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World Blood Donor Day 2023: भारत में ब्लड से जुड़ी चुनौतियां, प्रगति और भविष्य

World Blood Donor Day 2023: ढांचे की कमी, वॉलंटरी रक्तदान की कमी और ब्लड बैंकों में संक्रमण का खतरा एक मुद्दा है.

अश्लेषा ठाकुर
फिट
Published:
<div class="paragraphs"><p>World Blood Donor Day 2023:&nbsp;क्या हैं भारत में सेफ ब्लड से जुड़ी चुनौतियां?</p></div>
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World Blood Donor Day 2023: क्या हैं भारत में सेफ ब्लड से जुड़ी चुनौतियां?

(फोटो: चेतन भाकुनी/फिट हिंदी)

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World Blood Donor Day 2023: वर्ल्ड ब्लड डोनर डे हर साल 14 जून को लोगों में ब्लड डोनेशन से जुड़ी जागरूकता फैलाने और सेफ ब्लड के महत्व पर जोर देने के लिए मनाया जाता है. मरीजों के लिये पर्याप्त और सेफ ब्लड उपलब्ध कराने के लिए, जागरूकता अभियानों, सामुदायिक जुड़ाव और प्रोत्साहनों के माध्यम से वॉलंटरी ब्लड डोनेशन को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना चाहिए. क्या हैं भारत में सेफ ब्लड से जुड़ी चुनौतियां? क्या हैं ब्लड बैंक सही तरीके से चलाने से जुड़ी चुनौतियां? ब्लड डोनेशन को ले कर क्या बदलाव आए हैं? क्या हैं ब्लड बैंकों के सुचारु संचालन के लिए किए गए बदलाव? भविष्य के लिए क्या करना चाहिए? इन सारे सवालों के जवाब जानते हैं एक्सपर्ट्स से.

देश में सेफ ब्लड से जुड़ी चुनौतियां

"ढांचे की कमी, वॉलंटरी रक्तदान की कमी और ब्लड बैंकों में संक्रमण का खतरा भी एक मुद्दा है. भारत में रक्तदान के लिए जरूरी संरचनाएं नहीं हैं. परिवहन में कमी, उपयोगिता में कमी और देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ब्लड बैंकों की कमी के कारण यह समस्या होती है."
डॉ. के मदन गोपाल, सलाहकार- जन स्वास्थ्य प्रशासन, राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केंद्र (NHSRC), MoHFW, GOI

अनुभा तनेजा मुखर्जी फिट हिंदी से कहती हैं, "साफ और सुरक्षित खून से संबंधित जो कठिनाइयां हैं वह ये हैं कि हमारे देश में इंफ्रास्ट्रक्चर और सही रिसोर्सेज नहीं हैं, जिसकी वजह से खून सही प्रकार से इकट्ठा नहीं हो पाता, उसकी सही प्रकार से जांच नहीं हो पाती, उसको सही प्रकार से नहीं रखा जाता और अंत में उसका डिस्ट्रीब्यूशन नहीं हो पाता जिस प्रकार से वह हो सकता है".

कुछ चुनौतियां ये हैं:

  • अपर्याप्त बुनियादी सुविधाएं: सबसे बड़ी चुनौती देश के कई हिस्सों में संपन्न ब्लड बैंकों और लेबोरेटरीज का अभाव है.

  • वॉलंटरी रक्तदान का ​सीमित दायरा: भारत की निर्भरता अभी भी बदले में खून लेने पर दानकर्ताओं पर है, जहां किसी मरीज के लिए परिवार या मित्रों को दान करने के बदले खून दिया जाता है. 

  • क्वालिटी कंट्रोल और मानकीकरण: ब्लड और ब्लड उत्पादों की कंसिस्टेंट क्वालिटी सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है. हालांकि विभिन्न ब्लड बैंकों में उपयुक्त क्वालिटी कंट्रोल और मानकीकरण एक चुनौती बनी हुई है.

  • खून चढ़ाने पर संक्रमण का खतरा: खून चढ़ाने के दौरान एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी, मलेरिया और सिफलिस जैसे संक्रमण होने का खतरा रहता है. दान किए गए खून की जांच किए जाने के बावजूद अक्सर खून चढ़ाने पर संक्रमण के मामले सामने आते रहते हैं.

