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चाय,पोहा,सत्तू पर चर्चा; जनता की आफत पर नेता की दावत

..क्योंकि वोट का रास्ता पेट से होकर जाता है

कौशिकी कश्यप
भूतझोलकिया
Updated:
चाय,पोहा,सत्तू पर चर्चा, क्योंकि वोट का रास्ता पेट से होकर जाता है
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चाय,पोहा,सत्तू पर चर्चा, क्योंकि वोट का रास्ता पेट से होकर जाता है
(फोटो: कनिष्क दांगी/द क्विंट)

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'वोट का रास्ता पेट से होकर जाता है'.

पिछले 4 सालों से ये ट्रेंड बन गया है. देश में समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो सबका समाधान खाने-पीने की चीजों के साथ ही निकलेगा. चाहे रोजगार न बढ़े, या महंगाई न घटे. सत्ता में बैठे लोगों को अपनी पीठ थपथपानी हो चाहे विपक्ष में बैठे लोगों को कुर्सी पर बैठी सरकार को घेरना हो. इंडियन पाॅलिटिक्स और खाने का कनेक्शन सब ठीक कर देगा.

समझने में दिक्कत आ रही है तो जरा इस ट्रेंड पर गौर करें.

बिहार में तेजप्रताप यादव की 'सत्तू पर चर्चा' की चर्चा है. 9 जुलाई को तेजप्रताप अपने विधानसभा क्षेत्र महुआ पहुंचे जहां 'सत्तू विद तेजप्रताप' आयोजित की गई थी. एकदम ठेठ, देसी अंदाज में तेजप्रताप जमीन पर बैठे, सत्तू में मसाला पानी डालकर उसे गूंथते नजर आए.

इस बीच समर्थक तेजप्रताप का जयकारा लगाते रहे.

तेजप्रताप ने कार्यक्रम से पहले कहा था कि “इस पार्टी के जरिए मुद्दों पर चर्चा करूंगा और बिहार के सत्तू की सुगंध को देश के कोने-कोने में लेकर जाऊंगा.”

जिस तरह से लालू प्रसाद यादव का असर देखकर नीतीश कुमार जला करते थे वैसे सत्तू का असर देख लिट्टी-चोखे को भी अब जलन महसूस हो रही होगी.

लालू यादव के बाद जनता तेजप्रताप में ही एक ठेठ, देसी अंदाज वाले ‘असली बिहारी’ की छवि देख रही है. ऐसे में सत्तू पर लट्टू हुए तेजप्रताप इसकी सुगंध के साथ-साथ अपनी राजनीतिक धमक कोने-कोने तक पहुंचाना चाह रहे हैं.

तेज प्रताप यादव अपने विधानसभा क्षेत्र महुआ में ‘सत्तू पार्टी’ करते हुए(फोटो: Twitter/@TejYadav14)

मध्यप्रदेश में भी 'पोहा पर चर्चा' होने वाली है. आम आदमी पार्टी मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में पोहा चौपाल लगाने जा रही है, जिसमें पार्टी आम लोगों से मुलाकात और चर्चा कर अपना चुनावी मेनिफेस्टो तैयार करेगी.

धरने से ऊब चुकी पार्टी को कुछ नया करना था. सोचा गया क्यों न लोकप्रिय होने के लिए लोकप्रिय व्यंजन का ही सहारा ले लिया जाए. दिल्ली में एलजी के कारण छोले-भठूरे की चौपाल नहीं लग पाई तो एमपी में ही पोहा चौपाल की तैयारी में जुट गई पार्टी.

आप के प्रदेश संयोजक आलोक अग्रवाल ने इसे लेकर कहा था, "मुझे पोहा चौपाल का विचार इसलिए आया क्योंकि मध्यप्रदेश में दिन की शुरुआत करते हुए नाश्ते में ये व्यंजन बहुत लोकप्रिय है. इसलिए हमने आम जनता से सीधे जुड़कर उनके मुद्दों पर चर्चा के लिए प्रदेश भर में पोहा चौपाल लगाने का अभियान शुरू किया है.’’

AAP लगाएगी ‘पोहा पर चौपाल’  (फोटो: द क्विंट)

कहीं लोकप्रिय व्यंजन का साथ पार्टियों को लोकप्रिय बना रही है तो कहीं पार्टियां व्यंजन को लोकप्रिय बना रही है. देश में छिड़ी पकौड़े पर बहस को कौन भूल सकता है!

