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“साला SC होने के बाद भी इतना एटीट्यूड दिखाता है!" भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) के कैंपस में कथित तौर पर एक सीनियर द्वारा फर्स्ट ईयर के स्टूडेंट को यह कहा गया था.
IIT-दिल्ली के एक छात्र ने दावा किया कि उसके दो "ब्राह्मण दोस्त लोगों की त्वचा के रंग के आधार पर उनकी जाति का अनुमान लगाने का खेल भी खेलते थे." उस छात्र ने ट्विटर पर लिखा, "वे मेरा भी मजाक उड़ाते थे, हॉस्टल में मौजूद मेरे कमरे में फैली गंदगी को लेकर वे हमेशा यह कह कर ताने मारते थे कि मेरी परवरिश को एक अस्वच्छ गैर-ब्राह्मण जाति के तौर हुई है."
IIT-बॉम्बे के एक दलित छात्र, 18 वर्षीय दर्शन सोलंकी की कथित तौर पर जातिगत भेदभाव के कारण आत्महत्या करने की खबर सामने आने के बाद से प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के कई पूर्व और वर्तमान छात्रों ने जातिगत पूर्वाग्रह के उदाहरणों को साझा किया है.
द क्विंट ने IIT-बॉम्बे, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (NLU) जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के मौजूदा और पूर्व छात्रों से कैंपस में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीकों से जातिगत भेदभाव का सामना करने के बारे में बात की.
अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली एक युवती, जो कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) में पढ़ती है, उसने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट से बात की. उस युवती ने आरोप लगाते हुए कहा कि जब मेरे रूममेट को पता चला कि मैं अनुसूचित जाति से हूं, "तो अचानक से मेरे प्रति उनका व्यवहार बदल गया, खासतौर पर तब जब अकादमिक चर्चाओं की बात आती थी."
युवती ने कहा, "पूर्वाग्रह मेरे मुंह पर नहीं होता था, लेकिन जिस तरह से मेरे अकादमिक नजरिये को लेकर वे (रूममेट) ट्रीट करते थे उससे मैं इसे (पूर्वाग्रह को) साफ तौर पर देख सकती थी."
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि सोलंकी के रिश्तेदारों ने भी आरोप लगाते हुए द क्विंट से कहा था कि 18 वर्षीय सोलंकी ने अपनी बहन और एक चाची को बताया था कि जब उसके साथियों को पता चला कि वह दलित है, तो उसके प्रति उनका व्यवहार बदल गया था.
एनएलयू स्टूडेंट ने यह भी दावा किया कि "कुछ प्रोफेसर" स्टूडेंट्स को कैजुअली उनके सरनेम से पुकारते हैं, जोकि कुछ स्टूटेंड्स के लिए "ऑफ-पुटिंग" हो सकता है. एनएलयू स्टूडेंट ने आगे कहा कि "यह उन लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं है जो कि प्रिविलेज्ड बैकग्राउंड या फिर ऊंची जाति के हैं... लेकिन हम जैसे में से कुछ के लिए, यह परेशानी भरा है, क्योंकि इससे पूरी कक्षा को पता चलता है कि हम किस जाति के हैं."
उसने गुजरात एनएलयू की एक हालिया घटना को याद किया जहां एक प्रोफेसर ने छात्रों को एक इंट्रोडक्ट्री सेशन (परिचय देने का सत्र) के दौरान अपनी रैंक (वर्ग या श्रेणी) बताने के लिए कहा था. एनएलयू स्टूडेंट ने दुख जताते हुए कहा कि "इससे प्रभावी तौर पर यह पता चल गया कि कौन सा स्टूडेंट किस जाति/श्रेणी के थे, जिससे वे छात्र और भी अलग-थलग पड़ गए."
