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वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय (Banaras Hindu University) के जिस लापता छात्र शिव कुमार त्रिवेदी को ढूंढने उसके पिता ने दिन रात एक कर दिया, अब उसकी मौत की पुष्टि हो गई. दो साल पहले मिले शव की डीएनए रिपोर्ट से स्पष्ट हो गया है कि वह शव शिव कुमार त्रिवेदी का ही था. इस मामले में शिव के परिजनों ने लंका थाना की पुलिस द्वारा ऐसा बर्बर व्यवहार करने के आरोप लगाए हैं कि वे अपने बेटे की अंत्येष्टि तक नहीं कर पाए. परिवार के लोग उच्च न्यायालय से दोषियों को सजा दिलाने के लिए गुहार लगा रहे हैं.
मृतक छात्र के पिता के आरोपों के अनुसार इस मामले में वाराणसी पुलिस ने बेहद अमानवीय तरीके से कार्यवाही की है. इस मामले में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने पुलिस प्रशासन की लापरवाही व असंवेदनशीलता पर सवाल उठाए हैं.
वाराणसी के BHU में बीएससी द्वितीय वर्ष के छात्र शिव कुमार त्रिवेदी को पुलिस की 'Police response vehicle' अर्जुन सिंह की शिकायत पर 13 फरवरी 2020 की रात लगभग साढ़े आठ बजे बीएचयू के एमपीथिएटर ग्राउंड से ले गई थी. उसके बाद से शिव का कहीं पता नहीं चला. लगभग दो साल बाद उसके मौत की पुष्टि हुई है. पुलिस के अनुसार शिव की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी, जिसके कारण तालाब में डूबने से उसकी मौत हो गई.
शिव त्रिवेदी के पिता प्रदीप त्रिवेदी ने बताया की 12 फरवरी 2020 (कोरोना काल से ठीक पहले) को शिव की तबीयत खराब थी. 13 को वह खाना खाने बीएचयू स्थित अन्नपूर्णा भोजनालय गया था. उस दौरान बातचीत में उसने कहा कि तबीयत ठीक नहीं है, आप वाराणसी आ जाओ. 13 फरवरी की शाम के बाद उससे बात नहीं हुई तो प्रदीप खुद 16 को वाराणसी पहुंच गए. बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर ऑफिस और लंका थाने में बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई, लेकिन थाना ने कोई सपोर्ट नहीं किया.
लंका थाने की PRV टीम 13 फरवरी 2020 को शिव को थाना ले गई थी. उसी थाने पर गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करते समय प्रदीप को नहीं बताया गया की 4 दिन पहले शिव को थाने लाया गया था. शिव के पिता ने इश्तहार छपवाया और अखबारों में विज्ञापन दिया. तब पुलिस का भेद खुलना शुरू हुआ.
13 फरवरी की रात जब शिव बीएचयू परिसर स्थित एमपीथिएटर ग्राउंड में बेसुध अवस्था में दिखा तो वहां से गुजर रहे अर्जुन सिंह ने 112 नंबर पर फोन करके पुलिस को बुलाया था.
अर्जुन सिंह ने बताया कि अंधेरे में मुझे लगा कि नशे की वजह से कोई छात्र यहां बैठा है, इसलिए मैंने 112 नंबर पर फोन किया. मेरे सामने ही लंका थाने की पुलिस आई और शिव को ले गई. इसके बाद मैं भी इसे भूल गया. बाद में मैंने फेसबुक पर गुमशुदगी का पोस्टर देखा तब शिव के पिता का नंबर लेकर पूरी बात बताई.
प्रदीप त्रिवेदी ने बताया कि अुर्जन से बात करने के बाद अगले ही दिन वह दोबारा लंका थाने गए. वहां पूरी बात बताई, लेकिन पुलिस वालों ने कहा कि उन्हें कुछ नहीं पता. जब उन्होंने पीआरवी वाहन का नंबर बताया तो पुलिस ने उसे थाना चेतगंज की PRV कह कर उन्हें वहां से चलता कर दिया.
चेतगंज थाने से सीर गेट चौकी में पता करने के लिए कहा गया. वहां जाने पर कंट्रोल रूम में जाने की बात कही गई. वहां से भी कोई जानकारी नहीं मिली. इसके बाद अगले दिन अर्जुन को लेकर शिव के पिता प्रदीप एसएसपी के पास पहुंचे.
प्रदीप ने बताया कि एसएसपी के आदेश के बाद मुझे तत्कालीन इंस्पेक्टर लंका भारत भूषण तिवारी के सामने भेजा गया. PRV के ड्राइवर ने कहा कि मैंने इन्हें ही सौंपा था. भारत भूषण ने कबूला कि शिव रातभर कस्टडी में बंद था. सुबह जब हमने उसे देखा तो उसने कपड़े में बाथरूम कर दिया था. वह मानसिक रूप से बीमार लग रहा था. इसलिए हमने उसे छोड़ दिया. इसके बाद वह कहां गया, हमे नहीं पता, लेकिन लिखित में यह बात किसी ने नहीं बताई.
