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वैलेंटाइन वीक पर माशूका के साथ डेटिंग से पहले मूड बना लीजिए

प्‍यार-मोहब्‍बत पर आधारित 5 कवियों की बेहतरीन रचनाएं

अमरेश सौरभ
लाइफस्टाइल
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वैलेंटाइन वीक शुरू होते ही हर ओर हवाओं में प्‍यार की खुशबू तैरने लगी है. सतरंगे गुलाबों की दमक और प्‍यार की नमी से आसमान पर इंद्रधनुष की छटा छाई हुई है. गुलाबी ठंड के बीच आज हर इंसान जैसे मोहब्‍बत की गर्माहट की ही तलाश में हो...

मतलब, आज अगर कालिदास होते, तो कहते कि इस वैलेंटाइन वीक पर कामदेव एक बार फिर से धरती पर विजयघोष करने निकल पड़ा है. यह अलग बात है कि कामदेव के लिए अब विजय पाने को धरती का कोई इलाका बचा ही कहां है!

बस, इन इशारों को समझकर, थोड़ी शिद्दत से महसूस करने की जरूरत है. वो कहते हैं न, 'शौक-ए-दीदार हो, तो नजर पैदा कर...'

वैलेंटाइन वीक पर पढ़िए प्‍यार-मोहब्‍बत पर आधारित 5 कवियों की बेहतरीन रचनाएं.

दोनों ओर प्रेम पलता है : मैथिलीशरण गुप्त

सीस हिलाकर दीपक कहता--

’बन्धु वृथा ही तू क्यों दहता?’

पर पतंग पड़कर ही रहता

कितनी विह्वलता है!

दोनों ओर प्रेम पलता है.

बचकर हाय! पतंग मरे क्या?

प्रणय छोड़कर प्राण धरे क्या?

जले नहीं तो मरा करे क्या?

क्या यह असफलता है!

दोनों ओर प्रेम पलता है.

कहता है पतंग मन मारे--

’तुम महान, मैं लघु, पर प्यारे,

क्या न मरण भी हाथ हमारे?

शरण किसे छलता है?’

दोनों ओर प्रेम पलता है.

दीपक के जलने में आली,

फिर भी है जीवन की लाली.

किन्तु पतंग-भाग्य-लिपि काली,

किसका वश चलता है?

दोनों ओर प्रेम पलता है.

जगती वणिग्वृत्ति है रखती,

उसे चाहती जिससे चखती;

काम नहीं, परिणाम निरखती.

मुझको ही खलता है.

दोनों ओर प्रेम पलता है.

(फोटो: iStock)
(फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)

पुरुष प्रेम संतत करता है, पर, प्रायः, थोड़ा-थोड़ा,

नारी प्रेम बहुत करती है, सच है, लेकिन, कभी-कभी.

****

फूलों के दिन में पौधों को प्यार सभी जन करते हैं,

मैं तो तब जानूंगी जब पतझर में भी तुम प्यार करो.

जब ये केश श्वेत हो जायें और गाल मुरझाये हों,

बड़ी बात हो रसमय चुम्बन से तब भी सत्कार करो.

****

प्रेम होने पर गली के श्वान भी

काव्य की लय में गरजते, भूंकते हैं.

(फोटो: pixabay)
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(फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)

दो प्राण मिले : गोपाल सिंह नेपाली

दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूँद चले.

भौंरों को देख उड़े भौरें, कलियों को देख हंसी कलियां,

कुंजों को देख निकुंज हिले, गलियों को देख बसी गलियां,

गुदगुदा मधुप को, फूलों को, किरणों ने कहा जवानी लो,

झोंकों से बिछुड़े झोंकों को, झरनों ने कहा, रवानी लो,

दो फूल मिले, खेले-झेले, वन की डाली पर झूल चले,

दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूंद चले.

इस जीवन के चौराहे पर, दो हृदय मिले भोले-भाले,

ऊंची नजरों चुपचाप रहे, नीची नजरों दोनों बोले,

दुनिया ने मुंह बिचका-बिचका, कोसा आजाद जवानी को,

दुनिया ने नयनों को देखा, देखा न नयन के पानी को,

दो प्राण मिले झूमे-घूमे, दुनिया की दुनिया भूल चले,

दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूंद चले ।

तरुवर की ऊंची डाली पर, दो पंछी बैठे अनजाने,

दोनों का हृदय उछाल चले, जीवन के दर्द भरे गाने,

मधुरस तो भौरें पिए चले, मधु-गंध लिए चल दिया पवन,

पतझड़ आई ले गई उड़ा, वन-वन के सूखे पत्र-सुमन

दो पंछी मिले चमन में, पर चोंचों में लेकर शूल चले,

दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूंद चले ।

नदियों में नदियां घुली-मिलीं, फिर दूर सिंधु की ओर चलीं,

धारों में लेकर ज्वार चलीं, ज्वारों में लेकर भौंर चलीं,

अचरज से देख जवानी यह, दुनिया तीरों पर खड़ी रही,

चलने वाले चल दिए और, दुनिया बेचारी पड़ी रही,

दो ज्वार मिले मझधारों में, हिलमिल सागर के कूल चले,

दो मेघ मिले बोले-डोले, बरसाकर दो-दो बूंद चले .

(फोटो: क्‍व‍िंट हिंदी)

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Published: 14 Feb 2017,12:33 PM IST

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