Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019‘बोले तो बोले क्या,करें तो करें क्या?’ कृषि कानूनों की वापसी से कुछ लोगों का हाल

‘बोले तो बोले क्या,करें तो करें क्या?’ कृषि कानूनों की वापसी से कुछ लोगों का हाल

किसानों को आंदोलनजीवी, आतंकी, नक्सलवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग कहने वाले कानून वापसी को बता रहे हैं ऐतिहासिक निर्णय

क्विंट हिंदी
न्यूज
Published:
<div class="paragraphs"><p>‘बोले तो बोले क्या,करें तो करें क्या?’ कृषि कानूनों की वापसी से कुछ लोगों का हाल</p></div>
i

‘बोले तो बोले क्या,करें तो करें क्या?’ कृषि कानूनों की वापसी से कुछ लोगों का हाल

(फोटो-पीटीआई)

advertisement

पीएम मोदी (PM Modi) ने जैसे ही कृषि कानूनों (Farms Law) को वापस लेने की घोषणा की, वैसे ही गोदी मीडिया, कुछ बीजेपी नेताओं और सोशल मीडिया पर ‘भक्तों‘ की हालत कुछ ऐसी हो गई- 'एक दम से वक्त बदल दिया, जज्बात बदल दिए'. क्योंकि इससे उन लोगों के लिए किंकर्तव्यविमूढ़ यानी असमंजस में पड़ने की स्थिति हो गई है जो सालभर से आंदोलन में जुटे किसानों को बदनाम कर रहे थे. उन्हें आंदोलनजीवी, खालिस्तानी, आंतकी, नक्सलवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और न जाने क्या-क्या कहकर संबोधित कर रहे थे.

कृषि कानून की वापसी से गोदी मीडिया, भक्त और बीजेपी समर्थकों की भाषा ही बदल गई है. उनको अब उन्हीं किसानों में अन्नदाता और भूमिपुत्र नजर आने लगे हैं जिन्हें वे आतंकी तक कहते थे.

मीडिया

किसान आंदोलन के दौरान मीडिया का एक बड़ा वर्ग सरकार की हां-हां में मिलाने के लिए टीवी चैनल, समाचार पत्र, सोशल मीडिया आदि माध्यमों से कृषि कानूनों के फायदों को खूब बढ़ा-चढ़ा कर दिखा रहा था. उनकी खूबियां गिना रहा था. इसके साथ ही आंदोलन पर जमकर निशाना भी साध रहा था.

किसानों को आंदोलनजीवी, आंतकवादी, खालिस्तानी, नक्सलवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और न जाने किन-किन शब्दों से पुकारा गया.

'खालिस्तान के निशाने पर 'अन्नदाता' पंजाब-हरियाणा के किसानों को खालिस्तान ने मोहरा बनाया', 'खालिस्तानी साजिश का नया खुलासा', 'आंदोलन में टुकड़े-टुकड़े वाली साजिश' नाम से विशेष कार्यक्रम चलाया गया.

रजत शर्मा से लेकर अमीश देवगन तक किसान आंदोलन की आलोचना वाले कार्यक्रम लेकर आए थे. रूबिका लियाकत ने 'हुंकार : किसान आंदोलन में कौन किसका एजेंट' और 'किसान आंदोलन में खलिस्तानी एजेंडे का कबूलनामा' जैसे प्रोग्राम लेकर आई थीं. अर्नब गोस्वामी ने भी किसान आंदोलन पर नेताओं का 'कब्जा' क्यों? और किसान बहाना मोदी निशाना जैसे कार्यक्रम चलाए थे.

किसान आंदोलन के दौरान किसानों को खालिस्तानी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, आंतकवादी कहने वाली मीडिया ने कानून वापसी की घोषणा होते ही पलटी मार ली और अब वही आतंकी और खालिस्तानी "अन्नदाता" के तौर पर दिखने लगा. पहले जो मीडिया खुद आगे बढ़कर किसानों पर दोष मढ रहा था अब वे खुद को अलग करते हुए ऐसी लाइन प्रयोग करने लगा जिसमें वे खुद को अलग करने लगे.