बीएचयू के पूर्व छात्र और इलाहाबाद हाई कोर्ट में वकील सौरभ तिवारी ने मामले की गंभीरता जानी और मामले को लेकर हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की. जिसकी पहली सुनवाई 25 अगस्त 2020 को हुई.
पहली सुनवाई में मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और सौमित्र दयाल सिंह कि संयुक्त खंडपीठ ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा था कि अगर जरूरी हुआ तो मामले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी. अगली सुनवाई सितंबर में हुई.
इस सुनवाई में एसएसपी वाराणसी को व्यक्तिगत शपथ पत्र के साथ कोर्ट के समक्ष पेश होने के लिए कहा गया. 22 सितंबर को सुनवाई में कोर्ट में वाराणसी एसएसपी अमित पाठक ने एफिडेविट जमा किया और कहा कि यह सच है कि शिव कुमार त्रिवेदी को लंका थाने की पुलिस उस दिन लायी थी और वह थाने से ही गायब हुआ.
इस मामले में तत्कालीन एसएसपी (वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक) अमित पाठक ने दो सितंबर 2020 को पांच पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया था. इसमें 2 उपनिरीक्षक और 3 कॉन्स्टेबल शामिल थे. नवंबर 2020 में यूपी पुलिस से केस सीबीसीआईडी के पास चला गया.
शिव को ढूंढते हुए दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. पुलिस के अनुसार उन्होंने शिव को कई राज्यों में ढूंढा. कई जगह तो वे प्रदीप को भी साथ ले गए. लेकिन शिव तो पहले ही मर चुका था.
21 अप्रैल को इलाहाबाद हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पुलिस ने बताया कि 15 फरवरी 2020 को यानी जिस दिन पुलिस शिव को लेकर थाना गई थी, उसके दो दिन बाद, वाराणसी के रामनगर स्थित जमुना तालाब में एक शव मिला था.
सीबीसीआईडी सीआईएस शाखा लखनऊ की आईपीएस सुनिता सिंह की अगुवाई में पुलिस ने उसका डीएनए टेस्ट कराया, जो शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी से मैच कर गया. मतलब शिव की मौत पहले ही हो चुकी है.
21 अप्रैल को हुई सुनवाई के बारे में अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने बताया कि उन्होंने न्यायालय के समक्ष कई प्रश्न पुलिस के लिए खड़े किए. बताया की पुलिस के अनुसार छात्र मानसिक रूप से बीमार था. लंका थाने से जाने के बाद वह रामनगर के तालाब में जाकर डूब गया. इस पर मैंने अपनी बात रखी और न्यायालय को बताया कि वह छात्र लंका थाने 5 किलोमीटर रामनगर के तालाब या पोखरी में क्यों जाएगा. अगर उसे डूबकर मरना ही था तो वह गंगा में क्यों नहीं कूदा, जबकि वह उसके रास्ते में ही पड़ता.
एक बात और कि जब छात्र के पिता थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं तो उससे संबंध पुलिस अधिकारी छह महीने तक कोई जांच ही नहीं करते. जांच शुरू हुई 16 अगस्त 2020 से. ये तमाम सवाल मैंने कोर्ट में उठाया. अगली सुनवाई 14 जुलाई को होगी.
बेहद गरीब घर से ताल्लुक रखने वाले शिव के पिता प्रदीप के पास कुल 5 एकड़ जमीन थी. अपने मेधावी बेटों को पढ़ाने के लिए वह इसी से अर्जन करते थे.
शिव का छोटा भाई उमाशंकर त्रिवेदी डीयू से स्नातक करने के बाद संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तैयारी कर रहा है. बेटों की पढ़ाई के लिए वह कर्ज लेने से भी नहीं चूके. जब शिव लापता हुआ तब गांव के सरपंच से कर्ज लेकर वह वाराणसी समेत आसपास के शहरों और राज्यों में उसे ढूंढते रहे.
उन्होंने बताया कि जब कोर्ट से पुलिस को फटकार लगी तब तत्कालीन लंका इंस्पेक्टर भारत भूषण तिवारी प्रदीप के गांव पहुंचे और सरपंच के पास जाकर उन्हें बुलवाया.
प्रदीप ने कहा कि भारत भूषण तिवारी ने उनसे 10 लाख रुपए लेकर जमीन छुड़ाने की बात कही. इसके एवज में मुकदमा वापस लेने का दबाव बनाया. लेकिन, प्रदीप ने ऐसा करने से मना कर दिया. जिसके बाद पुलिस के दबाव में सरपंच ने अपने पैसे की डिमांड प्रदीप से शुरू कर दी. बड़ी रकम होने के कारण वह उसे चुका ना सके और तय समय के पहले ही उनकी सारी जमीन सरपंच ने अपने नाम करा ली. आज प्रदीप मजदूरी करके अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. वहीं शिव का छोटा भाई दिल्ली में जैसे तैसे गुजारा करके सिविल सर्विसेज की तैयारी कर रहा है.