अनुभा तनेजा मुखर्जी के अनुसार, हिंदुस्तान में खून की जांच और स्क्रीनिंग का कोई स्टैंडर्डाइज्ड तरीका नहीं है, जिसके कारण रक्त की शुद्धता की सही प्रकार से जांच नहीं हो पाती. हिंदुस्तान में अभी भी ज्यादा ध्यान रिप्लेसमेंट डोनर पर दिया जाता है, जिसकी वजह से सुरक्षित खून की उपलब्धता नहीं होती है. हर रक्तदान पर ट्रांसफ्यूजन ट्रांसमिटेड इनफेक्शन (TTI)  का जैसे एचआईवी (HIV) और हेपेटाइटिस (Hepatitis) की जांच नहीं होती.

ट्रांसफ्यूजन के माध्यम से होने वाले संक्रमणों के संचरण को रोकने के लिए मजबूत जांच और परीक्षण प्रोटोकॉल आवश्यक हैं.

डॉ. फौज़िया खान कहती हैं कि लोकसभा में दिए गए 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 1.9 मिलियन यूनिट रक्त की कमी थी. सुरक्षित और पर्याप्त मात्रा में रक्त की उपलब्धता स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बहुत जरूरी होती है. हमारे देश में हेपेटाइटिस बी, हेपेटाइटिस सी और एचआईवी सहित रक्त संक्रमण (टीटीआई) बहुत प्रचलित हो गए हैं, जिसको सही ढंग से नियंत्रित करना जरूरी है.

"मातृ मृत्यु में एक चौथाई हिस्सा ब्लड की कमी और खोया हुआ रक्त पुनर्प्राप्ति न होने के कारण होता है, जिसका हल निकालना हमारे स्वस्थ भारत के लिए आवश्यक है."
डॉ. फौज़िया खान, सांसद (राज्य सभा)

ब्लड बैंक सही तरह से चलाने से जुड़ी चुनौतियां

"ब्लड बैंकों में वित्तीय अभाव के कारण ल्यूकोडिप्लेशन, एनएटी टेस्टिंग, एक्सटेंडेड फेनोटाइपिंग, एंटीबॉडी स्क्रीनिंग और आइडेंटिफिकेशन जैसे सॉफ्टवेयर और आधुनिक टेक्नोलॉजी लगाने में दिक्कत आती है."
डॉ. सीमा सिन्हा, एचओडी - ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

डॉ. सीमा सिन्हा ने फिट हिंदी के साथ शेयर की ब्लड बैंक सही तरह से चलाने से जुड़ी चुनौतियां.

  • अपर्याप्त बुनियादी सुविधाएं

  • प्रोसेसिंग शुल्क सीमित (वर्ष 2014 से अभी तक प्रति यूनिट 100 रुपये ही बढ़े हैं) रखने के कारण कर्मचारियों की कमी. कर्मचारियों की संख्या में कमी की दर भी बढ़ी है.

  • खून को ड्रग माना जाता है और इस पर ड्रग प्राधिकरणों का नियंत्रण रहता है, जहां खून चढ़ाने से जुड़े मेडिसिन विशेषज्ञों का प्रतिनिधित्व नहीं रहता.

  • कई सारे ऐसे ब्लड बैंक खुल गए हैं जहां काम की गुणवत्ता नहीं रहती बल्कि सिर्फ मुनाफा कमाने पर ध्यान दिया जाता है.

  • राष्ट्रीय स्तर पर ब्लड बैंकों का कोई मानकीकरण नहीं है.

  • सीमित संख्या में स्वैच्छिक रक्तदाता. अंतरराष्ट्रीय मरीजों की बढ़ती संख्या के लिए कोई अपनी तरफ से दान के लिए आगे नहीं आता, इस वजह से खून की कमी बनी रहती है.

  • कई सेंटरों में रक्त जांच की गुणवत्ता खराब रहती है. लंबी जांच प्रक्रिया के कारण संक्रमित खून चढ़ाने का खतरा रहता है (जिसे एनएटी टेस्टिंग से कम किया जा सकता है).