एक प्रमुख चैनल ने लिखा कि 'पक्ष बोल रहा जीत, विपक्ष बोल रहा हार' यानी सरकार कह रही है कि 'जीत' जबकि विपक्ष कह रहा 'हार'. यहां पर चैनल असमंजस में दिख रहा है वह अपना कोई मत नहीं दे पा रहा है. जबकि इससे पहले मीडिया द्वारा किसानों पर हमला बोल रहा था. वहीं एक चैनल ने यू टर्न मारते हुए लिखा कि 'अन्नदाता के सम्मान में सबसे बड़ा फैसला.' एक अन्य लोकप्रिय चैनल ने दिखाया 'हारे नकली किसान, जीता हिंदुस्तान'. कुछ ने इसे चुनावी महौल में रंगते हुए लिखा 'चुनाव से पहले लचीले रुख का संकेत.'

नेता-समर्थक तब और अब

तब बीजेपी सांसद साक्षी महराज ने कहा था कि वे किसान है ही नहीं. वे आतंकवादी है, दलाल हैं.

केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ ने किसानों को ‘दो मिनट में सुधार देने की चेतावनी’ और ‘लखीमपुर खीरी छोड़ने’ की चेतावनी दी थी.

राजस्थान के दौसा से भाजपा सांसद जसकौर मीणा ने कहा था, ‘अब ये कृषि कानून का ही देख लीजिए, कि आंतकवादी बैठे हुए हैं, और आतंकवादियों ने एके-47 रखी हुई है, खालिस्तान का झंडा लगाया हुआ है.’

बीजेपी आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने प्रदर्शनकारी किसानों को खालिस्तानी और माओवादियों से जुड़ा हुआ बताया था.

बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव वाई. सत्या कुमार ने अपने एक ट्वीट में कहा था, ‘आतंकवादी भिंडरावाले किसान तो नहीं था? उत्तर प्रदेश में जिस तरह गुंडे तथाकथित किसान बन कर हिंसक आंदोलन कर रहे हैं, वो कोई संयोग नहीं बल्कि एक सुनियोजित प्रयोग लगता है. जिहादी और खालिस्तानी अराजक तत्व प्रदेश में अशांति फैलाना चाहते हैं.’

मध्य प्रदेश के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा था कि मुझे यह नहीं समझ आता है कि इन कृषि कानूनों में 'काला' क्या है? टुकड़े-टुकड़े गैंग ही वह है, जो किसानों को भड़का और गुमराह कर रहा है. अभी तक, कोई भी 'काले कानून' की व्याख्या नहीं कर सका है.

जयपुर में बीजेपी नेता अरुण सिंह ने बयान दिया था कि किसानों के प्रदर्शन में एक फीसदी किसान भी शामिल नहीं हैं. किसान भोले-भाले हैं, लेकिन इनमें टुकड़े-टुकड़े गैंग के लोग घुस गए हैं जिनके बारे में बात करना जरूरी है.

भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने कहा था कि ‘दिल्ली के ताजा किसान आंदोलन में जिस तरह के नारे लगे और जिस तरह से इसे शाहीन बाग मॉडल पर चलाया जा रहा है, उससे साफ है कि किसानों के बीच टुकड़े-टुकड़े गैंग और सीएए-विरोधी ताकतों ने हाईजैक करने में कोई कसर नहीं छोड़ी.’

भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष का कहना ​​था कि किसान अपनी चिंताओं के आधार पर प्रदर्शन नहीं कर रहे थे, बल्कि वे कार्यकर्ता मेधा पाटकर और आप नेताओं सहित अन्य लोगों के बहकावे में आ गए हैं.