शिव के छोटे भाई उमाशंकर ने कहा कि 'भइया से मेरी आखिरी बार बातचीत 12 फरवरी को हुई थी. पुलिस कह रही थी कि वह पागल था. कोई पागल व्यक्ति बीएचयू जैसे श्रेष्ठ संस्थान में प्रवेश कैसे पा सकता है. उसने प्रथम वर्ष की परीक्षा पास की थी तभी वह द्वितीय वर्ष में पहुंचा था. बावजूद इसके अगर वह पागल था तो उसे पागल खाने छोड़ देते. हमने भाई को कहां नहीं खोजा. पता नहीं पुलिस ने उसके साथ क्या किया था.
बीएचयू से लापता छात्र शिव के पिता प्रदीप त्रिवेदी ने बेटे को खोजने में बड़ा संघर्ष किया. बताते हैं कि जब वह फरवरी में वाराणसी पहुंचे थे उसके कुछ दिन बाद ही लॉकडाउन जैसे हालात पैदा हो गए.
वाराणसी से पन्ना 400 किलोमीटर की दूरी उन्होंने 4 दिन तक लगातार साइकिल चलाकर तय की थी. लॉक डाउन का वक्त लंबा होने के कारण बीच में कई बार वह साइकिल से ही वाराणसी आए और जहां तहां बेटे को ढूंढा. लेकिन उसका कहीं पता नहीं चला. पुलिस की गालियां खाई और धमकियां भी सुनीं, लेकिन डटे रहे. प्रदीप ने कहा कि अब बेटे की मौत की पुष्टि हो चुकी है अब न्यायालय से सच और न्याय की उम्मीद है
प्रदीप त्रिवेदी ने पुलिस पर मामले को दबाने और छुपाने के कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा की 16 फरवरी 2020 को मैं लंका थाने अपने बेटे शिव कुमार त्रिवेदी के गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचा था. जबकि 15 फरवरी को ही रामनगर थाने में एक शव की बरामदगी हुई थी. लेकिन मुझे इसकी जानकारी नहीं दी गई. पुलिस चाहती तो उसी वक्त शिनाख्त हो सकती थी.
उन्होंने कहा कि सीबीसीआईडी की जांच में रामनगर थाने से बरामद शव की फोटो दिखाई गई तो वह मेरे बेटे की ही थी. उसके शरीर पर जो कपड़े थे वह मुसलमान के कपड़े लग रहे थे. उन्होंने आरोप लगाया कि कहीं ना कहीं यह पुलिस के आपराधिक दिमाग का कार्य है. मेरे बेटे को मार कर और कपड़े बदल कर वहां फेंका गया था ताकि उसकी पहचान ना हो सके.
उन्होंने पुलिस के भयानक चेहरे का नकाब हटाते हुए कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब गरीबों को स्कूलों और सेंटरों पर रखा जा रहा था, उसी दौरान पुलिस ने मुझे एक सेंटर पर ले जाकर शिनाख्त कराने की कोशिश की थी. जहां एक कंकाल उनके बेटे के कपड़े पहने हुए पड़ा हुआ था.
शिनाख्त में प्रदीप ने कपड़े को तो बेटे का माना, लेकिन कंकाल से कुछ स्पष्ट नहीं हो रहा था. पुलिस ने दबाव बनाया कि यही तुम्हारे बेटे का शव है, इस पर प्रदीप ने डीएनए टेस्ट की बात की. टेस्ट रिपोर्ट आने पर पता चला कि वह कंकाल पुरुष का नहीं महिला का है. पुलिस अपना चरित्र इतना गिरा लेगी प्रदीप को पता नहीं था. उन्हें न्यायालय पर पूरा भरोसा है. पुलिस की प्रताड़ना बताते हुए उनकी आंखें भर आईं.
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने ट्विटर पर लिखा है कि बीएचयू के छात्र शिव त्रिवेदी के परिवार की दर्दनाक आपबीती सुनकर मन को भारी दुख पहुंचा. पन्ना, मध्यप्रदेश से बीएचयू पढ़ने आए इस मेधावी छात्र के परिवार को 2 साल बाद पता चला कि शिव की मृत्यु हो गई. इस पूरी घटना में पुलिस प्रशासन की लापरवाही व असंवेदनशीलता साफ झलकती है और उच्चस्तरीय जांच से ही सही जानकारी व न्याय सुनिश्चित हो पाएगा. शिव त्रिवेदी के परिवार को न्याय जरूर मिलना चाहिए.
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