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लंबे वक्त से कर्ज के बोझ तले दबी भारत की प्रमुख एयरलाइंस, एयर इंडिया(Air India) की कमान टाटा संस को मिल गई है. एयर इंडिया को टाटा संस ने 18 हजार करोड़ रूपये की बोली लगाकर खरीदा है.
मीडिया को संबोधित करते हुए डिपार्टमेंट ऑफ इनवेस्टमेंट एंड पब्लिक एसेट मैनेजमेंट (DIPAM) के सचिव तुहिन कांत पांडे ने बताया कि टाटा संस ने 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाकर बाजी मारी है. तुहिन कांत पांडे ने कहा कि लेन-देन दिसंबर 2021 के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है. इसी के साथ ही अब टाटा संस के पास देश में तीन एयरलाइंस हो चुकी हैं.
पांडे ने ब्लूमबर्ग को बताया कि स्पाइस जेट के अजय सिंह ने 15 हजार करोड़ की बोली लगाई थी, लेकिन टाटा संस ने 2900 करोड़ रुपये की बोली ज्यादा लगाई थी.
टाटा संस एयर इंडिया के 15,300 करोड़ रूपये के कर्ज को चुकाएगा और 2700 करोड़ रूपये का नगद भुगतान करेगा.
31 अगस्त तक, एयरलाइंस का कर्ज 61,562 करोड़ रुपये था, इसमें से 15,300 करोड़ रुपये का कर्ज टाटा एयरलाइंस चुकाएगी, बाकी का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा
टाटा संस को कम से कम एक वर्ष के लिए एयरलाइन के सभी कर्मचारियों को बनाए रखना होगा.
टाटा ने बताया कि एयर इंडिया के पास 117 बड़े विमान और एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड के पास 24 बड़े विमान हैं.
मौजूदा और पिछले कर्मचारियों की ग्रेच्युटी, पेंशन फंड और सेवानिवृत्ति के बाद चिकित्सा लाभों को टाटा समूह द्वारा पूरा किया जाएगा.
एयर इंडिया की फ्लाइट में सरकारी कर्मचारियों द्वारा मुफ्त यात्रा, टाटा समूह को हैंडओवर के बाद बंद हो जाएगी.
एयर इंडिया के कर्मचारियों की बकाया राशि 1,332 करोड़ रुपये का भुगतान सरकार द्वारा किया जाएगा.
एयर इंडिया की मालिकाना हक की डील में टाटा संस को ना सिर्फ एयर इंडिया का मैनेजमेंट कंट्रोल मिलेगा. बल्कि उसकी लो-एयर फेयर सर्विस देने वाली सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस की 100% हिस्सेदारी और ग्राउंड हैंडलिंग कंपनी AI-SATS की मैनेजमेंट कंट्रोल के साथ 50% हिस्सेदारी भी मिलेगी.
इस डील में इन कंपनियों के हवाई जहाज, इनके रूट्स, इंटरनेशनल ऑपरेशन, पार्किंग और लैंडिंग राइट्स, कुछ बिल्डिंग शामिल हैं. वहीं सरकार एक नए एसपीवी एअर इंडिया एसेट होल्डिंग लिमिटेड को एयर इंडिया से जुड़ी 14,718 करोड़ रुपये की नॉन-कोर एसेट ट्रांसफर करेगी, जिससे वह उसका बकाया ऋण चुकाएगी.
इस डील में टाटा संस को एयर इंडिया के 140 बड़े जहाजों का बेड़ा मिलेगा. इन बेड़ों में अधिकतर एयर इंडिया के खरीदे हुए विमान है न कि लीज पर लिए हुए.
टाटा संस को इस डील से एक बड़ा और अच्छा मार्केट शेयर मिलेगा. एयर इंडिया की सेवाएं देश के लगभग सभी हवाई रूटों पर है. विदेश रूट्स पर भी अच्छी पकड़ है.एयर इंडिया और एयर इंडिया एक्सप्रेस का का डोमेस्टिक लेवल पर मार्केट शेयर 13.20% है.