पीयूष गोयल ने कहा था कि विरोध प्रदर्शन करने वाले ये लोग वास्तव में किसान नहीं हैं, क्योंकि इसमें ‘वामपंथियों’ और ‘माओवादी तत्वों’ द्वारा घुसपैठ की गई है. उन्होंने कहा कि वे किसानों के मुद्दों पर विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि वे ‘राष्ट्र विरोधी गतिविधियों’ के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों की रिहाई की मांग कर रहे हैं.

रविशंकर प्रसाद ने कहा था कि ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ ने विरोध प्रदर्शन पर कब्जा कर लिया है. यही कारण है कि किसानों और केंद्र के बीच बातचीत विफल रही.

मंत्री रावसाहब दानवे ने कहा था कि जो आंदोलन चल रहा है वह किसानों का नहीं है. इसके पीछे चीन और पाकिस्तान का हाथ है. ये है दूसरे देशों की साजिश.

कंगना रनौत ने प्रधानमंत्री के MSP बरक़रार रखने के वादे को रीट्वीट करते हुए लिखा था कि, "प्रधानमंत्री जी कोई सो रहा हो उसे जगाया जा सकता है, जिसे ग़लतफ़हमी हो उसे समझाया जा सकता है मगर जो सोने की ऐक्टिंग करे, नासमझने की ऐक्टिंग करे उसे आपके समझाने से क्या फ़र्क़ पड़ेगा? ये वही आतंकी हैं CAA से एक भी इंसान की सिटिज़नशिप नहीं गई मगर इन्होंने ख़ून की नदियाँ बहा दी."

अब इन्हीं नेताओं और कृषि कानून में सरकार का देने वालों के सामने ये समस्या आ गई है कि ये किसान कानूनों को वापस लेने की वजह पर क्या जवाब देंगे. कुछ तो स्टैंड विथ मोदी जी हैशटैग के साथ यूटर्न ले रहे हैं.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इस तरह बदले समर्थकों के सुर

पीएम मोदी की घोषणा के बाद अब किसान आंदाेलन का विरोध करने वालों के सुर बदल गये हैं. ट्विटर पर #WeStandWithModiJi के नाम से हैश टैग चलने लगा है. इस हैश टैग को लेकर 74 हजार से ज्यादा से ट्विट्स किए जा चुके हैं.

बीजेपी के तजिन्दर पाल सिंह बग्गा ने लिखा है कि जो देश के साथ खड़ा है, हम उसके साथ खड़े है #WeStandWithModiJi

सुशील मोदी जो पहले किसानों को टुकड़े-टुकड़े गैंग का बता रहे वे अब इसे ऐतिहासिक फैसला बता रहे हैं.

अमित मालवीय जिन्होंने मओवादी कहा था उन्होंने अपने ट्वीट में पीएम मोदी के संदेश के साथ लिखा जो किया, किसानों के लिए किया, जो कर रहा हूँ, देश के लिए कर रहा हूँ.

बीजेपी के कपिल मिश्रा ने ट्वीट किया कि ऐतिहासिक फैसला मोदी जी ने फिर साबित किया उनके लिए देश सबसे बड़ा किसानों की आड़ में खालिस्तानी आग से खेलने का ख्वाब देखने वालों को अब सामने से आना पड़ेगा असली लीडर ही खुद सामने आकर ऐसे बड़े फैसले ले सकता हैं नमन.

नेटवर्क 18 के एटिटर अमन चोपड़ा ने ट्वीट में लिखा है कि जो किया किसानों के लिए किया, जो कर रहा हूं देश के लिए कर रहा हूं। - @narendramodi

बिल वापिस लिया, देश बचा लिया खुद हार गए, देश को जिता दिया देश ना झुके इसलिए खुद झुके राजनीति और राष्ट्रनीति का फर्क समझा दिया मोदी ने राजधर्म निभा दिया #ThankYouModi

एंकर दीपक चौरसिया ने ट्वीटर पर लिखा कि केंद्र का बड़ा फैसला, तीनों कृषि कानून वापिस लिए गए.. @narendramodi

वहीं एक अन्य ट्वीट पर उन्होंने लिखा वामपंथी ज़मीन पर लोट-लोट कर खुश हो रहे हैं कि अब तो धारा 370 भी वापस आ जाएगा, CAA विधेयक भी हट जाएगा. गुलाबी सपने में जी रहे हैं ये वामी.

