SC ने कहा है कि भारत में सभी महिलाओं को सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है. किसी महिला की वैवाहिक स्थिति को उसे अनचाहे गर्भ गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं बनाया जा सकता है
क्या भारत में महिला को अबॉर्शन के लिए अपने पार्टनर या पेरेंट्स से परमिशन लेना जरूरी है? कानून कितने हफ्ते तक अबॉर्शन की इजाजत देता है? अबॉर्शन के बाद कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए? आइए जानते हैं इन सारे सवालों के जवाब.
कुछ महीनों पहले जब अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने बुनियादी रूप से देश में अबॉर्शन के संवैधानिक अधिकार को खत्म कर पूरी दुनिया में एक बहस छेड़ दी. लगभग उसी समय भारत में अबॉर्शन के एक केस ने हम सभी का ध्यान अपनी और खींच लिया.
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक 24 हफ्ते की प्रेग्नेंट महिला के अबॉर्शन कराने की अर्जी को खारिज कर दिया था. तब उस 25 वर्षीय प्रेग्नेंट महिला ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने अबॉर्शन की इजाजत देते हुए कहा कि महिला अविवाहित है, इसलिए उसे अबॉर्शन कराने से नहीं रोका जा सकता. जी हां, चाहे महिला शादीशुदा हो या न हो, भारत में उसे अबॉर्शन की इजाजत है.
अबॉर्शन भारत में कानूनी है
"इंडियन अबॉर्शन लॉ इस बात में भेदभाव नहीं करता कि महिला शादीशुदा है या नहीं. अगर महिला वयस्क है यानी कि 18 वर्ष से ऊपर है, तो ये उसका हक है कि अगर वो चाहे तो अपनी अनवांटेड प्रेगनेंसी को खत्म कर सकती है. कानून किसी भी महिला को 24 हफ्ते तक की अनुमति देता है अबॉर्शन करवाने के लिए."डॉ . मीनाक्षी आहूजा, निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग, फोर्टिस ला फेमे
महिला को अबॉर्शन के लिए अपने पार्टनर या पेरेंट्स की अनुमति की जरूरत नहीं है.
MTP ACT (1971) में किए गए संशोधन
MTP ACT (1971) के तहत भारत में अबॉर्शन कानूनी है, जिसे बाद में संशोधित किया गया है. प्रत्येक महिला को MTP ACT का पालन करते हुए अबॉर्शन का अधिकार मिला है.
भारत में पहले कुछ मामलों में 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की मंजूरी थी, लेकिन 2021 में इस कानून में संशोधन के बाद ये समय सीमा बढ़ाकर 24 हफ्ते तक कर दी गई. इतना ही नहीं, कुछ खास मामलों में 24 हफ्ते के बाद भी अबॉर्शन कराने की मंजूरी ली जा सकती है. भारत में अबॉर्शन को तीन कैटेगरी में बांटा गया है.
1. प्रेग्नेंसी के 0 से 20 हफ्ते तक
अगर कोई महिला मां बनने के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं है या फिर कांट्रासेप्टिव मैथड या डिवाइस फेल हो गया हो और महिला न चाहते हुए भी प्रेग्नेंट हो जाए तो वो अबॉर्शन करवा सकती है. इसके लिए एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की लिखित अनुमति जरूरी है.
2. प्रेग्नेंसी के 20 से 24 हफ्ते तक
अगर मां या बच्चे के मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को किसी तरह का खतरा है, तो महिला अबॉर्शन करवा सकती है. हालांकि, ऐसे मामलों में दो डॉक्टरों की लिखित अनुमति जरूरी है.
3. प्रेग्नेंसी के 24 हफ्ते बाद
अगर महिला यौन उत्पीड़न या रेप का शिकार हुई हो और उस वजह से प्रेग्नेंट हुई हो तो 24 हफ्ते बाद भी अबॉर्शन करवा सकती है.
अगर गर्भवती माइनर हो
अगर महिला विकलांग है, तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.
महिला मानसिक रूप से बीमार हो
अगर गर्भ में पल रहे बच्चे में कोई बड़ी शारीरिक या मानसिक समस्या हो
प्रेग्नेंसी के दौरान महिला का मेरिटल स्टेटस बदल जाए यानी उसका तलाक हो जाए या फिर विधवा हो जाए, तो भी अबॉर्शन करवा सकती है.
अगर प्रेग्नेंसी से गर्भवती की जान को खतरा है, तो किसी भी स्टेज पर डॉक्टर की सलाह पर अबॉर्शन किया जा सकता है.
लिंग के आधार पर नहीं करा सकते अबॉर्शन
भारत में अबॉर्शन को लेकर कानून जरूर है, लेकिन लिंग की जांच के बाद ऐसा कराना कानूनी अपराध है और ऐसा करने पर सजा होती है.
क्या होता है मेडिकल और सर्जिकल अबॉर्शन?
