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Arvind Kejriwal: सिंगापुर जाने की अनुमति क्यों नहीं मिल रही,नियम-कायदे क्या हैं?

Arvind kejriwal को इससे पहले भी 2019 में केंद्र ने विदेश जाने की अनुमति नहीं दी थी.

क्विंट हिंदी
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<div class="paragraphs"><p>Arvind Kejriwal को नहीं मिल रही सिंगापुर जाने की अमुमति, क्या है नियम-कायदा?</p></div>
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Arvind Kejriwal को नहीं मिल रही सिंगापुर जाने की अमुमति, क्या है नियम-कायदा?

फोटो- क्विंट हिंदी

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दिल्ली (Delhi) के सीएम अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) ने केंद्र पर सवाल उठाया है कि सिंगापुर (Singapore) जाने के लिए सरकार की तरफ से क्लियरेंस में देरी क्यों हो रही है. उन्होंने कहा मैं कोई अपराधी नहीं हूं, मुझे नहीं समझ आ रहा कि आखिर मुझे सिंगापुर में वर्ल्ड सिटिज समिट में शामिल होने से क्यों रोका जा रहा है.

इससे पहले भी 2019 में केंद्र ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति नहीं दी थी, तब उन्हें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उस कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा था. लेकिन केजरीवाल का सिंगापुर जाने को लेकर क्या मामला है? एक सीएम को विदेश जाने के लिए अनुमति क्यों लेनी पड़ती है? सरकार इस अनुमति को किस आधार पर ठुकरा सकती है, ये सब समते हैं.

विदेश जाने के लिए क्यों लेनी पड़ती है अनुमति?

अगर मुख्यमंत्री, कैबिनेट मंत्री, विधायक, सांसद यहां तक कि कोई भी सरकारी नौकर विदेश की यात्रा करना चाहता हो फिर वह आधिकारिक रूप से हो या निजी उन्हें विदेश मंत्रालय से अमुमति लेनी होती है और यह बताना होता है कि वे कहां जा रहे हैं, किस कार्यक्रम में भाग लेंगे और बाकी विवरण देना होता है. इसके लिए विदेश मंत्रालय को हर महीने सैंकड़ों आवेदन मिलते हैं.

अनुमति कई आधार पर मिलती है जैसे- जिस कार्यक्रम में आप शामिल हो रहे हैं वो क्या है और किस तरह का है, वहां और किस देश से लोग भाग लेने आ रहे हैं, किस तरह का आमंत्रण है और आयोजक देश के साथ भारत के कैसे रिश्ते हैं.

2016 से पॉलिटिकल क्लियरेंस के लिए ऑनलाइन आवेदन किया जा सकता है. epolclearance.gov.in की वेबसाइट पर जाकर आवेदन किया जाता है फिर कॉरडिनेशन डिविजन सारे मंत्रालय से बात करके क्लियरेंस देता है.

6 मई 2015 के एक सर्कुलर के मुताबिक मुख्यमंत्रियों को कैबिनेट सचिव को सूचना देनी होती है.

इसके अमुसार, कैबिनेट सचिव और विदेश मंत्रालय को मुख्यमंत्रियों, राज्य सरकार के मंत्रियों को अपने निजी या ऑफिशियल विदेश की ट्रिप की जानकारी देनी होती है. पॉलिटिकल क्लियरेंस और एफसीआरए क्लियरेंस जरूरी है. कई मामलों में इन्हें सचिवालय और आर्थिक कार्य विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ इकॉनमिक अफेयर्स) से भी क्लियरेंस लेना होता है.

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों को भी अगर विदेश की यात्रा करनी हो तो उन्हें मुख्य न्यायाधीश से अनुमति लेकर न्याय विभाग को क्लियरेंस के लिए आवेदन भेजना होता है.

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पहले भी मुख्यमंत्रियों की अनुमति को किया जा चुका है खारिज 

अक्टूबर, 2019 में अरविंद केजरीवाल को किसी कार्यक्रम में शरीक होने डेनमार्क जाना था लेकिन फिर उन्हें ऑनलाइन ही उस कार्यक्रम में शामिल होना पड़ा क्योंकि उन्हें विदेश जाने की अनुमति नहीं दी गई थी. केजरीवाल के अलावा और भी मुख्यमंत्री हैं जिनकी विदेश जाने की अनुमति को ठुकराया गया है.

जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी तब कांग्रेस के नेता और असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री तरुण गोगोई और झारखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता अर्जुन मुंडा को भी विदेश यात्रा पर जाने से रोका गया था.

2012 में तरुण गोगोई अमेरिका में किसी हाई लेवल बैठक में शामिल होना चाहते थे लेकिन मंत्रालय ने इसे अनुचित बता कर खारिज कर दिया था और वे इजरायल भी जाना चाहते थे जबकि अर्जुन मुंडा थाईलैंड.

विदेश की यात्रा के लिए क्या और किसी तरह की अनुमति की जरूरत होती है?

मुख्यमंत्री और राज्य मंत्रियों के अलावा अगर कैबिनेट मंत्रियों को विदेश की यात्रा करनी हो तो उन्हें विदेश मंत्रालय से तो अनुमति लेनी होती ही है कई बार प्रधानमंत्री से भी अनुमति लेनी होती है. वहीं लोकसभा सांसदों को स्पीकर से और राज्यसभा सांसदों को उपराष्ट्रपति से अनुमति लेनी होती है जो राज्यसभा का अध्यक्ष भी होता है. वैसे ये जरूरी नहीं है लेकिन आमतौर पर सांसद अपने अध्यक्ष को सूचना देते हैं.

इन्हें अनुमति देते वक्त यही देखा जाता है कि यात्रा कितने दिन की है, कहां-किस देश में यात्रा की जा रही है, कितने लोग उस यात्रा में होंगे. अगर संयुक्त राष्ट्र के अलावा किसी और का आमंत्रण है तो गृह मंत्रालय द्वारा एफसीआरए क्लियरेंस भी लेना होता है.

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