पिछले एक हफ्ते में, उत्तराखंड (Utarakhand) के वन क्षेत्रों में लगी आग नंदा, नैनीताल और कई अन्य क्षेत्रों में फैल गई, जिससे राज्य में 140 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि को नुकसान पहुंचा है.
रविवार, 28 अप्रैल को उत्तराखंड के जंगल में आग लगने के 42 से अधिक बड़े मामले सामने आएं. इससे पहले शनिवार (27 अप्रैल) को जंगल में आग लगने की कम से कम 23 घटनाएं, शुक्रवार (26 अप्रैल) को 31 घटनाएं और गुरुवार (25 अप्रैल) को 54 घटनाएं हुईं- जिसमें से सभी ने हेक्टेयर वन भूमि को नष्ट कर दिया.
नैनीताल जैसे प्रमुख स्थानों पर जंगल में लगी आग अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ जैसे अन्य क्षेत्रों में भी फैल गई, जिससे 30 एकड़ से अधिक जंगलों को नुकसान हुआ.
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF) के 40 से ज्यादा कर्मचारियों को रविवार को नैनीताल में आग बुझाने का काम सौंपा गया था.
हालांकि इस साल उत्तराखंड से आने वाला यह पहला मामला नहीं है.
फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक, उत्तराखंड में 21 अप्रैल से अब तक जंगल में आग लगने की कम से कम 202 घटनाएं हो चुकी हैं.
नवंबर के बाद से, कम से कम 606 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिसमें गढ़वाल क्षेत्र में 242.3 हेक्टेयर, कुमाऊं में 429.4 हेक्टेयर और प्रशासनिक वन्यजीव क्षेत्रों में 64 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र नष्ट हो गए हैं.
'मानव निर्मित आग': अधिकारियों ने क्या कहा है ?
रविवार को, राज्य के वन विभाग ने कहा कि जंगल की आग ज्यादातर "मानव निर्मित" थी. जबकि उच्च तापमान, सूखा जंगल और बिजली गिरने की घटनाएं भी आग लगने का कारक हो सकती हैं.
अधिकारियों ने यह पाया कि ज्यादातर आग इंसानों के कारण से लगी जिसमें सिगरेट की राख, कचरे की लपटें और बिजली की चिंगारी जैसे कारक शामिल थें.
गढ़वाल के जिला वन अधिकारी अनिरुद्ध स्वप्निल ने रविवार को समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया:
''आग शरारती तत्वों के कारण लग रही है. हम लोगों को जागरूक कर रहे हैं और उनसे अपील कर रहे हैं कि वे कुछ भी जलाएं नहीं. मैंने लोगों से कहा है कि जब भी वे जंगलों में किसी को आग जलाते हुए पाए, तो विभाग को सूचित करें. वन क्षेत्रों में आग लगाने वाले लोगों के खिलाफ भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत कार्रवाई की जाएगी."
अब तक, आग सुलगाने के लिए लोगों के खिलाफ पुलिस में लगभग 200 मामले दर्ज किए गए हैं.
शनिवार को हल्द्वानी में समीक्षा बैठक करने के बाद उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मीडिया को बताया,
"हमने जंगल की आग को एक चुनौती के रूप में लिया है. मैंने संबंधित अधिकारियों को जंगल की आग की घटनाओं को नियंत्रित करने के लिए हर संभव कदम उठाने का निर्देश दिया है. मैंने डीएम और अन्य अधिकारियों को एक्टिव फायर स्टेशनों के साथ काम करने और स्थानीय समुदाय से मदद लेने का निर्देश दिया है. "
कौन से उपाय किए जा रहे हैं?
उत्तराखंड के प्रधान सचिव रमेश कुमार सुधांशु ने कहा है कि वन विभाग के अधिकारी उस मौसम में छुट्टी नहीं ले सकते जो जंगल में आग लगने का सबसे संवेदनशील वक्त (15 फरवरी-15 जून) है. साथ ही कर्मचारियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि जंगल में आग लगने जैसी कोई लापरवाही न हो. कर्मी हादसे के प्रति जवाबदेह होंगे.
इसके अलावा, राज्य के अधिकारियों ने
टीमों को उन क्षेत्रों में तैनात किया है जो आग के लिहाज से अत्यधिक संवेदनशील हैं.
स्थानीय लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है. इसमें उन्हें अपना कचरा न जलाना सिखाया जा रहा है.
स्थानीय लोगों को यह भी निर्देश दिया है कि निर्माण कार्य और कार धोने पर प्रतिबंध है.
कई इलाकों में आग पर या तो काबू पा लिया गया है या पूरी तरह से उसे बुझा दिया गया है.
राज्य सरकार ने 'बांबी बकेट ऑपरेशन' के संचालन के लिए भारतीय वायु सेना के एमआई-17 वी5 हेलीकॉप्टर को भी तैनात किया है. हेलीकॉप्टर 3,500 लीटर के करीब पानी लाकर भड़की आग पर छोड़ रहा है.
अग्निशमन अभियान में कौन-कौन शामिल हैं?
राज्य अधिकारियों और राज्य वन विभाग के अलावा, उत्तराखंड सरकार ने आग पर काबू पाने के लिए इन सेवाओं से भी मदद मांगी है:
भारतीय वायु सेना
गृह रक्षक
भारतीय सेना
राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल
प्रान्तीय रक्षक दल
(इनपुट- इंडियन एक्सप्रेस, हिंदुस्तान टाइम्स और द हिंदू)
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