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कभी खली तो कभी सोनम बेवफा क्यों होते हैं ट्रेंड:Meme की पूरी कहानी

कभी इंटरनेट ‘नगरपालिका’ को बुलाने लगता है तो कभी ‘गोरमिंट आंटी’ चल पड़ती हैं आखिर क्यों?

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सोशलबाजी
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<div class="paragraphs"><p>मीम के ट्रेंड करने की वजह क्या है?</p></div>
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मीम के ट्रेंड करने की वजह क्या है?

(फोटो-अलटर्ड बाई द क्विंट)

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“सर उपर टेंपरेचर कितना है”.....”सर शर्ट फैला के आसमान बना दो”.......”सर मार्क जुकरबर्ग की जॉब हड़प लो”......”सर कूद जाओ और भूकंप ला दो”...

'ग्रेट खली' के इंस्टाग्राम पोस्ट पर ऐसे कमेंट की बाढ़ इतनी आई कि उनको अपना कमेंट सेक्शन बंद करना पड़ा गया.लेकिन उससे पहले ही "खली से फरमाइश" के ट्रेंड ने ऐसी स्पीड पकड़ी कि हर तरफ बस इसी के चर्चे.ऐसा लगा कि खली की पॉपुलैरिटी वैसे ही रातों रात रिवाइव हो गयी जैसे रेसलिंग में 'मरने' के बाद कब्र से 'अंडरटेकर' हुआ करता था.

खली से इंस्टाग्राम पर 'हाथ से सूरज को ढक कर दिन को रात कर दो' की फरमाइश आज के ‘मीम कल्चर’ वाले समाज के लिए आश्चर्यजनक नहीं है.हर दूसरे महीने एक नया ट्रेंड चलता है।कभी एक अंडे की तस्वीर दुनिया में इंस्टाग्राम पर सबसे ज्यादा लाइक की गई तस्वीर हो जाती है तो कभी कोई 'सोनम' बिना कुछ किए बेवफा.

आखिर कुछ मीम वायरल क्यों हो जाते हैं ?

कभी इंटरनेट 'नगरपालिका' को बुलाने लगता है तो कभी 'गोरमिंट आंटी' को लगातार सुनता चला जाता है. सितंबर 2017 में लगभग 13000 लोग दिल्ली के CP में "बोलना आंटी आऊं क्या" का नारा लगाने इकट्ठा हो गयें. कारण सिर्फ मीम का वायरल हो जाना था. लेकिन किसी मीम के वायरल होने का कारण क्या है?

कई विशेषज्ञ मीम कल्चर को समझने के लिए डार्विन के सिद्धांत का प्रयोग करते हैं. जिस तरह डार्विन के सिद्धांत में सबसे मजबूत और प्रतिस्पर्धी जीव ही अपने आप को सरवाइव रख सकता है उसी तरह मीम आपस में किसी खास संदर्भ में अपने ह्यूमर और रिलेटिविटी के साथ प्रतिस्पर्धा करते हैं.इसमें से जो मीम बाजी मारते हैं,वें वायरल हो जाते हैं.इसके अलावा कई बार मीम सिर्फ अपने अनोखेपन के लिये वायरल होतें है.उसमें किसी मतलब का होना जरूरी नहीं है. इसका सबसे अच्छा उदाहरण ‘विनोद’ कमेंट के मीम का ट्रेंड हो जाना है.
ड्रेक यूनिवर्सिटी के इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी लॉ के प्रोफेसर Shontavia Johnson के अनुसार “मीन कल्चर किसी चीज को लोकप्रिय बनाने से कहीं अधिक है. सबसे अच्छा मीम वही है जो सबसे अधिक और देर तक हमारे दिमाग में चक्कर काटता है और वही मीम वायरल हो जाते हैं. कुछ हद तक मीम मानव संस्कृति के निर्माण के लिए भी जिम्मेदार हैं”.
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मीम का इतिहास आपको पता है?

अगर मीम शब्द के ओरिजिन की बात करें तो मीम का कांसेप्ट सबसे पहले विहेवियर रिसर्चर Richard Dawkins की किताब The Selfish Gene (1976) में सामने आया था.मीम शब्द का प्रयोग उन्होंने एक वायरस के मेटाफर में किया था जो एक आइडिया, व्यवहार या स्टाइल के रूप में एक कल्चर के भीतर एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलता है.लेकिन आगे इंटरनेट ने Richard Dawkins के कांसेप्ट का प्रयोग अपने मुताबिक किया .

उनके अनुसार ‘इंटरनेट मीम’ का मतलब ही है ओरिजिनल आइडिया को हाईजैक करना और उसका अपनी समझ और पसंद को जोड़ के उसको आगे फैला देना.एक इंटरव्यू में Dawkins ने उनके ‘मीम’ शब्द के मतलब और इंटरनेट द्वारा उसका अपने हिसाब से प्रयोग के सवाल पर कहा-

‘इंटरनेट द्वारा मीम का अर्थ उसके ओरिजिनल अर्थ से बहुत ज्यादा नहीं बदला है। कोई भी चीज़ जो वायरल हो जाए वो मीम है.जब सबसे पहले मीम शब्द का प्रयोग मैंने The Selfish Gene के अंतिम चैप्टर में किया था तब वह वास्तव में एक वायरस का मेटाफर था.इसलिए जब कोई कहता है कि कोई चीज़ इंटरनेट पर वायरल हो गई है तो उसी का मतलब मीम है “
Richard Dawkins

Judge Magazine के 1921 के संस्करण मे छपे इस चित्र को कई लोग पहला मीम मानते हैं-

मीम कल्चर:इसमें कुछ बुरा भी है

मीम की सबसे बड़ी ताकत उसका युवाओं में तेजी से फैलना है और कई बार यह उसकी सबसे बड़ी कमजोरी भी हो जाती है.यूटाह स्टेट यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंटिस्ट Nick Flann के मुताबिक "मीम इंसानों में फैलते हैं और उनको प्रभावित करते हैं. यह सिर्फ हंसी-मजाक की बात नहीं है. यह वास्तव में आपके व्यवहार और समाज को बदल सकता है. मीम दुनिया में फैलता है क्योंकि आज हमारे पास इंटरनेट है और उन्नत तकनीक का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस है".

मीम कल्चर का एक बुरा पक्ष मीम बनाने वाले के लिए यह है कि यह आपको रातों रात “वायरल” तो करता है परंतु तुरंत ही वह आपको शोहरत की उस उंचाई पर ले जाकर अकेला छोड़ भी देता है.फिर हर विनोद, दीपक कलाल “रेलेवेंट” होने की पूरजोर कोशिश करते हैं परंतु तब तक समाज को अपना दूसरा ‘विनोद’ मिल गया होता है. पुराने मीमर रेलेवेंट होने की कोशिश में कभी मर्यादा की सीमा लांघते हैं तो कभी स्वयं डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं.

सरल, सहज और कई बार तर्कहीन ‘खली से फरमाइश' में खुशी ढूंढना गलत नहीं है. लेकिन क्या इसका कारण समाज का भावनात्मक अकेलापन है ? अगर हां तो इंसान से इंसान की दूरी को मीम कल्चर से पूरा नहीं किया जा सकता.

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