वीडियो एडिटर- मो. इब्राहिम
कैमरा- आकांक्षा कुमार
जब पूरा देश 25 मार्च को रामनवमी मना रहा था, तो भारत के इनफॉर्मल सेक्टर का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने 'शिक्षा और रोजगार मेरा जन्मसिद्ध अधिकार' जैसे नारे वाले प्लेकार्ड के साथ संसद तक मार्च में भाग लिया.
इन सभी को लगता है कि नया कानून- भगत सिंह राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (बीएसएनईजीए) उनकी मुसीबतों से उन्हें छुटकारा दिलाएगा.
'सबको शिक्षा, सबको काम, वरना होगी नींद हराम' जैसे गूंजते नारों की बदौलत राजनेताओं को चेतावनी देने की कोशिश की गई कि चुनाव वर्ष में नौकरी की कमी की समस्या को नजरअंदाज न करें.
1 करोड़ नौकरियों का बीजेपी का 'खोखला' वादा :
2013 में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है, तो हर साल 1 करोड़ नौकरियों का सृजन किया जाएगा. श्रमिक और बेरोजगार लोग अब सरकार से पूछ रहे हैं कि वे नौकरियां कहां हैं, जिस पार्टी ने 'अच्छे दिन' का वादा करके कि सत्ता हासिल की? उसके लिए रोजगार की समस्या 2019 लोकसभा चुनाव से पहले एक बाधा के रूप में उभर सकती है.
रोजगार के अधिकार की मांग के लिए इस अभियान के तहत ये मांगें शामिल हैं:
- गांव के स्तर पर स्थायी रोजगार प्रदान करें और 10,000 रुपये प्रतिमाह की न्यूनतम बेरोजगारी भत्ता दें.
- मनरेगा के दायरे को 100 दिनों से बढ़ाकर 365 दिन का विस्तार करें और समय पर भुगतान तय करें.
- ठेकेदारी पर मजदूरी खत्म किया जाना चाहिए.
- 'रोजगार का अधिकार' को मौलिक अधिकारों के तहत शामिल करें.
- केन्द्र और राज्यों के स्तर पर तत्काल प्रभाव से रिक्त पदों की भर्तियां करें और समय पर नियुक्तियों को सुनिश्चित करें.
दिल्ली में मांगों की शोर गूंजने के बाद, रोजगार के अधिकार की मांग दूसरे राज्यों में भी हो सकती है. हालांकि सवाल यह है कि क्या कानूनी अधिकार मिल जाने से सभी के लिए नौकरी सुनिश्चित हो जाएगी?
विशेषज्ञों का मानना है कि गांव स्तर पर संस्थानों की जवाबदेही तय करने से यह सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलेगी कि समान अवसर सभी के लिए उपलब्ध हैं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)