है, जो समाज के लोगों में फैला हुआ है."
डॉ शीला सी वीर, डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डेवलपमेंट सेंटरडॉ शीला आगे कहती हैं कि एनिमिया को खत्म करने के लिए डायट ठीक करने की जरूरत है. लेकिन ये सभी के लिए आसान नहीं है, क्योंकि उसके लिए व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ पौष्टिक आहार का वहां मिलना और उस तक व्यक्ति की पहुंच का होना, इससे जुड़े हुए हैं. उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लिए पौष्टिक आहार खाने में असमर्थता की बात को माना पर उन्होंने संपन्न परिवारों में बढ़ रही एनिमिया की समस्या की तरफ भी इशारा किया.
संपन्न परिवारों की करीब 20% आबादी में भी पोषण संबंधी समस्या देखी जा रही है.
एनीमिया के साइकल को रोकना जरूरी है और इसके लिए हर एक व्यक्ति की भागीदारी महत्वपूर्ण है. ये सिर्फ किसी एक सेक्टर की बात बन कर नहीं रहनी चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
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एनीमिया किसे कहते हैं?
एनीमिया शब्द आपने कई बार और कई लोगों से सुना होगा, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका मतलब क्या है? एनीमिया का मतलब है, शरीर में लाल रक्त कोशिकाओं (रेड ब्लड सेल) की कमी होना. ऐसा तब होता है, जब शरीर में रेड ब्लड सेल के बनने की दर उनके नष्ट होने की दर से कम हो होने लगती है. ऐसा होने के कई कारण होते हैं और उनकी वजह से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.
सरल भाषा में शरीर में खून की कमी को एनीमिया कहते हैं.
एनीमिया पर AIIMS दिल्ली की अनुभवी गायनेकोलॉजिस्ट डॉ अपर्णा के शर्मा, फिट हिंदी से कहती हैं, "NFHS -5 में महिलाओं के लिए अलग-अलग कैटेगरी दी गयी है. तीनों ही कैटेगरी में एनीमिया के स्तर में बढ़ोतरी देखी गयी है पर किशोरियों और उम्रदार महिलाओं में एनीमिया ज्यादा बढ़ा हुआ देखा गया है. वहीं प्रेग्नेंट महिलाओं में उनकी तुलना में बढ़त थोड़ी कम है. इससे यह पता चलता है कि देश में एनीमिया दूर भगाने का फोकस किशोरियों और उम्रदार महिलाओं पर थोड़ा कम है".
NFHS 5 डेटा क्या कहता है?
"एनिमिया प्रोग्राम हमारे देश में सालों से है पर जब तक किसी मुद्दे को राजनीतिक प्राथमिकता नहीं मिलती है, तब वह आबादी का ध्यान अपने ऊपर आकर्षित नहीं कर पता है. जब 2018 में सरकार द्वारा एनिमिया मुक्त भारत की घोषणा की गयी तब से इसे गंभीरता से लिया जा रहा है. एनिमिया के लिए तैयार की गयी स्ट्रैटेजी सही दिशा में जा रही है".डॉ शीला सी वीर, डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डेवलपमेंट सेंटर
डॉ शीला सी वीर ने फिट हिंदी से कहा, NFHS सिर्फ पब्लिक हेल्थ सिस्टम पर रिपोर्ट नहीं बनाती है. ये पूरी आबादी पर सर्वे करती है. अभी एनिमिया से चल रही लड़ाई में केवल पब्लिक हेल्थ सेक्टर और पब्लिक स्कूल की ओर ध्यान दिया जा रहा है. जबकि ध्यान प्राइवेट हेल्थ सिस्टम की ओर भी बराबर होना चाहिए. एनिमिया हर वर्ग के लोगों में पाया जा रहा है.
"हमें समस्या से भागना नहीं चाहिए. हां, समस्या तो है और हम मानते हैं. लेकिन कहीं न कहीं एनीमिया की परिभाषा को हमें फिर से देखने की जरुरत है. हाल में ही लैन्सेट में आयी एक स्टडी के अनुसार, WHO एनीमिया के लिए जो परिभाषा का उपयोग करता है, वो भारत के मामले में शायद थोड़ा ज्यादा है, खास कर के बच्चों के मामले में".डॉ अपर्णा के शर्मा, सीनियर गयनेकोलॉजिस्ट, AIIMS दिल्ली
ये हैं एनीमिया के प्रमुख कारण
एनीमिया जन्म के समय मौजूद स्थिति (जन्मजात) या आपके द्वारा विकसित की स्थिति के कारण हो सकता है. जानें क्या कहते हैं हमारे एक्स्पर्ट्स-
डॉ शीला सी वीर के अनुसार इसके कई कारण हैं. उनमें से कुछ हैं ये, फूड ईटिंग हैबिट (food eating habit), गर्भावस्था में मां का एनिमिक होना, जन्म के बाद बच्चे के ऊपरी आहार पर ध्यान न देना और पेट में वर्म (कीड़ा) का होना भी है.
