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प्यारे भक्तों,
(मैं सिर्फ आपके लिए मेहनत करके आंकड़े लेकर आया हूं, उन लोगों के लिए नहीं, जो बात-बात पर किचकिच करते हैं और बुराई निकालते हैं. क्योंकि मेरी आदत है सीधी बात, नो बकवास).
आजकल एक कैंपेन चल रहा है. ये बताया जा रहा है कि नौकरियां नहीं मिल रही हैं. बड़े-बड़े नामों का हवाला देकर बड़ी-बड़ी हेडलाइंस परोसी जा रही हैं. कुछ नमूने आप भी देख लीजिए:
इस तरह के हेडलाइंस आपको डराएंगे. लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है. इसकी काट हम आपको बताएंगे. आपको सिर्फ दो रिपोर्ट के कुछ अंश पढ़ने होंगे. जी हां, कुछ चुनिंदा अंश ही. क्योंकि मैं जानता हूं कि आपको आंकड़ों से नफरत है, इसलिए पूरी रिपोर्ट पढ़कर कन्फ्यूज होने की जरूरत नहीं है. आप सबके लिए यहां छोटा सारांश दे रहे हैं.
अब जरा सोचिए, एक स्कीम का फायदा इतने लोगों को हो सकता है, तो सारी स्कीम को मिला दिया जाए, तो देश में कोई नहीं बचेगा, जिसको किसी न किसी स्कीम से फायदा न हुआ हो.
हमेशा नुक्ताचीनी और किचकिच करने वाले एंटी-नेशनल्स कहेंगे कि इस तरह की स्कीम में तो किसी तरह पेट भरने लायक आमदनी ही होती है. कोई सोशल सिक्योरिटी नहीं, कोई सेविंग नहीं. बस कुछ दिनों के लिए पेट भर जाता है और बाकी दिनों में वही पेट भरने की जद्दोजहद. इसका तो बड़ा ही सिंपल जवाब है- नौकरी के मौके की बात हुई थी, सोशल सिक्योरिटी की नहीं.
यहां एक चेतावनी दे दूं कि नीति आयोग की रिपोर्ट की बारीकियों में जाने की जरूरत नहीं है. सरकारी स्कीमों से मिले फायदों का मतलब हमेशा ये नहीं है कि नौकरी के नए अवसर बढ़े हैं. ऐसा भी हो सकता है कि लोगों ने खेत में मजदूरी छोड़कर मनरेगा में काम करना शुरू कर दिया हो. इसीलिये इन बारीक बातों को पढ़ने की जरूरत नहीं है.
नौकरियां नहीं मिल रही हैं, इस तरह के अफवाहों का जवाब देने के और भी तर्क हैं-
गौर से पढ़िए. पेंशन और टीडीएस के आंकड़ों के आधार पर रोजगार का पूरा डेटाबेस तैयार किया जा सकता है.
उंगली करने वाले फिर अजीबो-गरीब सवाल उठाएंगे— अगर किसी ने पेंशन स्कीम खरीदी और फिलहाल उसके पास नौकरी नहीं है तो? या किसी का चार फर्म में टीडीएस कटता है. इसको एक जॉब माना जाएगा या फिर 4. इन सवालों पर ध्यान नहीं देना है. पूछने वाले तो ये भी कहेंगे उसी नीति आयोग के रिपोर्ट में लिखा गया है कि इन डेटाबेस को आंख बंदकर मान लेना सही नहीं होगा. बहुत सारे डुप्लीकेशन होंगे.
इस तरह के कन्फ्यूजन हो, तो अर्न्स्ट और यंग की रिपोर्ट पढ़ लीजिए. इस रिपोर्ट की खासियत है इसमें लिखी गोलमोल बातें. इस रिपोर्ट में दुश्मनों को खारिज करने वाले कुछ शब्दों का प्रयोग किया है, जिसे कहीं भी फेंका जा सकता है. शब्द दोहराता हूं- डिकप्लिंग, माइक्रो एंटरप्रेन्योरशिप और एक्सपोनेंशियल टेक्नोलोजी. इन शब्दों को हिंदी में जानने की जरूरत भी नहीं है. इनकी खासियत इनके अटपटेपन में ही है.
आपकी सेवा में
न्यू डेटा क्रिएशन और डेसिमिनेशन सेंटर (जो भक्तों की सेवा में लगा है)
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