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किसानों की कब्रगाह क्यों बनता जा रहा बुंदेलखंड? स्थानीय लोग बताते हैं तीन कारण

योगी सरकार का कहना है किसानों की आत्महत्या कम हो गई है या खत्म हो गई है. लेकिन जमीनी स्तर की सच्चाई कुछ और है .

मनोज कुमार
न्यूज
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<div class="paragraphs"><p>किसानों की कब्रगाह क्यों बनता जा रहा बुंदेलखंड? स्थानीय लोग बताते हैं तीन कारण</p></div>
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किसानों की कब्रगाह क्यों बनता जा रहा बुंदेलखंड? स्थानीय लोग बताते हैं तीन कारण

(फोटो: क्विंट)

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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में झांसी जिले के रहने वाले 80 साल के बीनू अहिरवार पेशे से किसान थे. देश के लाखों किसानों की तरह इनकी भी कई परेशानियां थीं और इनका दर्दनाक अंत नवंबर महीने की 26 तारीख को गया, जब बीनू ने मौत को गले लगा लिया. बुंदेलखंड में किसानों की बदहाल स्थिति ने एक और किसान की आहुति ले ली, जब बीनू का शव झांसी के बिजारवारा गांव के पास एक खेत में लटकता हुआ दिखा.

मृतक किसान बीनू के रिश्तेदारों की मानें तो उन्होंने 3 लाख का सरकारी कर्ज और साथ ही साथ 60 -से 70 हजार  ब्याज पर ले रखे थे. मौसम की मार ऐसी हुई कि उनकी मूंगफली की फसल बर्बाद हो गई और अंत में कोई उपाय नहीं सूझा तो उन्होंने मौत को गले लगा लिया.

80 साल के बीनू अहिरवार ने दी थी अपनी जान

(फोटो: क्विंट)

प्राकृतिक आपदाओं, सरकार की गलत नीतियां और खराब उपज की वजह से बुंदेलखंड किसानों की कब्रगाह बनता जा रहा है. बुंदेलखंड के जिले जैसे ललितपुर, बांदा, महोबा, झांसी, चित्रकूट और हमीरपुर से लगातार ही किसानों की आत्महत्या करने की खबरें आती रहती हैं, लेकिन अगर राज्य में योगी सरकार की मानें तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार आने के बाद किसानों की आत्महत्या या तो बिल्कुल कम हो गई है या खत्म हो गई है. लेकिन जमीनी स्तर की सच्चाई इससे कुछ अलग है.

बदहाल किसान

(फोटो: क्विंट)

बांदा जिला के दुरेड़ी गांव के रहने वाले किसान चुन्नू सिंह ने अपनी बड़ी बेटी की शादी 2019 में की थी. तब उन्होंने बैंक और साहूकारों से तकरीबन 6 लाख का कर्ज लिया था. उन्होंने तब सोचा था कि फसल की कटाई के बाद जो पैसा आएगा उसे धीरे-धीरे कर चुकाते रहेंगे, लेकिन मौसम की मार और आवारा पशुओं की वजह से उनकी फसल लगातार बर्बाद होती रही और वह तनावग्रस्त रहने लगे.

अपनी बदहाल स्थिति के बारे में अपने पड़ोसी सुरेश त्रिपाठी से वह कई बार चर्चा किया करते थे. सुरेश उन्हें ढांढस बंधाया करते थे कि सब ठीक हो जाएगा, लेकिन एक और बेटी की शादी का बोझ और लगातार बढ़ते कर्ज के तनाव में चुन्नू सिंह ने आखिरकार इसी साल 14 मार्च को मौत को गले लगा लिया.

कर्ज के बोझ तले किसान जान देने को मजबूर

समाजसेवी और बांदा जिले के निवासी राजा भैया का मानना है कि किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर लिया गया कर्ज आत्महत्या का प्रमुख कारण है.

आज की स्थिति में कृषि घाटे का सौदा बनकर रह गया है और इस कारण से किसानों का कृषि से मोहभंग हो गया है. जिस तरीके से कृषि में लागत आ रही है उस तरीके से किसान उसे निकाल नहीं पा रहा है. खेती में पर्याप्त उत्पादन नहीं हो पाता इसलिए किसानों ने बड़े पैमाने पर कर्ज ले रखा है. जो किसान कर्ज ले रहे हैं उनकी मौत आत्महत्या की वजह से हो रही है, क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं है

बांदा के पडूई गांव के किसान पुष्पेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके गांव में तकरीबन आधे दर्जन से ज्यादा आत्महत्याएं हुई हैं जिनके पीछे पैदावार में कमी और घटती आमदनी के बीच मानसिक दबाव एक मुख्य कारण माना जा रहा है. पुष्पेंद्र सिंह आरोप लगाते हैं कि सरकार अपनी जिम्मेदारियों से बच रही है, जिसका हर्जाना किसान भुगत रहे हैं.