जब उस एनएलयू स्टूडेंट से पूछा गया कि क्या उसने अपनी शिकायत को दूर करने के लिए एससी/एसटी सेल से संपर्क किया था. इस पर उसने कहा कि यह सेल महज तीन साल पहले चालू हुई है. वे कहती है कि "उस समय मैं फर्स्ट ईयर में थी, ऐसे में मेरे लिए यह काफी डरावना था. मैं तमाशा खड़ा करने वाली स्टूडेंट के तौर पर अपनी पहचान नहीं बनाना चाहती थी. हमारे लिए खासकर हम जैसों के लिए बहुत कुछ दांव पर लगा है."
उसने कहा कि कुछ साल मुझे महसूस हुआ कि "एससी/एसटी सेल में जाने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा." वे कहती है कि “इसकी प्रक्रिया काफी लंबी खिंचती है और इस गंदगी में आपका नाम घसीटा जाता है. इसके अलावा, लॉ कॉलेजों में जातिगत भेदभाव इतना बारीक होता है कि आप वाकई में इसे इंगित नहीं कर सकते हैं. यह सिर्फ आपके इर्द-गिर्द होता है. आप इसे महसूस तो कर सकते हैं लेकिन यह एक समस्या के रूप में प्रकट नहीं हो सकता. लोग समझते नहीं हैं. इसके अलावा उसने यह भी कहा कि कॉलेज में दो काउंसलर हैं और “दोनों उच्च जाति के हैं."
IIT बॉम्बे के एक छात्र ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि "आईआईटी, जहां मेरिट या योग्यता को प्रमुखता दी जाती है, चूंकि यह एलीट संस्थानों में माना जाता है, इससे उन छात्रों पर अतिरिक्त प्रेशर पड़ता है जो प्रिविलेज्ड/ विशेषाधिकार बैकग्राउंड से नहीं आते हैं."
दर्शन सोलंकी के बारे में IIT बॉम्बे के स्टूडेंट ने कहा कि "सोलंकी ने बिना किसी कोचिंग संस्थानों की मदद के अपने दम पर सबसे चैलेंजिंग एंट्रेस एग्जामों में से एक को क्लियर किया था. दर्शन जैसे यहां कई स्टूडेंट हैं, जिन्होंने खुद के बलबूते यहां तक का मुकाम बनाया है. वह उन प्रतिभाशाली स्टूडेंट्स में से एक था जिन्होंने आईआईटी में प्रवेश पाने के लिए कई बाधाओं को पार किया है."
सोलंकी के चाचा इंद्रवदन परमार ने भी कुछ दिनों पहले द क्विंट को बताया था कि "दर्शन एक प्रतिभाशाली छात्र था, उसने अपनी कड़ी मेहनत से अपने ड्रीम इंस्टीट्यूट में सीट हासिल की थी. उसने बिना कोचिंग के यह मुकाम हासिल किया था."
IIT बॉम्बे के छात्र ने याद करते हुए कहा कि "जैसे ही एससी/एसटी बैकग्राउंड वाला कोई स्टूडेंट कैंपस में कदम रखता है, वह एक नई तरह की गलाकाट प्रतियोगिता से घिर जाता है. किसी के लिए भी यह सुनना बहुत ही हतोत्साहित या परेशान करने वाला हो सकता है कि फलां स्टूडेंट योग्य नहीं है, उसे तो आरक्षण (रिजर्वेशन) के जरिए एडमिशन मिला है. मुझे याद है कि दर्शन ने एक बार अपने दोस्त से कहा था, 'मैं घर पर सबका लाड़ला था, यहां तो कोई वैल्यू ही नहीं है.'"
IIT बॉम्बे का छात्र जोकि अम्बेडकर पेरियार फुले स्टडी सर्कल (APPSC) नामक छात्र समूह का सदस्य भी है, उसने दावा करते हुए कहा कि IIT बॉम्बे में SC/ST सेल इन समुदायों से संबंधित छात्रों का सपोर्ट करने के लिए पर्याप्त रूप से काम नहीं कर रही है, उसने यह भी कहा कि पिछले साल ही इस सेल को कैंपस में एक कमरा मिला था.
