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"शादी हुई हो या नहीं...सभी महिलाएं गर्भपात की हकदार" - SC ने क्या-क्या कहा?

Abortion पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए महिलाओं को गर्भपात के अधिकार दिए.

क्विंट हिंदी
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<div class="paragraphs"><p>शादीशुदा और गैरशादीशुदा महिलाएं, दोनों को कानूनी गर्भपात का हक- SC का बड़ा फैस</p></div>
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शादीशुदा और गैरशादीशुदा महिलाएं, दोनों को कानूनी गर्भपात का हक- SC का बड़ा फैस

(फोटो- क्विंट हिन्दी) 

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गर्भपात (Abortion) को लेकर अपने एक ऐतिहासिक फैसले में महिलाओं को बड़ी राहत दी है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कर दिया है कि हर महिला को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है, चाहे वो विवाहित हो या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के दायरे में लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को शामिल न करने को असंवैधानिक बताया है.

अविवाहित महिलाओं को भी विवाहित के समान गर्भपात का अधिकार-सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा कि गर्भावस्था के मेडिकल टर्मिनेशन एक्ट में 2021 का संशोधन विवाहित और अविवाहित महिला में कोई भेद नहीं करता है और "सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं". कोर्ट ने साफ किया कि 24 सप्ताह तक चिकित्सा समाप्ति अधिनियम और नियमों के तहत गर्भपात का अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट में बहस इस बात को लेकर थी कि अपनी इच्छा से संबंध बनाने वाली महिलाओं को MTP एक्ट के रूल 3B से बाहर रखा गया है. आपको बता दें कि रूल 3B में ही 20 से 24 सप्ताह के अंदर गर्भपात का अधिकार दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने लिव-इन में रहने वाली महिलाओं को इसमें शामिल न करने को असंवैधानिक बताया और एक सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि

"अगर हम रूल 3B से बिना विवाह के संबंध बनाने वाली महिलाओं को बाहर रखते हैं तो इसका मतलब होगा कि हम उसी स्टीरियोटाइप का समर्थन कर रहे हैं जिसमें माना जाता है कि केवल विवाहित महिलाएं ही शारीरिक संबंध बना सकती हैं."
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"संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन"

कोर्ट ने कहा, "प्रजनन स्वायत्तता के अधिकार (rights of reproductive autonomy) अविवाहित महिलाओं को विवाहित महिलाओं के बराबर ही अधिकार देते हैं." कोर्ट ने आगे कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट की धारा 3B का उद्देश्य महिला को 20-24 सप्ताह के बाद गर्भपात कराने की अनुमति देना है इसलिए, केवल विवाहित को शामिल करना और अविवाहित महिला को छोड़ देना, संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा.

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, ए.एस. बोपन्ना और जेबी पारदीवाला ने 23 अगस्त को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था.

केस क्या था? 

पिछले हफ्ते, एक 25 साल की महिला ने 23 सप्ताह और 5 दिनों की प्रेगनेंसी के गर्भपात के लिए दिल्ली हाई कोर्ट की अनुमति मांगी थी. ये महिला मणिपुर की स्थायी निवासी है, लेकिन फिलहाल दिल्ली में रहती है. महिला ने कोर्ट को बताया कि उन्होंने एक हफ्ते के रिश्ते में ही गर्भावस्था की स्थिती हासिल कर ली थी और वह गर्भपात कराना चाहती है, क्योंकि उसके साथी ने उससे शादी करने से इनकार कर दिया है.

महिला ने कोर्ट को ये भी बताया कि उसे एकल, अविवाहित महिला के रूप में कलंकित होने का डर है.

कोर्ट ने महिला को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था और कहा था कि “हम बच्चे को मारने की अनुमति नहीं देंगे, 23 सप्ताह पूरे हो गए हैं. नॉर्मल डिलीवरी के लिए बच्चा कितने हफ्ते तक गर्भ में रहेगा? मुश्किल से कितने हफ्ते बचे हैं? गोद लेने में बच्चे को किसी को दें. बच्चे को क्यों मार रहे हो?"

इसके बाद चूंकि कानून को चुनौती दी गई थी तो कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक नोटिस जारी किया था और महिला सुप्रीम कोर्ट चली गई थी.

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Published: 29 Sep 2022,01:10 PM IST

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