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ब्लड डोनेशन को ले कर क्या बदलाव आए हैं?

बीते सालों में ब्लड डोनेशन और सेफ ब्लड को ले कर आए बदलावों में कुछ बदलाव ये हैं:

  • नाको गाइडलाइन लागू करना: राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) ने भारत में सुरक्षित खून को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है. संगठन ने ब्लड बैंकों के लिए गाइडलाइन बनाए हैं, जिनमें मानकीकृत (standardised) प्रक्रियाओं पर फोकस, जांच में सुधार तथा वॉलंटरी ब्लड डोनेशन को बढ़ावा देने के निर्देश शामिल हैं.

  • न्यूक्लिक एसिड टेस्टिंग (NAT): संक्रमित एजेंटों की पहचान बढ़ाने के लिए कुछ ब्लड बैंकों में NAT शुरू किया गया है, जिसमें इन्फेक्शन को पहचानने का समय घट जाता है. NAT टेस्टिंग शुरुआती चरण में ही एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी जैसे संक्रमणों की पहचान करने में मदद करता है, जिससे खून की सुरक्षा बढ़ जाती है. 

  • जागरूकता अभियान: वॉलंटरी ब्लड डोनेशन, खून चढ़ाने की सुरक्षित प्रक्रियाओं और खून देने के बदले दानकर्ताओं से खून लेने के जोखिमों के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए कई जागरूकता अभियान चलाए गए हैं. इन मुहिमों से एक पॉजिटिव प्रभाव पड़ा है और खून की सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ी है.

  • मान्यता और नियामक (regulatory) उपाय: नेशनल एक्रिडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स (एनएबीएच) जैसे संगठनों द्वारा ब्लड बैंकों की मान्यता को प्रोत्साहित​ किया गया है. दिशा-निर्देशों का पालन सुनिश्चित करने और नियमित रूप से निरीक्षण करने को लेकर नियामक संस्थाएं भी अब ज्यादा सख्त हो गई हैं.

"हमारे देश में वॉलंटरी ब्लड डोनेशन के लिये काफी जागरूकता अभियान लाए गए हैं, जो आम लोगों को भी इसके बारे में बताते हैं. इन सब प्रयासों से हमने देश में साफ खून दाताओं की संख्या बढ़ाई है और रिप्लेसमेंट डोनेशन की संख्या घटाई गई है. लेकिन अभी भी काफी काम करना है."
अनुभा तनेजा मुखर्जी, सदस्य सचिव, टीपीएजी TPAG और थैलीसीमिया मरीज

अनुभा तनेजा मुखर्जी कहती हैं कि रक्तदान और ट्रांसफ्यूजन सेवाओं को नियंत्रित करने वाले नियामक ढांचे को मजबूत किया गया है. सरकार ने कड़े नियमों और दिशानिर्देशों को लागू किया है, जो गुणवत्ता नियंत्रण, मानकीकरण और सुरक्षा दिशानिर्देशों पर जोर देते हैं. लेकिन इनको अभी मैंडेटरी/ अनिवार्य नहीं किया गया है. रक्तदाता अभी भी अपने हिसाब से चुन सकते हैं कि कौन सी रक्तदान की गाइडलाइन वह इस्तेमाल करना चाहते हैं.

ब्लड बैंकों के सुचारु संचालन के लिए किए गए बदलाव

डॉ. सीमा सिन्हा ने फिट हिंदी को बताया ब्लड बैंकों में आये हुए बदलावों के बारे में.

  • राज्यों की परिषद द्वारा खून चढ़ाने की प्रक्रिया पर सख्त नियंत्रण किया गया है. दवाओं और कॉस्मेटिक कार्यों का पालन कराने के लिए ड्रग इंस्पेक्टरों द्वारा समय-समय पर ब्लड बैंकों का निरीक्षण किया जाता है.

  • वर्ष 2008 में ब्लड बैंकों के लिए एनएबीएच मान्यता स्थापित की गई.