बर्गर, पिज्जा और सैंडविच के चक्कर में लोगों ने देसी स्नैक्स पकौड़े को भुला ही दिया था. लेकिन अकेलेपन और बाजारू जद्दोजहद के बीच सिर्फ पीएम मोदी ने इसका साथ दिया है. पकौड़ा गरमागरम बहस का मुद्दा बना दिया गया.
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नरेंद्र मोदी का पकौड़े वाले रोजगार पर दिए गए बयान के बाद विपक्ष ही नहीं, सोशल मीडिया ने भी इसे लेकर खूब चुटकी ली थी. लेकिन इसे छोटे कामगारों से जोड़कर बीजेपी गरीब तबके तक अपनी पहुंच बनाना चाहती थी ताकि पकौड़े पर हो रही किरकिरी को गरीब तबके के सम्मान के साथ जोड़ा जा सके.

वैसे अब इसमें मोदी जी का क्या कसूर कि नोएडा के जिस प्राइवेट चैनल की आॅफिस में बैठकर उन्होंने पकौड़ा रोजगार का फाॅर्मूला दिया था, नोएडा पुलिस उसी फिल्म सिटी में पकौड़े बेचने वालों का धंधा उजाड़ चुकी है. अब सीएम योगी आदित्यनाथ को एनकाउंटर से फुर्सत मिले तो पीएम की बातों को ध्यान में रखते हुए उनके रोजगार की सुध लें.

खैर, पीएम के बयान का नतीजा ये हुआ, 13 फरवरी 2018 को पूरी दिल्ली में पकौड़े पर चर्चा अभियान की शुरूआत कर दी गई. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी ‘पकौड़ा पर चर्चा’ के सूत्रधार रहे. पहली बार दिल्ली सहित देश ने मनोज तिवारी को राजनीतिक पद पर रहते हुए एक बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए देखा!

पकौड़े पर चर्चा के दौरान मनोज तिवारी  (फोटो: Twitter)

अब चर्चा की चर्चा में 'चाय पर चर्चा' की चर्चा तो बनती है. अहमदाबाद में कड़ी सुरक्षा के बीच एक पॉश क्लब के सामने इस्कॉन टी स्टॉल से नरेंद्र मोदी ने अपनी बहुप्रचारित 'चाय पे चर्चा' मुहिम शुरू की थी. इस कार्यक्रम का सैटेलाइट, डीटीएच, मोबाइल और इंटरनेट के जरिए लाइव टेलीकास्ट किया गया. चुनावी मुहिम में 'चाय पे चर्चा' ने पीएम मोदी की लोकप्रियता में और उबाल ला दिया था.

इन चर्चाओं से इतर देखें तो नेताओं की कभी डिनर डिप्लोमेसी कभी दलितों के साथ उनके घर पर खाना हमेशा सुर्खियां बटोर जाता है.

वोटों की खातिर हर किसी को भाता है दलित-पिछड़ों के साथ बैठकर खाना(फोटो: द क्विंट)

सोनिया की डिनर डिप्लोमेसी में विपक्ष एकजुट हुआ और 2019 के संभावित महागठबंधन की खिचड़ी पकी.

सोनिया गांधी की ‘डिनर डिप्लोमेसी’, 13 मार्च को जुटें विपक्षी दल(फोटो: द क्विंट)

किसान बचाओ, रोजगार बचाओ, रोजगार दिलाओ अब इन सादे नाम वाले कार्यक्रमों में दिलचस्पी कम रह गई है तो खाने-पीने की चीजों के नाम पर नेता भीड़ जुटा रहे है. ऐसी चीजों को चुना जाता है जो अमीर-गरीब दोनों तबकों में समान रूप से लोकप्रिय हो.

खाने-पीने के साथ बाकी तो सब ठीक है लेकिन ज्यादा हो जाए तो बदहजमी हो जाती है. तो हमारी अपने आदरणीय नेताओं को यही सलाह है कि लोगों की आफत और लोक-लुभावन दावत में तालमेल बना कर चलें. क्योंकि अगर जनता को बदहजमी हो गई तो चुनावों में भारी पड़ जाएगी.

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Published: 11 Jul 2018,08:07 PM IST

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