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कविता: राष्ट्रभाषा हिंदी तेरी यही कहानी...

हिंदी बोले तो शुद्ध और सही, जिससे कि हिंदी का मानक उसी भाषा के अनुरूप बना रहे

क्विंट हिंदी
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वर्तमान परिवेश में हम हिंदी भाषा में काफी बदलाव देख रहे हैं. बदलाव समय के हिसाब से जरूरी है, लेकिन उसका मूल स्वरूप नहीं बदलना चाहिए, जिससे कि बदलाव भी हो जाए और हिंदी भाषा के मूल स्वरूप पर आंच भी नहीं आए. ऐसी कोशिश सभी की तरफ से की जानी चाहिए.

हिंदी बोले तो शुद्ध और सही, जिससे कि हिंदी का मानक उसी भाषा के अनुरूप बना रहे. आज समाज के सभी वर्गों के लोगों को इस पर सोचने की आवश्यकता है. इसी को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रभाषा हिंदी पर यह कविता लिखी गई है.

हम भारत के लोग!
देववाणी की भाषा ‘संस्कृत’ भूल चुके हैं
राष्ट्रभाषा हिन्दी पर राजनीति जारी है
इंसाफ के तराजू पर राष्ट्रभाषा हारी है
हिन्दी दिवस और हिन्दी पखवाड़ा
राष्ट्रभाषा के नाम पर सिर्फ निशानी है
नारा हिन्दी के नाम पर लगाना है
बच्चों को हिन्दी नहीं पढ़ानी है

आज हिन्दी का हाल है बेहाल
रोजगार के नाम पर सिर्फ बेमानी है
आज राष्ट्रभाषा की यही कहानी है
नेताओं ने यह ठानी है!
भाषा के नाम पर जनता को उल्लू बनाना है
भाषा के नाम पर अपनी राजनीति चमकानी है

आज हिन्दी जड़ से कट गई है
आज हिन्दी बिल्कुल बदल गई है
हैलो! हाय! बाय! हम बोलते हैं
अपनी आवाज को, अपनों के साथ
अपनी भाषा में, नहीं बोलते हैं
राष्ट्रभाषा होने पर भी
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!

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आज मोबाइल जनरेशन हिन्दी को
ऐसी-तैसी करने को ठानी है
हिन्दी वर्तनी को सबक सिखानी है
तेरे नाम की तो खिचड़ी पकानी है
तेरे नाम को अपडेट वर्जन का
यूथ जेनरेशन ने सबक सिखाना है
आज के मैकाले तुम्हें
रोमन हिन्दी के नाम से जानते हैं
आज की पीढ़ी तुझे ऐसी गत बनाते हैं
हिन्दी को हिंगलिश बनाकर चिढ़ाते हैं
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!

आज अपनी भाषा और संस्कृति में
पिछड़ापन नजर आता है
आज की यंग जनरेशन ने
हिन्दी को प्रतीक्षा सूची में रखा है
अपने लाडले को क, ख, ग... पढ़ाने में
गंवारापन का बोध होता है
बच्चा अपने को हीन समझता है
आज का बच्चा अपवाद में भी नहीं
माँ! माताजी! पिता! बाबूजी! नहीं बोलता
लेकिन आज मां! पिताजी सुनना कौन चाहते?

ए. बी. सी. और फिरंगी अंग्रेजी पहले सीखता है
पापा! पोप! पे-पे! डैड! और डेड!
मम्मी! ममी! मम! और में-में! मिमियानी है!
एडवांस समझी जानी है
बच्चा जन्म से तो हिन्दुस्तानी
और भाषा और संस्कार से फिरंगी होना है
फिरंगी भाषा और संस्कार की अमिट निशानी है
माॅर्डन एजुकेशन में अपडेट जनरेशन ने
मम! डैड! को ओल्डऐज होम में रख
फिरंगी भाषा का फर्ज निभाना है

मैकाले की भविष्यवाणी व्यर्थ नहीं जानी है
उसे साकार करने हम हिन्दुस्तानी ने ठानी है
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!
अपनी राष्ट्रभाषा बोलने पर
अंग्रेजी स्कूल में डांट खानी है
राष्ट्रभाषा में नहीं पढ़ने की ठानी है

आज भारतीयता कहां से आनी है
भारतीयता का सिर्फ गीत गाना है
चंद सिक्के पर अपने को बिक जाना है
पहले सिक्के को कैसे पाना है,
इसकी तरकीब पहले लगानी है
भारतीयता तो कल को अपनानी है
सब सुधर जाए, हमें नहीं सुधरना
यहीं तो हमने ठानी है
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है!
चंद सिक्कों के लोभ में
इंसान को बिक जाना है
इंसानियत धर्म को नहीं निभाना है
आज हर इंसान की यही कहानी है
तुम पहले सुधरो!
हमने तो बाद में सुधरने को ठानी है
आज हिन्दी तेरी यही कहानी है

(हमें ये कविता बरुण कुमार सिंह ने भेजी है. बरुण स्वतंत्र लेखक, विभिन्न समाचार पत्र/पत्रिका व वेबपोर्टल के लिए लेखन करते हैं.)

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