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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) और खासकर पूर्वांचल में अपराध और राजनीति का चोली दामन का साथ रहा है. कई ऐसी राजनीतिक हस्तियां हैं जिन्होंने जरायम की दुनिया में कदम रखने के बाद अपने नाम का खौफ कायम किया और बाद में सफेदपोश बन गए.
हरिशंकर तिवारी, बृजेश सिंह, मुख्तार अंसारी राजा भैया समेत कई ऐसे नाम है जिन्होंने अपराध से राजनीति का रास्ता तय किया और उनकी बाहुबली वाली छवि अभी तक बरकरार है. इन नामों की कड़ी में एक बड़ा नाम है अतीक अहमद का.
जरायम की दुनिया से अतीक का नाता बहुत पुराना है. 1979 में प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में अतीक के खिलाफ हत्या का मुकदमा लिखा गया था. उस समय वह 17 साल का था. इसके बाद अतीक ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और तकरीबन तीन दशक तक ऐसा दौर था जब इलाहाबाद में अतीक की तूती बोलती थी. अगर सरकारी आंकड़ों की बात करें तो अतीक अहमद पर अभी तक प्रयागराज, लखनऊ समेत प्रदेश के कई जिलों में 100 मुकदमे दर्ज हैं. इन मुकदमों में कुछ में अतीक को अदालत ने दोषमुक्त कर दिया और कुछ मुकदमे वापस ले लिए गए. इनमें 54 ऐसे मुकदमे हैं जो न्यायालय में विचाराधीन है.
इस घटना में राजू पाल समेत तीन लोगों की नृशंस हत्या कर दी गई थी. उसमें राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने अतीक और उनके भाई अशरफ समेत पांच लोगों पर हत्या और अन्य गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया था. राजू पाल हत्याकांड अतीक के लिए गले का फांस साबित हुआ और यहीं से उसका पतन शुरू हुआ.
1980 का दशक पूर्वांचल के लिए कई बदलाव लेकर आ रहा था. धीरे-धीरे कई बाहुबली और माफिया पनपने शुरू हो गए. क्षेत्र में नाम और पैसा कमाने का रास्ता पीडब्ल्यूडी, रेलवे और खनन के टेंडरों से होकर गुजरता था. उत्तर प्रदेश का शायद ही कोई ऐसा बाहुबली होगा जिसने अपना वर्चस्व कायम करने के लिए सरकारी ठेकों में हाथ ना आजमाया हो.
हालांकि इन माफियाओं और बाहुबलियों को यह बात भी धीरे-धीरे समझ में आने लगी कि जरायम की दुनिया में बने रहने के लिए कोई राजनीतिक संरक्षण जरूरी है. ऐसे में कुछ माफिया नेताओं के साथ हो लिए वही कुछ माफिया ही सफेदपोश हो गए. अतीक भी इस राह पर चला और 80 के दशक में राजनीति में पहला कदम रखा.
1989, 1991 और 1993 इस सीट पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता. 1996 में उसने समाजवादी पार्टी का दामन थामा और पार्टी के टिकट पर जीत दर्ज की.
अतीक की उल्टी गिनती शुरू हो गई जब 2007 में मायावती की सरकार बनी. 2005 में बीएसपी विधायक राजू पाल की हत्या कांड का आरोप अतीक अहमद पर था और तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने अतीक पर ताबड़तोड़ एक्शन शुरू करवा दिया. एक के बाद एक मुकदमे होते गए और अतीक भूमिगत हो गया. 2004 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर वह फूलपुर से सांसद चुना गया लेकिन राजू पाल हत्याकांड में नामजद होने के बाद लगातार हो रही आलोचना के बीच समाजवादी पार्टी ने दिसंबर 2007 में अतीक को बाहर का रास्ता दिखा दिया.
2012 में प्रदेश में एसपी की सरकार आने के बाद अतीक ने राहत की सांस ली लेकिन उसे शायद उस समय अंदाजा नहीं था कि उसकी मुश्किलें अगले पांच साल बाद बढ़ने वाली हैं.
अतीक को 2017 में प्रयागराज के नैनी स्थित कृषि यूनिवर्सिटी SHUATS में शिक्षकों और कर्मचारियों से मारपीट एक मामले में गिरफ्तार किया गया था. अतीक अहमद पर लखनऊ के जमीन कारोबारी मोहित अग्रवाल को अपने गुर्गों से अगवा करवाकर देवरिया जेल में पीटने और उसकी कई कंपनियों को जबरन अपने गुर्गों के नाम ट्रांसफर करवाने का आरोप है. जांच में मामला सही पाया गया जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2019 में अतीक का स्थानांतरण प्रयागराज के नैनी जेल से गुजरात के साबरमती जेल कर दिया गया.
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