वहीं डॉ अपर्णा के शर्मा ने फिट हिंदी को एक जर्नल में प्रकाशित रिव्यू का उल्लेख करते हुए बताया कि एनीमिया सिर्फ एक स्वास्थ्य समस्या नहीं है बल्कि ये एक सामाजिक समस्या भी है. सिर्फ स्वास्थ्य सम्बंधी कमियां नहीं है बल्कि घर की महिलाओं खास कर मां के शिक्षा का स्तर भी उसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार है. मां की पढ़ाई-लिखाई और परिवार की आर्थिक स्थिति एनीमिया के स्तर का एक बेहद महत्वपूर्ण सूचक है.
बच्चों में एनीमिया का कारण
PMCH, पटना में सीनियर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ अजय कृष्ण कहते हैं, “परिवारों में बदलता ‘फूड कल्चर'. अब लोग जिन खाद्य पदार्थों का प्रचार टीवी या मोबाइल पर देखते हैं वही खाते हैं. पहले लोग अधिकतर खाने में चावल, दाल, सब्जी खाते थे और अब चिप्स, नूडलेस, जंक फूड, पैक्ट जूस खाने का चलन बढ़ गया है. इसका कारण है देश में बढ़ता जंक फूड का बाजार और इसकी मार्केटिंग जो बड़े-बड़े अभिनेता करते हैं.”
आज के समय में एनिमिया का बड़ा कारण जंक फूड है.
डॉ शीला सी वीर ने बच्चों में एनिमिया के बढ़े हुए स्तर पर चिंता जताई और कहा कि बच्चों में भी एनिमिया का स्तर बढ़ा हुआ है और इसका कारण है गर्भावस्था में मां का एनिमिक होना और जन्म के बाद बच्चे के ऊपरी आहार पर ध्यान न देना. ऊपरी ढूध और दाल के पानी जैसे खाद्य पदार्थ देना कुपोषण का कारण बनता है. पौष्टिक आहार देने की जगह जंक फूड का सेवन बढ़ता है, बच्चों में एनिमिया.
गर्भवती महिलाओं को यह बताना जरुरी है कि बात सिर्फ खून की कमी की ही नहीं है बल्कि गर्भ में पल रहे बच्चे के संपूर्ण और सही विकास की भी है. एक बात को ध्यान में रखने की आवश्यकता है कि महिलाएं मां बनने के सफर की शुरुआत स्वस्थ और एनिमिया मुक्त अवस्था में ही करें.
क्यों देश में आजादी के 75 साल बाद भी एनीमिया की समस्या बनी हुई है?
भारत में एनीमिया की स्थिति पर फिट हिंदी से बात करते हुए हमारे एक्स्पर्ट्स ने कहा कि ऐसा बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए स्थिति सिर्फ खराब ही है. बात कहीं-कहीं संभल भी रही है. जैसे झारखंड और हरियाणा जहां पर स्थिति में सुधार देखा गया है. खास कर प्रेग्नेंट महिलाओं में. जहां पर प्रोग्राम पर अच्छे से अमल किया गया है वहां पर किसी-किसी वर्ग में सुधार देखा गया है. कंप्लायंस इकलौता महत्वपूर्ण फैक्टर है, जिसमें हम फैल कर रहे हैं.
एक्स्पर्ट्स के अनुसार ये कुछ महत्वपूर्ण कारण हैं:
एनिमिया से चल रही लड़ाई में केवल पब्लिक हेल्थ सिस्टम और पब्लिक स्कूल की ओर ध्यान देना. जबकि ध्यान पब्लिक के साथ-साथ प्राइवेट हेल्थ सिस्टम और स्कूल की ओर बराबर होना चाहिए. प्राइवेट कंपनियों में काम करती महिलाओं, फ़्रंट लाइन वर्करस की तरफ फोकस नहीं करना.
एनीमिया के खिलाफ एक बहुत बड़ा हथियार है, जिसका इस्तेमाल अभी भी ठीक से नहीं किया है, वो है आईवी (IV) आयरन या आयरन का इंजेक्शन.
महिलाओं में दो प्रेगनेंसी के बीच अंतर कम होना.
खाने से जुड़े कई तरह के अंधविश्वास या रोक (taboo) का होना.
