Home News Education शिक्षा नीति सरकारी नहीं प्राइवेट स्कूल को बढ़ावा देती है:सिसोदिया
शिक्षा नीति सरकारी नहीं प्राइवेट स्कूल को बढ़ावा देती है:सिसोदिया
मनीष सिसोदिया का मानना है कि नई शिक्षा नीति ‘हाइली रेगुलेटेड और पुअरली फंडेड’ है.
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शिक्षा नीति सरकारी नहीं प्राइवेट स्कूल को बढ़ावा देती है:सिसोदिया
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दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार की सबसे ज्यादा तारीफ शिक्षा व्यवस्था को लेकर हुई है. दिल्ली के सरकारी स्कूलों की तस्वीर को सुधारने का श्रेय डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को दिया जाता है. अब देश को 34 साल बाद नई शिक्षा नीति मिली है, इस पर सिसोदिया कहते हैं कि नई नीति सरकारी स्कूलों को सुधारने की जिम्मेदारी से भाग रही है और प्राइवेट स्कूलों को बढ़ावा देने वाला है. उनका कहना है कि सरकारी स्कूल का स्तर इतना अच्छा होना चाहिए कि किसी को भी प्राइवेट स्कूल में जाना ही न पड़े.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सिसोदिया ने कहा,
नई शिक्षा नीति में 2 खामियां हैं - पहली कि ये अपनी पुरानी समझ, परंपराओं के बोझ से दबी है और उससे मुक्त नहीं हो पाई है. दूसरा ये पॉलिसी भविष्य की जरूरतों की बात तो करती है लेकिन लोगों तक कैसे पहुंचेगी इसे लेकर भ्रमित है.
उनका मानना है कि ये नीति 'हाइली रेगुलेटेड और पुअरली फंडेड' है.
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बता दें कि 30 जुलाई को भारत में 34 साल बाद पहली बार नई शिक्षा नीति को कैबिनेट की मंजूरी मिली, जिसमें हायर एजुकेशन और स्कूली शिक्षा को लेकर कई अहम बदलाव हुए हैं. सबसे बड़ी राहत उन छात्रों को दी गई है, जिन्हें किसी कारण से अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ती है. अब उनके लिए नई शिक्षा नीति में एक तय समयसीमा में वापस आने और सर्टिफिकेट या डिप्लोमा का विकल्प दिया गया है. इसके अलावा बोर्ड एग्जाम्स को लेकर भी कुछ बदलाव होने जा रहे हैं.
इन सभी बदलावों पर शिक्षाविदों की मिली जुली राय देखने को मिली है, ज्यादातर का मानना है कि देश को नई शिक्षा नीति की जरूरत थी, जो मिल चुकी है लेकिन कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति भी आईं हैं.
34 साल बाद नई शिक्षा नीति- 10 बड़ी बातें
जीडीपी का कुल 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करने का लक्ष्य तैयार किया गया है. फिलहाल भारत की जीडीपी का 4.43% हिस्सा शिक्षा पर खर्च होता है. वहीं मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर अब शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है.
अगर आप किसी पारिवारिक समस्या या फिर किसी अन्य कारण से पढ़ाई को बीच सेमेस्ट में छोड़ते हैं तो अब मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम के तहत अगर आपने एक साल पढ़ाई की है तो सर्टिफिकेट, दो साल बाद डिप्लोमा और तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी. यानी आप अधूरी पढ़ाई का भी कहीं इस्तेमाल कर सकते हैं.
अगर आपने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और वापस कुछ महीने या कुछ साल बाद उसे पूरा करना चाहते हैं तो उसका भी प्रावधान है. आपने अगर तीसरे साल में ब्रेक लिया है और तय समय सीमा में वापस आते हैं तो आपको सीधे उसी साल में एडमिशन मिल जाएगा.
आज अगर 4 सेमेस्टर या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद मैं किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ सकता हूं तो मैं आउट ऑफ द सिस्टम हो जाता हूं. लेकिन अब मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में अब एक साल के बाद सर्टिफिकेट, दो साल के बाद डिप्लोमा और तीन या चार साल के बाद डिग्री दी जाएगी.
रिसर्च में जाने वालों के लिए भी नई व्यवस्था की गई है. उनके लिए 4 साल के डिग्री प्रोग्राम का विकल्प दिया जाएगा. यानी तीन साल डिग्री के साथ एक साल एमए करके एम फिल की जरूरत नहीं होगी. इसके बाद सीधे पीएचडी में जा सकते हैं. हालांकि इस पर अभी सफाई की जरूरत है कि
मल्टीपल डिसिप्लनरी एजुकेशन में अब आप किसी एक स्ट्रीम के अलावा दूसरा सब्जेक्ट भी ले सकते हैं. यानी अगर आप इंजीनियरिंग कर रहे हैं और आपको म्यूजिक का भी शौक है तो आप उस विषय को भी साथ में पढ़ सकते हैं.
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी हर कॉलेज और यूनिवर्सिटी को एक एंट्रेंस एग्जामिनेशन ऑफर करेगी, ताकि बच्चे एक कॉमन एग्जाम से यूनिवर्सिटी में एडमिशन ले सकें. ये हायर एजुकेशन के लिए कॉमन एंट्रेंस एग्जामिनेशन होगा.
कहा गया है कि पांचवी कक्षा तक स्कूलों में मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाया जाए. हो सके तो इसी तरह 8वीं तक पढ़ाया जाए. टीचर्स के लिए एक नेशनल प्रोफेशनल स्टैंडर्ड तैयार किया जाएगा. जिससे टीचर्स का रोल क्या है और उन्हें किस बेंचमार्क तक पहुंचना है ये तय किया जाएगा.
स्कूली बच्चों के रिपोर्ट कार्ड में तीन तरह के मूल्यांकन होंगे. जिसमें पहला मूल्यांकन बच्चा खुद करेगा, दूसरा उसके सहपाठी करेंगे और तीसरा टीचर्स करेंगे. इस रिपोर्ट कार्ड में बच्चे की लाइफ स्किल पर भी हर बार चर्चा होगी.
बोर्ड एग्जाम के महत्व को कम करने के लिए अब इन्हें दो बार कराए जाने की योजना भी बनाई जा रही है. वहीं बोर्ड एग्जाम में हर सब्जेक्ट को दो लेवल पर भी ऑफर किया जा सकता है. बोर्ड एग्जाम के लिए कहा गया है कि इसमें सिर्फ नॉलेज टेस्ट की जाए. जो रटकर याद किया गया है उसे टेस्ट नहीं किया जाए. उन चीजों को इस एग्जाम में टेस्ट करें जो रोजमर्रा की चीजों में छात्र इस्तेमाल करेंगे.