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चुनाव आयोग ने जैसे ही राष्ट्रपति चुनाव (President Election) की घोषणा की उसके बाद से राष्ट्रपति की दौड़ में अलग-अलग नाम सामने आने लगे हैं. कई पॉलिटिकल पंडितों का मानना है कि रामनाथ कोविंद (Ramnath Kovid) की जगह कोई और लेगा तो विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में शरद पवार (Sharad Panwar), नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का नाम खबरों में हैं.
लेकिन सभी की निगाहें अब इस बात पर हैं कि शीर्ष संवैधानिक पद के लिए बीजेपी की पसंद कौन होगा?
2017 में बीजेपी ने दलित समुदाय के नेता और पार्टी के एक लो प्रोफाइल सदस्य, बिहार के तत्कालीन राज्यपाल राम नाथ कोविंद राष्ट्रपति पद के लिए अपनी पसंद के रूप में चुनकर सभी को चौंका दिया था. तब कहीं रामनाथ कोविंद को लेकर कोई चर्चा भी नहीं चल रही थी.
इस बार सभी ये देखने के लिए उत्सुक हैं कि क्या बीजेपी की विचारधारा उम्मीदवार को चुनते वक्त हावी होगी या किसी ऐसे को चुन लेगी जिसके लिए चुनावी गणना फिट बैठ रही हो.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कयास केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के नाम पर भी लगाए जा रहे हैं. अगर महिला उम्मीदवारी की बात करें तो छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उइके और तेलंगाना की राज्यापल तमिलिसाई सुंदरराजन का नाम भी चर्चा में है.
विपक्ष की और से खबरों में कई नामों पर कयास लगाए जा रहे हैं, कईयों का मानना है नीतीश कुमार विपक्ष के उम्मीदवार हो सकते हैं तो कई शरद पवार, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव और यहां तक की ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के नाम पर भी कयास लगाए जा रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार द क्विंट में लिखते हैं कि नीतीश कुमार का नाम सबसे आगे है. चंद्रशेखर राव की मुलाकात प्रमुख चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से हुई है. ऐसा माना जा रहा है कि राव-किशोर की मुलाकात के दरम्यान ही नीतीश को राष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाने की बात पर चर्चा हुई. क्योंकि इसके बाद ही राव अचानक से देश में बिखरे विपक्ष को एक राजनीतिक प्लेटफार्म पर लाने के लिए निकल पड़े.
उनका पहला दौरा मुंबई का हुआ जहां उन्होंने महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे और एनसीपी के प्रमुख पवार से बात की. अगली बातचीत राव की पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी से हुई और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी वे अपने फ्रंट में शामिल करना चाहते हैं.
इस बीच जेडीयू के वरिष्ठ नेता और ग्रामीण विकास मंत्री श्रवण कुमार ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार का जिक्र किया है. श्रवण कुमार ने कहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बनने की पूरी काबिलियत है.
उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विजन और सोच राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर का है. अगर नीतीश कुमार राष्ट्रपति बनते हैं तो हर बिहारी को इसमें खुशी होगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति की बनने की नीतीश कुमार की ना कोई दावेदारी और ना कोई इच्छा.
राजनीतिक जानकर बताते हैं कि नीतीश के राष्ट्रपति चुनाव के बारे में सोचने के प्रमुख तीन कारण हैं-
पहला सबसे महत्वपूर्ण कारण यह माना जा रहा कि उम्र के इस पड़ाव पर वे सक्रिय राजनीति से 'सम्मानजनक' तरीके से सन्यास लेना चाहते हैं. नीतीश पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से केंद्र और राज्य कि राजनीति में सक्रिय हैं और पिछले 17 साल से तो लगातार (बीच में नौ महीना छोड़कर जब उन्होंने जीतन राम मांझी को अपनी गद्दी सौंप दी थी) बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं.
दूसरा कारण है बीजेपी और JDU के बीच लगातार बढ़ता विवाद जो अब गंभीर रूप धारण करता जा रहा है. इन दोनों पार्टियों के बीच विवाद कई मुद्दों को लेकर है.
तीसरी महत्वपूर्ण वजह यह बताई जा रही कि बीजेपी की नजर अब मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आ टिकी है. अभी हाल ही में बीजेपी के एक सांसद छेदी पासवान ने यह मांग की है कि मुख्यमंत्री का आधा कार्यकाल पूरा करने बाद नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी बीजेपी को सौंप देनी चाहिए.
राष्ट्रपति चुनाव में लोकसभा, राज्यसभा के सभी सांसद और राज्यों के विधायक वोट डालते हैं. इन सभी के वोट की वैल्यू अलग-अलग होती है. यहां तक कि अलग-अलग राज्य के विधायक के वोट की वैल्यू भी अलग होती है. एक सांसद के वोट की कीमत 708 होती है. वहीं, विधायकों के वोट की वैल्यू उस राज्य की आबादी और सीटों की संख्या पर निर्भर करता है.
मान लीजिए कि चार राष्ट्रपति उम्मीदवार हैं. अब हर एक विधायक और सांसद अपनी प्राथमिकता के आधार पर इन उम्मीदवारों को रैंक करेगा. चुनाव जीतने के लिए किसी भी उम्मीदवार के पास पहली प्राथमिकता के 50 फीसदी से ज्यादा वोट होने चाहिए.
अगर पहली प्राथमिकता के आधार पर कोई उम्मीदवार नहीं जीतता है, तो प्रिफरेंशियल सिस्टम इस्तेमाल होता है. सबसे कम वोट पाने वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है और उसके वोट को अगली प्राथमिकता के आधार पर बांट दिया जाता है. ऐसा तब तक किया जाता है, जब तक किसी एक उम्मीदवार को बहुमत नहीं मिल जाता.
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