उसने आरोप लगाते हुए कहा कि "इस सेल ने ऐसी कोई भी सेंसिटाइजेशन एक्टिविटीज भी नहीं की है जोकि दिखाई दें. स्टूडेंट्स को पता भी नहीं है कि ये सेल है भी या नहीं... IIT बॉम्बे ने दो सर्वे किए थे. एक जातिगत भेदभाव के उदाहरणों पर फरवरी 2022 में और दूसरा जून 2022 में मानसिक स्वास्थ्य पर, लेकिन इन सर्वे में क्या सामने निकलकर आया यह कभी सार्वजनिक नहीं किया गया."
IIT बॉम्बे के छात्र ने कहा कि भले ही सर्वे के निष्कर्षों को कभी सबके सामने नहीं लाया गया लेकिन इसके बावजूद निष्कर्षों के आधार पर मेंटरशिप प्रोग्राम शुरू कर दिया गया. छात्र ने कहा कि "क्या यह स्वीकार नहीं है कि छात्रों को कैंपस में भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है? सबसे पहले तो, IIT बॉम्बे को यह स्वीकार करने की जरूरत है कि कोई तो समस्या है, तभी इसे ठीक किया जा सकता है. अगर यह मान कर चलेंगे कि कोई समस्या ही नहीं है तो हम समाधान तक कैसे पहुंच सकेंगे."
इसी बीच, एक बयान में IIT बॉम्बे ने जातिगत भेदभाव के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि "कैंपस को यथासंभव समावेशी बनाने के लिए संस्थान (IIT बॉम्बे) अत्यधिक सावधानी बरतता है. फैकल्टी द्वारा किसी भी तरह के भेदभाव के लिए IIT बॉम्बे द्वारा जीरो टॉलरेंस नीति का पालन किया जाता है. एडमिशन होने के बाद कभी भी किसी की भी जाति की पहचान डिस्क्लोज नहीं की जाती है... हालांकि कोई भी उपाय पूरी तरह से 100 फीसदी प्रभावी नहीं हो सकता है, अगर स्टूडेंट्स के साथ भेद-भाव होता है तो यह एक अपवाद है."
"तू एससी है, अपने लेवल में रह", "अपना मुह बंद कर" और "काली बिल्ली की तरह मेरा रास्ता मत काट" दिल्ली पुलिस के पास दर्ज एक FIR के अनुसार ये कुछ ऐसी बाते हैं जोकि एम्स में सेंटर फॉर डेंटल एजुकेशन एंड रिसर्च (CDER) के एक फैकल्टी मेंबर ने कथित तौर पर मार्च 2020 में एक वरिष्ठ रेजिडेंट डॉक्टर से कहीं थीं.
जाति और लिंग आधारित भेदभाव के कारण 17 अप्रैल, 2020 को महिला द्वारा आत्महत्या के कथित प्रयास के बाद, एससी और एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धाराओं और आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) के तहत FIR दर्ज की गई थी.
महिला डॉक्टर ने कथित तौर पर अपने हॉस्टल के कमरे में दवाओं का ओवरडोज ले लिया था, जिसके बाद उसके दोस्तों ने उसे बेहोशी की हालत में पाया था. वह बच गई. बाद में उसने पुलिस को बताया कि फैकल्टी मेंबर पिछले दो वर्षों से उसके साथ कथित तौर पर भेदभाव कर रहा था.
एम्स में काम कर चुके एक वरिष्ठ डॉक्टर ने द क्विंट को बताया कि प्रतिष्ठित मेडिकल कॉलेज में जातिगत भेदभाव व्याप्त था. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि "एससी / एसटी और ओबीसी कैटेगरी के स्टूडेंट्स को अक्सर इंटरव्यू में कम नंबर दिए जाते हैं, ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि ये स्टूडेंट्स सामान्य श्रेणी (जनरल कैटेगरी) के स्टूडेंट्स के बराबर या उससे अधिक स्कोर न कर पाएं. अगर उन स्टूडेंट्स के नंबर ज्यादा आ गए तो आरक्षित वर्ग का स्टूडेंट अपनी सीट को सामान्य श्रेणी की सीट में बदलवा सकता है, और अधिकारी नहीं चाहते कि ऐसा हो."