डॉ. मीनाक्षी आहूजा फिट हिंदी से कहती हैं, "अबॉर्शन का मतलब है अनचाही प्रेगनेंसी को खत्म करना. ये या तो एक सेफ अबॉर्शन हो सकता है यानी कि महिला एक रजिस्टर्ड मेडिकल एक्सपर्ट से अबॉर्शन करा रही हो, जिसके पास लाइसेंस है अबॉर्शन करने के लिए और एक सेफ हॉस्पिटल में करा रही हो, जो कि लाइसेंस्ड है एबॉर्शन करने के लिए. दूसरा अनसेफ एबॉर्शन जो कि गलत जगह पर और गलत एक्सपर्ट से कराया जाता है".
"अबॉर्शन करने के दो तरीके होते हैं. पहला होता है मेडिकल अबॉर्शन, जो दवा की मदद से प्रेगनेंसी के शुरुआती दिनों में किया जा सकता है. दूसरा होता है सर्जिकल अबॉर्शन, जो कि 6 हफ्ते के बाद किया जाता है. जब फ़ीटस की हार्ट बीट आ चुकी होती है. यह एक मामूली सर्जिकल प्रोसीजर रहता है, जिसमें कोई कट नहीं लगाया जाता."डॉ . मीनाक्षी आहूजा, निदेशक, प्रसूति एवं स्त्री रोग, फोर्टिस ला फेमे
अगर प्रेग्नेंट महिला हार्ट प्राब्लम, डायबिटीज, अस्थमा, एनीमिया जैसी बीमारी से पीड़ित हैं, तो मेडिकल अबॉर्शन जानलेवा भी साबित हो सकता है.
अबॉर्शन पिल्स लेने से पहले प्रेगनेंसी की सही स्थिति जानने के लिए डॉक्टर से जरुर मिलें. डॉक्टर सबसे पहले अल्ट्रासाउंड कराने की सलाह देते हैं, जिसके जरिए गर्भ का साइज देखा जाता है और साथ में यह भी देखा जाता है कि कहीं प्रेगनेंसी फैलोपियन ट्यूब में तो नहीं है. ऐसा होना जानलेवा साबित हो सकता है.
अबॉर्शन के बाद रखें इन बातों का ख्याल
अपने खानपान का ध्यान रखते हुए सामान्य दिनचर्या बनाए रखें. दिनचर्या में अधिक समस्या आने पर डॉक्टर से संपर्क करें. और हां, अबॉर्शन के बाद गर्भनिरोध के तरीकों का इस्तेमाल जरुर करें.
असुरक्षित अबॉर्शन से हो सकती है मौत
"एक अनचाहा गर्भधारण तनाव और चिंता पैदा कर सकता है, खासकर तब जब कपल अविवाहित है. उनके पास सुरक्षित गर्भपात के लिए जानकारी या पैसों की कमी हो सकती है और यहां तक कि वे सुरक्षित तरीके से गर्भपात करवा सकने वाले एक डॉक्टर के पास भी नहीं जा सकते. दूसरा कारण यह भी है कि युवा अपनी पहचान नहीं बताना चाहते हैं या कागजी कार्रवाई नहीं करना चाहते, जो हॉस्पिटल में रहने और ऑपरेशन के लिए जरूरी होती है."डा. सोभा एन गुडी, सीनियर कंसल्टेंट, ओब्स्टेट्रिक्स और गायनेकोलॉजी, मणिपाल हॉस्पिटल, जयनगर
डा. सोभा एन गुडी आगे कहती हैं, "इस बात को सबसे छिपा कर रखना उनकी सबसे बड़ी चिंता हो सकती है, इसलिए कई बार, कपल या महिला इसको महसूस किए बिना गर्भधारण कर लेते हैं, वे गोलियों से खुद ही गर्भपात करने की कोशिश करते हैं या उन स्वास्थ्य केंद्रों पर जाते हैं, जहां नियमों और प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया जाता है".
असुरक्षित अबॉर्शन है खतरनाक
अबॉर्शन करने वाली महिला का नाम और उसकी पहचान को गुप्त रखने की बात कानून में कही गयी है.
डा. सोभा एन गुडी कहती हैं, "ऐसा करना हमेशा महिलाओं में पेल्विक इनफेक्शन, बांझपन, भविष्य की गर्भावस्था में यूट्रस का परफोरेशन और टूटने जैसी जटिलताएं विकसित होने का कारण बनता है. हमें इससे भी बुरी स्थिति देखने को मिलती है, जहां असुरक्षित गर्भपात के कारण होने वाले सेप्टिक, ब्लीडिंग और ट्रॉमा के कारण महिलाएं मर जाती हैं. इसलिए, वास्तव में यह बहुत जरूरी है कि यौन रूप से सक्रिय कपल्स को MTP – मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट- के बारे में बताया जाए, जो यह सुनिश्चित करता है कि सुरक्षित गर्भपात करने के लिए दर्ज की गई कोई भी जानकारी को गोपनीय रखा जाए".
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