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उत्तराखंड के जंगलों में आग: 'नैनीताल में हमारी सुबह धुएं और राख के साथ हो रही'

Uttarakhand Forest Fire: वन विभाग के अनुसार, 1 नवंबर 2023 से, उत्तराखंड में 606 बार जंगल में आग लगने का मामला दर्ज हुआ.

प्रदीप पांडे
My रिपोर्ट
Published:
<div class="paragraphs"><p>उत्तराखंड के जंगलों में आग: 'नैनीताल में हमारी सुबह धुएं-धूल और धुंध के साथ हो रही'</p></div>
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उत्तराखंड के जंगलों में आग: 'नैनीताल में हमारी सुबह धुएं-धूल और धुंध के साथ हो रही'

(फोटो: अनुप साह)

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उत्तराखंड (Uttarakhand) अप्रैल से भीषण जंगल (Fire) की आग से जूझ रहा है क्योंकि बारिश के बिना तापमान लगातार बढ़ रहा है. हम नैनीताल के निवासी हैं और पिछले एक महीने में, हम कई मौकों पर सुबह उठकर धुएं, धूल और धुंध का सामना कर रहे हैं.

नैनीताल के पास खुर्पाताल के आसपास जंगल में लगी आग से उठता धुंआ. खुर्पाताल में मई में जंगल में आग लगने की कई घटनाएं देखी गईं.

(फोटो 4 मई 2024 को क्लिक की गई)

(फोटो: अनुप साह)

हम आस-पास जंगल में लगी आग देख रहे हैं: भवाली (नैनीताल से 13 किमी), खुर्पाताल (नैनीताल से 11 किमी), और भीमताल (नैनीताल से 24 किमी).

आग इतनी भीषण हो गई कि भीमताल के आसपास आग बुझाने के लिए 27 अप्रैल को भारतीय वायु सेना को बुलाया गया. आग की लपटें बहुत ऊंचाई पर देखी गई. रिहायशी इलाकों के पास स्थिति नियंत्रित कर ली गई है.

नैनीताल के आसपास कई हेक्टेयर वन भूमि राख में तब्दील हो गई है.

(फोटो 4 मई 2024 को क्लिक की गई)

कुमाऊं क्षेत्र और पौडी गढ़वाल जिले में जंगल की आग का कहर देखा जा रहा है. 6 मई को, भारतीय वायु सेना ने एक बार फिर श्रीकोट के गांवों में भड़की जंगल की आग को बुझाने के लिए अपने Mi17 V5 हेलीकॉप्टरों को तैनात किया.

कुछ दिन पहले जब मैं दिल्ली से लौट रहा था तो मैंने देखा कि कई किलोमीटर का वन क्षेत्र राख में तब्दील हो चुका था.

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'जंगल में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं'

मैं 62 साल का हूं और मैंने पहले भी जंगल में आग देखी है. लेकिन अब जो ज्यादा चिंता की बात है वो ये है कि आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं.

पिछले 10-12 सालों में जलवायु परिवर्तन और मानवीय हस्तक्षेप - इन दो मुख्य कारणों की वजह से आग लगने के मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है.

हमने लंबे समय से बारिश नहीं देखी है, बहुत सूखा है और पारा बढ़ रहा है. इससे जंगल की घास, पत्तियां और लकड़ियां आग पकड़ने लगती हैं.

खुर्पाताल के पास जंगल का जला हुआ क्षेत्र

(फोटो 4 मई 2024 को क्लिक की गई)

(फोटो: अनुप साह)

पहले हम आम तौर पर गर्मियों में जंगलों में आग लगते देखते थे, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण अब सर्दियों में भी जंगलों में आग लगने की कई घटनाएं देखने को मिल रही हैं.

वन विभाग के अनुसार, 1 नवंबर 2023 से, उत्तराखंड में 606 बार जंगल में आग लगने का मामला दर्ज हुआ, जिसमें 735.815 हेक्टेयर वन भूमि जलकर खाक हो गई.

पिछले महीने जंगल में लगी आग से हजारों पेड़ जल गए हैं.

(फोटो 4 मई 2024 को क्लिक की गई)

(फोटो: अनुप साह)

कम से कम कहें तो यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि इसके शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म, दोनों प्रभाव होंगे. शॉर्ट टर्म प्रभाव धुंध, धूल और धुएं का कारण बनते हैं, जिससे लोगों को आंखों में जलन, दम घुटने और सांस लेने में समस्या होती है.

चूंकि यह एक बार-बार होने वाली घटना बन गई है, इसलिए इसके लॉन्ग टर्म प्रभाव कहीं अधिक खतरनाक हैं क्योंकि यह क्षेत्र की जैव विविधता के लिए एक संभावित खतरा है.

मार्च से मई तक की अवधि कई प्राणियों के लिए प्रजनन की अवधि होती है, जैसे कीड़ों से लेकर पक्षियों और जानवरों तक, जब वे हाईबरनेशन से बाहर आते हैं. पक्षी भोजन के लिए कीड़ों और उनके लार्वा पर निर्भर रहते हैं. लेकिन जंगलों में लगने वाली आग ये सबकुछ नहीं होने देती.

कल्पना कीजिए कि ये जंगली जीव हाईबरनेशन से बाहर आ रहे हैं जबकि जंगल में आग लग गई है. क्या इससे पारिस्थितिक असंतुलन नहीं होगा? मानवीय हस्तक्षेप के कारण वनों का स्वास्थ्य खराब हो गया है.

'जंगल की आग को कैसे रोकें?'

हम ऊबड़-खाबड़ इलाके में रहते हैं, और जब किसी क्षेत्र में आग लग जाती है तो उसे बुझाने के लिए काम करना पड़ता है. इसलिए हमें इसे रोकने के उपाय करने चाहिए.

पहला और सबसे महत्वपूर्ण कदम गर्मी शुरू होने से पहले सूखी घास और पत्तियों को साफ करना है, खासकर तीव्र वाहनों की आवाजाही वाली सड़कों के किनारे से ताकी आग लगने का खतरा कम हो.

स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों में भी वनों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता बहुत जरूरी है. सरकार को वन प्रबंधन के लिए स्थानीय लोगों के साथ साझेदारी करने और उन्हें इस प्रक्रिया में शामिल रखने की आवश्यकता है. सिगरेट जैसे ज्वलनशील दैनिक उपयोग वाले पदार्थों के उपयोग के संबंध में लोगों को जागरूक करना भी बहुत महत्वपूर्ण है, और चारा जलाने को नियंत्रित तरीके से किया जाना चाहिए.

नैनीताल बहुत खूबसूरत है, लेकिन पिछले लगभग एक दशक में यहां मानवीय हस्तक्षेप बहुत ज्यादा हो गया है. पेड़ों और पहाड़ों को काटकर जंगल के चारों ओर सड़कें, रिसॉर्ट और होमस्टे बनाए गए हैं.

जनसंख्या और पर्यटन दोनों में तेजी से वृद्धि हुई है. यदि हम इस क्षेत्र की सुंदरता को बरकरार रखना चाहते हैं, तो हमें इसकी पारिस्थितिकी में घुसपैठ करने से पहले अपने कदमों पर नजर रखनी होगी.

(सभी 'माई रिपोर्ट' ब्रांडेड स्टोरी को क्विंट पर नागरिकों द्वारा भेजा जाता है. हालांकि प्रकाशन से पहले क्विंट द्वारा इसे जांचा जाता है, लेकिन ऊपर व्यक्त की गई रिपोर्ट और विचार नागरीक के हैं. क्विंट न तो इसका समर्थन करता है और न ही इसके लिए जिम्मेदार है.)

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