चाइल्डफंड इंडिया की वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ प्रतिभा पांडे कहती हैं, "हमारे देश में खाने से जुड़े कई तरह के रोक (taboo) हैं, जिनके बारे में जागरूकता बढ़ाते हुए उन्हें खत्म करने की आवश्यकता है. एनीमिया पर सरकारों का और देशवासियों का फोकस कभी रहा ही नहीं. शुरू से सभी का ध्यान स्टंटिंग और वेस्टिंग पर ज्यादा रहा है".
एनीमिया को हराने के क्या हैं उपाय?
12/12 के नियम पर चलें यानी कि हर 12 वर्ष की उम्र से ऊपर की लड़की/महिला का हीमोग्लोबिन 12 ग्राम प्रति डेसीलीटर होना चाहिए.
अगर लड़की स्वस्थ नहीं है, तो वो स्वस्थ मां नहीं बन सकती वैसे ही अगर मां स्वस्थ नहीं है, तो वो एक स्वस्थ उम्रदार महिला नहीं बन सकती. ये एक साइकल बन जाता है, जो शुरुआत होती है एक लड़की से.
एक्स्पर्ट्स के सुझाए कुछ उपाय.
आयरन युक्त डायट खाएं
पौष्टिक आहार लें
आयरन की गोली खाएं
समय-समय पर डीवर्मिंग (deworming) करें
पीरियड्स के दौरान बहुत अधिक खून निकालने पर गायनेकोलॉजिस्ट से जरूर संपर्क करें
प्रेग्नेंसी में आयरन और फोलिक एसिड का सेवन करें
हीमोग्लोबिन की जांच कराते रहें खास कर गर्भावस्ता में
खून की कमी होने पर आईवी (IV) आयरन या आयरन का इंजेक्शन लें
गर्भनिरोधक विधियों की जानकारी और जागरूकता बढ़ाएं
परिवार की लड़कियों और महिलाओं की पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दें
घर-परिवार में सफाई का ध्यान रखें
पब्लिक स्कूलों की तरह ही प्राइवेट स्कूलों में भी किशोरियों को आयरन की गोली खाने को दें
एनिमिया का पता लगाने के लिए खून की जांच कराते रहना एक महत्वपूर्ण कदम है. साल में एक बार हीमोग्लोबिन की जांच करानी चाहिए. अगर कम है, तो डॉक्टर से सलाह लें और इलाज कराएं.
फ्रंट लाइन वर्करों को मोटिवेट (motivate) करते रहें ताकि एनिमिया मुक्त भारत अभियान पर अमल सही और सुचारु रूप से किया जाए.
गर्भवती महिलाओं को आयरन की गोली गर्भावस्था के पहले 3 महीने बीतने के बाद दिया जाना चाहिए.
गर्भावस्था के शुरू के 3 महीने में फालिक एसिड का सेवन जरूरी है.
एनिमिया से लड़ने में आती कुछ बाधाएं ये भी हैं
हमारे यहां हीमोग्लोबिन के स्तर का पता चलना भी मुश्किल है. कारण है लोगों में जांच को ले कर गंभीरता की कमी.
“आयरन पॉट यानी कि लोहे के बर्तन में खाना पकाने से मिलने वाला आयरन एलिमेंटल आयरन (elemental iron) होता है, जो हमारा शरीर सोख (absorb) नहीं पता है. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन (National Institute Of Nutrition) ने ही मुझे बताया कि लोहे के बर्तन में खाना पकाने का कोई फायदा नहीं है. यह एक ऐसा भ्रम है, जो समाज के लोगों में फैला हुआ है."डॉ शीला सी वीर, डायरेक्टर पब्लिक हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डेवलपमेंट सेंटर
डॉ शीला आगे कहती हैं कि एनिमिया को खत्म करने के लिए डायट ठीक करने की जरूरत है. लेकिन ये सभी के लिए आसान नहीं है, क्योंकि उसके लिए व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के साथ-साथ पौष्टिक आहार का वहां मिलना और उस तक व्यक्ति की पहुंच का होना, इससे जुड़े हुए हैं. उन्होंने आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के लिए पौष्टिक आहार खाने में असमर्थता की बात को माना पर उन्होंने संपन्न परिवारों में बढ़ रही एनिमिया की समस्या की तरफ भी इशारा किया.
संपन्न परिवारों की करीब 20% आबादी में भी पोषण संबंधी समस्या देखी जा रही है.
एनीमिया के साइकल को रोकना जरूरी है और इसके लिए हर एक व्यक्ति की भागीदारी महत्वपूर्ण है. ये सिर्फ किसी एक सेक्टर की बात बन कर नहीं रहनी चाहिए.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)