एंकर चित्रा त्रिपाठी ने ट्वीट में लिखा कि बहुत अच्छा फ़ैसला. यकीनन किसानों को इसी बात का इंतज़ार था. PM @narendramodi ने तीनों कृषि क़ानून रद्द करने का फ़ैसला किया. एक साल पहले इसी महीने पश्चिमी यूपी के किसानों ने पंजाब/हरियाणा के किसानों के साथ धरना प्रदर्शन शुरु किया था. यकीनन किसानों के हक़ में बड़ा फ़ैसला. उनकी माँगे मानी गईं.

हरियाणा के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश धनखड़ ने प्रधानमंत्री ने लिया बड़े मन से फैसला #WeStandWithModiJi के नाम से एक लंबा चौड़ा लेख लिखा है.

उत्तरप्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य लिखते हैं तीनों कृषि क़ानून वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को अभिनन्दन करता हूँ,किसान आन्दोलन के नाम पर चुनाव आन्दोलन करने वाले दलों और नेता बेरोज़गार हो गए, साज़िश अब सफल नहीं होगी, कमल खिला है खिला रहेगा.

सोशल मीडिया में फैसले पर नाराजगी भी

एंकर रूबिका लियाकत ने ट्वीट किया जिसमें उन्होंने लिखा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा कृषि क़ानूनों पर बनाई गई तीन सदस्यीय कमिटी के सदस्य अनिल घनवट ने सरकार के फ़ैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया.

एंकर विकास भदौरिया ने ट्वीट किया कि कोई कह रहा है अहंकार हार गया, कोई कह रहा है कि लोकतंत्र जीत गया, कोई कह रहा सरकार की हार है, कोई कह रहा हैं आंदोलन की जीत है, तो कोई कहता है तानाशाही हार गयी, कोई कह रहा है कि किसान जीत गए,लेकिन सच्चाई ये है कि “कृषि सुधार” हार गए ! कुछ वर्षों बाद इन्हीं सुधारो की मांग फिर उठेगी.

एंकर सुशांत सिन्हा ने ट्वीट कर कहा, “देश ने छप्पन इंच के सीने वाला पीएम चुना था नरेंद्र मोदी जी, कुछ के विरोध के सामने, सियासी नफा-नुक़सान देखकर एक बड़े वर्ग के समर्थन के बावजूद झुक जानेवाला पीएम नहीं.”

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री को अगर लगता है कि उनके निर्णय से “हाय हाय मोदी, मर जा मोदी” का नारा लगानेवाले कम हो जाएंगे तो यह उनका भ्रम है. हां, “मोदी है तो मुमकिन है” बोलने वालों की संख्या कुछ कम ज़रूर होगी, लिख लीजिए.”

एक यूजर ने ट्विटर पर लिखा 'हम भारतीय हार गए हैं, यह एक मिसाल कायम कर सकता है, सड़क पर कुछ उपद्रव की ताकत लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई संसद को निर्देशित करती है.'

एक अन्य यूजर ने लिखा 56 इंच से 36 इंच हो गया. आपने हमें निराश किया.

एक ट्वीटर यूजर ने लिखा, यह निर्णय बिल्कुल गलत है इस बिल से लाखों किसानों की आंकाक्षा जुड़ी हुई और कुछ बिचोलियों के दवाब में आकर कृषि कानून वापस लेना ठीक नहीं.

एक अन्य यूजर ने ट्विटर पर लिखा 'कृषि कानूनों को वापस लेना सिर्फ एक खराब निर्णय ही नहीं अपितु शर्मनाक भी है. देश के छोटे व गरीब किसानों के लिये आज काला दिन है.'

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT