ADVERTISEMENTREMOVE AD

उमेश पाल हत्याकांड ने UP की जमीन के नीचे अब भी मौजूद 'पाताल लोक' को उघाड़ दिया?

राजू पाल, कृष्णानंद राय से लेकर वीरेंद्र शाही हत्याकांड तक-यूपी में राजनीतिक हत्याओं की रक्तरंजित दास्तान

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा

राजू पाल हत्याकांड (Raju Pal Murder) में गवाह उमेश पाल (Umesh Pal) की दिनदहाड़े हत्या ने यूपी (UP) में राजनीतिक और राजनीति से जुड़ी हत्याओं के जख्मों को हरा कर दिया है. इस हत्याकांड को लेकर पॉलिटिक्स में बौखहालाट है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

पुलिस में कुलबुलाहट है और पब्लिक में अकुलाहट है क्योंकि बात सिर्फ कानून-व्यवस्था को मिली चुनौती की नहीं है. यूपी जुर्म और सियासत की साठगांठ से पैदा हुए पाताल लोक को देख चुका है. उमेश पाल हत्याकांड ने एक झटके में ही यूपी की जमीन की सतह के अंदर अब भी मौजूद उसी 'पाताल लोक' को उघाड़ कर रख दिया है.

उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हत्याओं की रक्तरंजित पृष्ठभूमि की शुरुआत कहां से होती है इसका अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल है लेकिन गोलियों की तड़-तड़ाहट के बीच इसकी सबसे तेज गूंज सुनाई दी 1997 में जब गोरखपुर के चिल्लूपार से तत्कालीन विधायक हरिशंकर तिवारी के चिर प्रतिद्वंदी वीरेंद्र शाही की लखनऊ में गोली मारकर हत्या कर दी गई. 1980 के दशक में तत्कालीन बाहुबली विधायक हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच वर्चस्व की जंग में दोनों तरफ से कई जानें गईं थीं. लेकिन 1997 में शाही की हत्या के बाद इस वर्चस्व की जंग से लखनऊ के हुक्मरानों के कान खड़े हो गए थे.

हत्या का आरोप था माफिया शिव प्रकाश शुक्ला पर. उस दौरान कई बातें निकल कर आई थीं. जहां एक तरफ दावा था कि माफिया गैंगस्टर शुक्ला ने राजनीति में अपनी पैठ बनाने के लिए इस हत्याकांड को अंजाम दिया था. वहीं दूसरा दावा यह था कि हरिशंकर तिवारी के इशारे पर यह हत्या करवाई गई है. बहरहाल इस हत्या की गूंज दूर तक सुनाई दी. उस समय कुछ अखबारों में यह खबर आई कि श्रीप्रकाश शुक्ला ने तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी उठा ली है. उत्तर प्रदेश का तत्कालीन सरकारी अमला और पुलिस प्रशासन हरकत में आ गया. यह वही समय था जब उत्तर प्रदेश में स्पेशल टास्क फोर्स की स्थापना हुई और इस स्पेशल फोर्स ने श्रीप्रकाश शुक्ला को अपना पहला निशाना बनाया.

90 के दशक में प्रदेश की राजनीति उस दौर में थी जहां "बाहुबली", "गैंगवार" और "माफिया" जैसे शब्द बार-बार सुनाई देते थे. 90 और 2000 के दशक में कुछ ऐसी हत्याएं हुईं जिसने प्रदेश की राजनीतिक हवा का रुख मोड़ दिया.

बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय हत्याकांड इनमें एक बड़ा मामला था.

दिन था 29 नवंबर 2005. गाजीपुर के मोहम्मबाद सीट से तत्कालीन विधायक कृष्णानंद राय अपने क्षेत्र के सियाड़ी गांव में आयोजित क्रिकेट प्रतियोगिता का उद्घाटन कर वापस आ रहे थे. घात लगाए बदमाशों ने कृष्णानंद राय के काफिले पर एके-47 से सैकड़ों राउंड फायर कर दिए. इस अंधाधुंध फायरिंग में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों की मौत हो गई थी. हत्या का आरोप लगा था बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी पर. ऐसा माना जाता है कृष्णानंद राय ने 2002 के विधानसभा चुनाव में मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी को हराया था जिसके बाद कृष्णानंद राय मुख्तार के निशाने पर आ गए थे. हालांकि इस मामले की सीबीआई जांच में मुख्तार अंसारी समेत सभी नामजद आरोपी साक्ष्य के अभाव में बरी हो गए.

कृष्णानंद राय की हत्या के तुरंत बाद पूर्वांचल में हड़कंप सा मच गया. गाजीपुर समेत वाराणसी के कई क्षेत्रों में कृष्णानंद राय के समर्थकों ने जमकर उपद्रव किया. समर्थकों के आक्रोश को देखते हुए बनारस के स्कूल और कॉलेज कई दिन तक बंद रहे थे. कृष्णानंद समर्थकों के उपद्रव को देखते हुए अतिरिक्त पुलिस बल भी गाजीपुर और बनारस में तैनात किया गया था. बीजेपी की तरफ से मोर्चा संभाला मौजूदा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने. हत्याकांड में सीबीआई जांच की मांग को लेकर राजनाथ सिंह बनारस में जिला मुख्यालय पर अनशन पर बैठ गए थे. 15 दिन तक चले अनशन के बाद राजनाथ सिंह से मिलने अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे थे.

इस घटना ने गाजीपुर का सियासी माहौल पूरी तरीके से बदल कर रख दिया लेकिन राय परिवार और अंसारी बंधुओं में वर्चस्व की जंग अभी तक जारी है. हर चुनाव से पहले कृष्णानंद राय की हत्या का मामला उभर कर आता है और यह हत्याकांड गाजीपुर में एक मुख्य मुद्दे की तरह अभी भी पूर्वांचल की राजनीति में जिंदा है. दिवंगत विधायक कृष्णानंद राय की पत्नी अलका राय भी सक्रिय राजनीति में आ गई हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में अलका राय ने मोहम्मदाबाद सीट पर अफजाल अंसारी को हराकर जीत दर्ज की. 2022 में अंसारी खेमे ने फिर वापसी की. मुख्तार अंसारी के भतीजे सुहेब अंसारी ने यहां से जीत दर्ज की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

बीएसपी विधायक राजू पाल हत्याकांड

कृष्णानंद राय हत्याकांड से मिलता-जुलता मामला प्रयागराज में भी हुआ. साल भी वही था- 2005. इलाहाबाद पश्चिमी से तत्कालीन BSP विधायक राजू पाल, स्वरूप रानी नेहरू अस्पताल से बाहर निकले और अपनी दो गाड़ियों के काफिले के साथ घर की तरफ बढ़ने लगे. दोनों गाड़ियां सुलेमसराय जीटी रोड पर अमितदीप मोटर्स के सामने पहुंची ही थी कि एक गाड़ी राजू पाल की गाड़ी के आगे आ गई. फिल्मी अंदाज में अचानक सामने आई गाड़ी से संभलने का मौका मिलता कि सामने का शीशा चीरते हुए एक गोली राजू पाल सीने में जा लगी. एक ही पल में पांच हथियारबंद सामने वाली गाड़ी से बाहर आये और फायरिंग शुरू कर दी. तीन लोग राजू की गाड़ी पर ताबड़तोड़ गोली बरसा रहे थे जबकि दो हमलावर पीछे वाली स्कार्पियो पर फायर झोंक रहे थे. दिनदहाड़े सैकड़ों लोगों के सामने हुए शूटआउट में राजू पाल समेत तीन लोगों की हत्या हो गई थी.

साल 2005 में राजू पाल हत्याकांड के बाद इलाहाबाद और यूपी की सियासत में बड़ा बदलाव हुआ. साल 2007 में हुए यूपी विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की हार हुई और BSP ने सरकार बनाई, उधर BSP के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरीं राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने बड़े अंतर से जीत दर्ज की. फिर 2012 के चुनाव में अशरफ की बजाय अतीक अहमद ने खुद पूजा पाल के सामने ताल ठोंकी लेकिन उसे भी हार मिली.

पूजा लगातार दो बार विधायक रहीं लेकिन, 2017 में मोदी लहर के सामने उन्हें सिद्धार्थ नाथ सिंह से हार का सामना करना पड़ा. फिर, 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पाला बदला और हाथी का साथ छोड़कर साइकिल पर सवार हो गईं. इसके साथ ही उन्होंने अपनी सीट भी बदल ली. इलाहाबाद पश्चिमी सीट को छोड़कर उन्होंने कौशांबी की चायल विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. पूजा पाल तीसरी बार विधायक चुनी गई हैं.

उमेश पाल हत्याकांड के बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में कहा है कि ''इस माफिया को वो मिट्टी से मिला देंगे''. उनका इशारा उमेश हत्याकांड के आरोपी पूर्व सांसद अतीक अहमद की ओर था. लेकिन अगर जुर्म और सियासत के गठजोड़ को स्थाई तौर पर तोड़ना है तो इस और उस नहीं हर माफिया को मिट्टी में मिलाना होगा.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×