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6 जनवरी 2019 को करीब 1.5 लाख एमबीबीएस ग्रेजुएट स्टूडेंट्स NEET PG (राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा स्नातकोत्तर) एंट्रेंस एग्जामिनेशन में शामिल हुए. इनमें से करीब 15,000 महाराष्ट्र के थे और लगभग 7,500 स्टूडेंट्स ने इस एग्जाम को क्वालीफाई किया, जिसमें से करीब 4,000 छात्रों ने काउंसलिंग के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया.
जनरल कैटगरी के स्टूडेंट्स के लिए कट-ऑफ रिजर्व कैटगरी की तुलना में काफी अधिक रहा, बावजूद इसके एंट्रेंस क्वालीफाई करना एडमिशन की गारंटी नहीं है. महाराष्ट्र सीईटी (कॉमन एंट्रेंस टेस्ट) सेल के 2018 के इंफॉर्मेशन ब्रॉशर के मुताबिक, 50% सीटें आरक्षित श्रेणी के छात्रों के लिए हैं, जबकि बाकी 50 फीसदी सीट अन्य सभी के लिए.
इस साल अचानक 9 मार्च को हमें संबंधित प्राधिकरण द्वारा सूचित किया गया कि काउंसिलिंग में 16% एसईबीसी और 10% ईडब्लूएस कोटा भी लागू होगा. जब सीट मैट्रिक्स जारी किया गया था, तो हम यह देखकर हैरान रह गए कि सरकारी कॉलेजों में सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए पीजी में केवल 22% सीटें थीं और प्राइवेट कॉलेजों में महज 7.8% सीटें थीं. ये खबर तमाम छात्रों का होश उड़ा दिया, क्योंकि एक तो पहले से ही मेडिकल फील्ड में पीजी में सीटें कम हैं ऊपर से ये और भी कम हो गई.
महाराष्ट्र काउंसलिंग के माध्यम से उपलब्ध एमडी और एमएस के लिए कुल सरकारी सीटें 972 हैं, जिसमें से अब सामान्य छात्रों के लिए केवल 221 सीटें बची है. उदाहरण के लिए मेडिसिन की 99 में से महज 22 सीटें सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए बची, वहीं सर्जरी में, 99 में महज 23 सीटें इसी तरह बाकी डिपार्टमेंट की भी हालत है.
महाराष्ट्र के प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में तो हालत और भी बदतर है. साल 2019 के लिए प्राइवेट कॉलेजों की कुल 460 सीटों में से केवल 36 सीटें ही जनरल कैटगरी के स्टूडेंट्स के लिए है. कई स्पेशलाइज्ड स्ट्रीम में तो जनरल कैटगरी के लिए कोई सीटें ही नहीं है, इसका सीधा मतलब है
कि ऑल इंडिया-1 रैंक लाने वाले स्टूडेंट्स को भी वहां दाखिला नहीं मिल सकता. लेकिन सरकार या विपक्ष को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता, ना ही उन्होंने इस बारे में हमारे लिए कुछ किया.
हमारे जैसे तमाम स्टूडेंड्स सस्ती राजनीति से नाराज और निराश हैं. हम दिन-रात एक करके पढ़ाई करते हैं, बेहतर स्कोर और रैंक लाने के लिए कठिन मेहनत करते हैं और अच्छी रैंक हासिल कर लेने के बाद भी जिस कॉलेज में जाना चाहते हैं, उसमें हमारा दाखिला नहीं हो पाता है.
हमारी मांग है कि सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइंस के मुताबिक, 50 प्रतिशत से ऊपर रिजर्वेशन नहीं होना चाहिए. मेधावी छात्रों को पढ़ाई करने का मौका मिलना चाहिए, एक स्वस्थ संतुलन होना चाहिए. महाराष्ट्र में पहले राउंड के लिए जो सीट अलॉटमेंट हुआ है, उसमें अच्छे रैंक लाने वाले भी सामान्य छात्रों को कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाया है.
इसलिए हमारी मांग है कि -
हमारे जैसे स्टूडेंट्स उन लोगों को मिलने वाले रिजर्वेशन पर सवाल नहीं उठाते, जो सही में इसके हकदार है, लेकिन बेवजह जाति के आधार पर छात्रों को बांटने के खिलाफ है हम.
वोट बैंक की राजनीति के कारण स्टूडेंट्स के समर्थन में कोई भी नेता या पार्टी आगे नहीं आ रहे हैं, ऐसे में इस चुनाव में हमलोगों ने नोटा (NOTA) दबाने का फैसला किया है.
(सभी माई रिपोर्ट सिटिजन जर्नलिस्टों द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है. द क्विंट प्रकाशन से पहले सभी पक्षों के दावों / आरोपों की जांच करता है, लेकिन रिपोर्ट और इस लेख में व्यक्त किए गए विचार संबंधित सिटिजन जर्नलिस्ट के हैं, क्विंट न तो इसका समर्थन करता है, न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)
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