वहीं इंटरनेशनल लेवल पर ये 18.8% है जो देश में सबसे अधिक है. इसके अलावा एअर इंडिया की डील में बिजनेस कंटीन्यूटी का क्लॉज भी है. ऐसे में कुछ वक्त के लिए टाटा संस को इन सभी रूट्स पर अपनी सेवाएं देनी होंगी.
आपको बता दें, विदेशी स्लाट पर उड़ान भरने वाली एयर इंडिया देश की सबसे बड़ी कंपनी है.पीटीआई की खबर के मुताबिक एअर इंडिया घरेलू हवाई अड्डों पर 4,400 और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1,800 लैंडिंग और पार्किंग स्लॉट रखती है. साथ ही विदेशी हवाईअड्डों पर कंपनी के पास करीब 900 स्लॉट हैं. ये स्लॉट कंपनी की अंतरराष्ट्रीय बाजार में पहुंच और उड़ानों के बारे में बताते हैं. जबकि एअर इंडिया की सब सब्सिडियरी एयर इंडिया एक्सप्रेस हर हफ्ते 665 उड़ानों का संचालन करती है.
टाटा संस को इस डील में एयर इंडिया में काम करने वाले लगभग 12 हजार लोगों का स्टाफ मिलेगा. बता दें, वर्तमान में एयर इंडिया के कर्मचारियों की संख्या 12 हजार है. ये पूरी तरह से ट्रेड स्टाफ है.और इसमें पायलट और मैनेजर सब शामिल है. डील के मुताबिक टाटा संस को इन सभी कर्मचारियों को 1 साल तक नौकरी पर रखना होगा और दूसरे साल इन्हें वीआरएस ऑफर कर सकती है.
सॉल्ट-टू-सॉफ्टवेयर साम्राज्य की होल्डिंग कंपनी और ब्रिटिश लग्जरी कार निर्माता जगुआर लैंड-रोवर के मालिक टाटा संस, लगभग 90 साल पहले शुरू की गई एयर-इंडिया को वापस पा रहे हैं. टाटा एयरलाइंस की स्थापना उद्योगपति और देश के पहले लाइसेंसधारी पायलट जहांगीर रतनजी दादाभाई टाटा ने की थी. टाटा एयरलाइंस ने 1930 में कराची से बॉम्बे के लिए एक एयर मेल ले जाने वाला विमान उड़ाया था.
साल 1950 में सरकार ने टाटा एयरलाइंस को अपने नियंत्रण में ले लिया. तब एयर इंडिया उन लोगों के बीच काफी पॉपुलर हो गई, जो हवाई यात्रा का खर्च उठा सकते थे. कई बॉलीवुड अभिनेत्रियों द्वारा किए गए विज्ञापन जनता के बीच लोकप्रिय हुए.
हालांकि, 1990 के दशक में निजी वाहकों के आगमन, फिर 2000 के दशक के मध्य में कम लागत वाली, बिना तामझाम वाली एयरलाइनों के बड़े संख्या में बाजार में उतरने के बाद, एयर इंडिया ने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय, दोनों बाजारों में अपनी बढ़त खो दी. अपने महाराजा शुभंकर के लिए जाना जाने वाला वाहक, अचानक विदेश उड़ान भरने का अब एकमात्र विकल्प नहीं रह गया था. अब एयरलाइंस की साख कम होने लगी.
इसके बाद साल 2017 में केंद्रीय कैबिनेट ने एयर इंडिया के निजीकरण को मंजूरी दी. साल 2018 में एयर इंडिया को बेचने की कोशिश की गई, जो असफल रही. अपने असफल प्रयास के बाद, सरकार ने पिछले साल जनवरी में विनिवेश प्रक्रिया को फिर से शुरू किया.
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