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) की एक पूर्व स्टूडेंट ने नाम न छापने की शर्त पर द क्विंट को बताया कि "यहां मुझे ऐसा लगा कि मेरे पास चर्चाओं में पार्टिसिपेट करने (हिस्सा लेने) या सिर्फ बात करने के लिए कोई जगह ही नहीं है."
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) बैकग्राउंड से आने वाली इस स्टूडेंट ने कहा कि "प्रिविलेज्ड बैकग्राउंड से आने वाले स्टूडेंट्स की स्किल्स जैसे कि उनके जैसे भाषा कौशल और उनके जैसे कॉन्फिडेंस लेवल से मेल खाने के लिए मुझे अक्सर अतिरिक्त दबाव का अहसास कराया गया, लेकिन मुझे हमेशा लगता था कि मुझमें ही कुछ कमी थी."
क्विंट ने जब इस स्टूडेंट से पूछा कि क्या उसने कभी TISS के किसी सेल (प्रकोष्ठ) से संपर्क किया था. इस पर उसने कहा कि नहीं. "मुझे नहीं लगता कि ओबीसी छात्रों के लिए कोई सेल या तंत्र (मैकेनिज्म) है. अगर वहां था, तो भी मुझे इसके बारे में पता नहीं था. मैंने कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई."
उसने कहा कि वह अपने साथी स्टूडेंट्स और अन्य छात्र समूहों के साथ मुद्दों पर चर्चा करती थी. उसने कहा कि "सामाजिक विज्ञान संस्थान होने की वजह से यहां जातिवाद और भेदभाव पर चर्चा होती थी, आईआईटी के विपरीत जहां छात्रों को इस तरह की चर्चाओं से अवगत नहीं कराया जा सकता है."
उसने कहा कि सोलंकी की मौत (आत्महत्या) ने उसे मेडिकल स्टूडेंट पायल तड़वी की याद दिला दी है. कथित तौर पर अपने सीनियर्स द्वारा उत्पीड़न का सामना करने के बाद मई 2019 में पायल ने आत्महत्या कर ली थी. जब यह घटना हुई थी उस समय अनुसूचित जनजाति से ताल्लुक रखने वाली 26 वर्षीय पायल तड़वी मुंबई के टीएन टोपीवाला नेशनल मेडिकल कॉलेज (TNMC) में एमडी द्वितीय वर्ष की छात्रा थी.
दर्शन सोलंकी मूल रूप से गुजरात के अहमदाबाद से था, केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए करीब तीन महीने पहले उसने IIT बॉम्बे में प्रवेश किया था. उसकी पहले सेमेस्टर की परीक्षाएं अभी ही खत्म हुई थीं. उसके चाचा परमार ने द क्विंट को बताया कि घटना से एक दिन पहले 11 फरवरी को, उसने अपने परिवार को वीडियो कॉल किया था. वह आगामी फेस्टिवल्स के लिए घर वापस जाने के लिए उत्साहित लग रहा था.
परमार ने सवाल उठाते हुए कहा कि "वह एक ब्रिलियंट स्टूडेंट था. फिर किस वजह से उसने इतना बड़ा कदम उठाया?." सोलंकी के परिवार ने आरोप लगाया है कि उसकी जाति के कारण उसके साथ भेदभाव किया जा रहा था.
परमार ने दावा करते हुए कहा कि "मेरे भतीजे ने हम लोगों को बताया था कि जब उसके दोस्तों को पता चला कि मैं अनुसूचित जाति का हूं तब से मेरे प्रति उनका व्यवहार बदल गया था." परमार आगे कहते हैं कि सोलंकी के कुछ दोस्तों ने "उससे बात करना बंद कर दिया था और जब से उन्हें यह पता चला था कि दर्शन दलित समुदाय से है, तब से वे उसे ताने मारते और परेशान करते थे."
APPSC ने आरोप लगाया है कि सोलंकी की मौत "निजी / व्यक्तिगत मामला" के बजाय "संस्थागत हत्या" थी, लेकिन IIT बॉम्बे ने कैंपस में जातिगत भेदभाव के आरोपों का दृढ़ता से खंडन किया है.
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