"रासायनिक खाद देकर जिम्मेदारी सरकार ने ली थी कि उत्पादन बढ़ेगा. लेकिन उत्पादन कम हो रहा है और किसानों के खर्चे ज्यादा बढ़ रहे हैं. खेत खराब हो रहे हैं और अगली पीढ़ी के लिए खेत बच नहीं रहे हैं. अब कोई भी सरकारी विभाग इस जिम्मेदारी को लेने के लिए तैयार नहीं है. जमीन इसलिए खराब हो रही है क्योंकि हमने उसमें बेतरतीब और गलत चीजें डालीं. ऐसी चीजें जो वहां के लिए अनुकूल नहीं थीं.''
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आत्महत्या के आर्थिक, सामाजिक और नीतिगत कारण

गोंडा के छोटी बड़ोखर के रहने वाले प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह बताते हैं कि किसानों की बढ़ रही आत्महत्याओं के मूलता तीन कारण है- आर्थिक, सामाजिक और नीतिगत. आर्थिक कारण यह है कि प्राकृतिक आपदा, खाद और पानी की कमी, खराब क्वालिटी के बीज, सिंचाई के संसाधनों के अभाव या अन्य कारणों से कम उत्पादन होना या उत्पादन का सही मूल्य ना मिलना.

सामाजिक कारण के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि एक किसान अपने घर में शादी या किसी अन्य कार्यक्रम को रीति रिवाज और पारंपरिक तौर पर धूमधाम से कराने के लिए कई बार महंगी दरों पर सूदखोरों से कर्ज उठाता है. इस कर्ज को चुकाने का उसके पास बस एक ही साधन है- खेती. अगर पैदावार में किसी भी कारण से कोई कमी आई तो कर्ज का बोझ निरंतर बढ़ता जाता है. सरकारी हस्तक्षेप के बारे में बात करते हुए प्रेम सिंह कहते हैं कि नीतिगत कमियों के कारण बुंदेलखंड का किसान हाशिए पर है. "जिस तरीके से एक व्यापारी को कर्ज मिलता है उसी तरीके से किसान को भी मिलता है.

अगर किसी व्यापारी ने एक लाख का ऋण लिया तो वह उस एक लाख को साल भर में 10 से 12 बार रोटेट कर लेगा. मतलब उस पैसे को कई बार इस्तेमाल कर लेगा. जैसे सामान खरीदेगा, बेचेगा, उससे मुनाफा कमायेगा और जो मुनाफा कमायेगा उससे कुछ पैसा वह कर्ज कब वापस लौटा देगा और कुछ अपने पास रखेगा. ऐसा वह साल भर में कई बार कर लेगा. इस तरीके से वह एक लाख से ज्यादा कमा लेगा. इसी पद्धति से किसानों को भी कर्ज दिया जाता है. लेकिन किसानों की साल भर में फसल कितनी बार आएगी- एक बार या दो बार. और कैसे आएगी इस पर भी अनिश्चितता है."

वह आगे बताते हैं कि इसी तरीके से डीजल, पेट्रोल, डीएपी, यूरिया, खाद, सिंचाई के लिए बिजली जैसी चीजों की दरों पर सरकार का कोई कंट्रोल नहीं और  धीरे-धीरे सब कुछ प्राइवेट होता जा रहा है लेकिन जब किसान फसल पैदा करेगा तो उसकी उपज की खरीद-फरोख्त के मानक तय करने के लिए सरकारी विभाग हैं. इस तरीके का अनैतिक हस्तक्षेप किसानों के हित में नहीं है.

राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) ने देश में आत्महत्याओं को लेकर अपनी साल 2021 की रिपोर्ट में बताया था कि कृषि क्षेत्र से संबद्ध 10,881 लोगों ने आत्महत्या की, जिनमें से 5,318 किसान और 5,563 खेत मजदूर थे. आत्महत्या कर वाले 5,318 किसान में से 5107 पुरुष और 211 महिलाएं थीं. 5,563 खेत मजदूरों में से 5,121 पुरुष तथा 442 महिलाएं थीं.

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