  • मरीजों को चढ़ाए जाने वाले खून के संक्रमण की जांच की अवधि कम करने के लिए ब्लड बैंकों ने NAT टेस्टिंग शुरू की है.

  • अस्पताल और राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन परिषद वॉलंटरी रक्तदान गतिविधियों को बढ़ावा दे रही हैं.

  • प्राइवेट ब्लड बैंकों को रक्तदान शिविर आयोजित करने के लिए भी मंजूरी मिलने लगी है.

  • ब्लड बैंकों के बीच बड़ी मात्रा में खून के आदान-प्रदान की अनुमति एनबीटीसी (नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल) से मिल गई है.

भविष्य के लिए क्या करना चाहिए?

"सुरक्षित खून की समय पर उपलब्धता जीवन बचाने के लिए बहुत जरूरी है. ब्लड बैंक और स्वास्थ्य सुविधाएं, नवीनतम परीक्षण तकनीकों और निदान मानकों के साथ अपग्रेड करने की आवश्यकता है. सुरक्षित रक्त की पहुंच सुनिश्चित करने के लिए नवीनतम जांच तकनीकों का अनिवार्य उपयोग जल्दी से होना चाहिए."
डॉ. फौज़िया खान, सांसद (राज्य सभा)

हम आगे कैसे बढ़ सकते हैं, बता रहे हैं हमारे एक्सपर्ट्स.

  • बुनियादी सुविधाओं की मजबूती: देशभर में ब्लड बैंकों और लेबोरेटरीज को बनाने और उन्नत करने के लिए निवेश की जरूरत है. इनमें जांच सुविधाएं बढ़ाना, बेहतर भंडारण प्रक्रियाएं लागू करना और ब्लड प्रोसेसिंग और इससे कंपोनेंट अलग करने के लिए आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना शामिल है.

  • वॉलंटरी रक्तदान को बढ़ावा देना: जागरूकता अभियान शुरू करने, रक्तदान मुहिम का आयोजन करने और दानकर्ताओं को प्रोत्साहन पुरस्कार देने के जरिये वॉलंटरी रक्तदान को बढ़ाने का प्रयास किया जाना चाहिए. नियमित रूप से रक्तदान करने वालों को बढ़ावा देने से सुरक्षित ब्लड की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित होती है.

  • प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण: ब्लड बैंकों में काम करने वाले स्वास्थ्यकर्मियों के लिए निरंतर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाए जाने चाहिए. इससे रक्त संग्रह, जांच, परीक्षण और भंडारण जैसे क्षेत्रों में उनकी जानकारी और स्किल बढ़ेगी और खून को सुरक्षित रखने का अभ्यास भी बढ़ेगा.

  • सख्त मॉनिटरिंग सिस्टम: खून के बदले दान करने वालों पर नजर रखने के लिए एक मजबूत निगरानी सिस्टम विकसित करने से उभरते चलन की पहचान हो सकती है और ब्लड की सुरक्षा में किसी तरह की खामी को सक्रियता से दूर किया जा सकता है. इनमें ब्लड बैंकों के अंदर आधुनिक जांच तकनीक का इस्तेमाल और डाटा साझा करने का मैकेनिज्म शामिल है.

  • रिसर्च और इनोवेशन: ब्लड की सुरक्षा के क्षेत्र में रिसर्च और इनोवेशन को बढ़ावा देने से इन्फेक्शन नियंत्रण के लिए उन्नत जांच पद्धतियों (advanced detection methods), टेक्नोलॉजी और संक्रमण नियंत्रण की रणनीतियों को विकसित किया जा सकता है. इस क्षेत्र में इनोवेशन लाने के लिए शोधकर्ताओं, स्वास्थ्य से जुड़े पेशेवरों और नियामक संस्थाओं (regulatory bodies) के बीच आपसी सहयोग बहुत जरूरी है.

"खून की जांच के लिए NAT टेस्टिंग जैसी आधुनिक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना चाहिए. बदले में खून देने वालों को वॉलंटरी रक्तदाता बनने के लिए प्रेरित करना और बड़े पैमाने पर रक्तदान शिविरों का आयोजन करना.
डॉ. सीमा सिन्हा, एचओडी - ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, नोएडा

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