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Alleged Atrocities On Tribal In Jharkhand: रौशन होरो नाम के आदिवासी युवक खूंटी के रहने वाले थे. 20 मार्च 2020 को वह अपनी बाइक पर ढोल बनवाने जा रहे थे, रास्ते में उन्होंने देखा की CRPF के कुछ जवान, लोगों को रोककर उनसे पूछताछ कर रहे हैं.
रौशन के परिजनों का आरोप है कि "जवानों (Security Personnel) को देखकर रोशन डर गये और बाइक रोक कर पैदल ही पीछे की तरफ भागने लगे, जैसे ही जवानों की नजर उनपर पड़ी, जवानों ने उनकी पीठ पर एक के बाद एक कर सात गोलियां दाग दीं, जिससे कि मौके पर ही रौशन की मौत हो गयी."
झारखंड के अखबार आये दिन इस तरह की खबरों से पटे रहते हैं.
बीसवीं शताब्दी के अधिकांश समय में झारखंड की स्थानीय राजनीति एक अलग राज्य की मांग पर केंद्रित रही. शुरुआती दौर में इन आंदोलनों का नेतृत्व उन आदिवासी नेताओं ने किया, जिन्होंने छोटा नागपुर क्षेत्र में आदिवासी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग की थी. उस दौर से ही झारखंड में आदिवासी राजनीति “जल, जंगल और जमीन" की राजनीति का पर्याय बन गई थी.
दशकों के आंदोलन और अनगिनत आंदोलनकारियों की मौत के बाद भारत सरकार की तरफ से महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा के जन्मदिवस के अवसर पर, 15 नवंबर सन 2000 को झारखंड को अलग राज्य का दर्जा दे दिया गया.
झारखंड को एक अलग राज्य के तौर पर स्वीकृति मिले अब 22 साल हो चुके हैं मगर कुछ सवाल जो आज भी मायने रखते हैं वे यह हैं कि क्या झारखंड की जनता को उनका अधिकार मिल सका ? क्या झारखंड आंदोलन के शहीदों ने इसी झारखंड की कल्पना की थी? शिक्षा, चिकित्सा, और रोजगार जैसे चुनावी वादे क्या पूरे किए गए ?
ब्रह्मदेव सिंह नामक एक आदिवासी लातेहार के रहने वाले थे, वे अपने कुछ दोस्तों के साथ 12 जून 2021 की सुबह सरहुल पर्व के लिए शिकार करने जा रहे थे. आरोप है कि CRPF के जवानों ने इनपर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं. इस फायरिंग के दौरान ब्रह्मदेव और उनके साथी दीनानाथ को गोली लग गई. गोलियों की आवाज़ सुनकर गांववाले भी भाग कर आ गये और चिल्लाकर जवानों से कहने लगे की यह लोग माओवादी नहीं हैं. ब्रह्मदेव के परिजनों का आरोप है कि "CRPF के कुछ जवान घायल ब्रह्मदेव को घसीट कर जंगल में ले गये और वहां गोली मारकर उनकी हत्या कर दी."
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस मुठभेड़ के बाद CRPF ने यह खबर चलवाई कि उनकी कुछ माओवादियों के साथ मुठभेड़ हुआ और इस मुठभेड़ में एक माओवादी मारा गया है, लेकिन फिर शाम होते-होते तत्कालीन लातेहार SP प्रशांत आनंद ने जानकारी दी कि ग्रामीणों ने पहले जवानों पर गोली चलायी, बाद में जवानों ने जवाबी कार्रवाई की, जिसमें ग्रामीण आदिवासी ब्रह्मदेव सिंह की मृत्यु हो गयी और 5 अन्य आदिवासियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है.
पुलिस का ये बयान आने के बाद ग्रामीणों ने इस घटना के विरोध में थाने का घेराव किया और न्यायिक जांच की मांग को लेकर सत्ता पक्ष के कई विधायकों समेत विपक्ष के भी कुछ विधायक सामने आये. मगर झारखंड सरकार ने एक साल तक कोई कार्रवाई नहीं की. ब्रह्मदेव के परिवार की तरफ से कोर्ट का दरवाजा खटखटाने के बाद 11 जून 2022 को इस मामले से जुड़े 8 अफसरों पर मुकदमा दायर किया गया.
बीते वर्षों में कई मामलों में झारखंड पुलिस और CRPF के जवानों पर आदिवासियों के दमन के कई आरोप लगे हैं. इन आरोपों में कुछ मामले फर्जी मुठभेड़ों के हैं तो कुछ फर्जी मुकदमे और मारपीट के.
35 वर्षीय राजेश किस्कु गिरिडीह के ढोलकट्टा गांव के निवासी हैं और उनकी पत्नी इसी गांव की वार्ड सदस्य हैं.
राजेश अपने गांव के बारे में बताते हैं, "31 मई 2003 की रात के करीब एक बजे CRPF के कुछ जवानों ने हमारे गांव को घेर लिया. मेरे चाचा छोटेलाल किस्कु सुबह-सुबह शौच के लिये जा रहे थे. तभी कुछ जवानों ने उनपर गोली चला दी, एक गोली उनकी ठुड्डी पर लगी जिससे उनका जबड़ा टूट गया. आपाधापी में लोग उन्हें अस्पताल ले गए, उसी वक्त कुछ पुलिस वाले चाची के पास आए और उनसे कहा कि अगर कोई पूछे कि तुम्हारे पति को चोट कैसे लगी तो कहना कि वे भागते हुए गिर गए".
पारसनाथ पहाड़ में स्थित झारखंड आर्म्ड पुलिस कैम्प के निरीक्षक के.के नेवार से जब इस बारे में सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा “हमारे कैम्प में लगभग हर चार साल में पूरी बटालियन बदल जाती है, हमारी बटालियन यहां 2019 से रह रही है और यह मामला उससे पहले का है, इस वजह से हमें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है.“
एक अन्य घटना के बारे में बताते हुए राजेश आरोप लगाते हैं "9 जून 2017 की शाम CRPF के जवानों ने हमारे गांव के निवासी मोतीलाल बास्के की एक कथित मुठभेड़ में हत्या कर दी. इस कथित मुठभेड़ के बाद CRPF की तरफ से बयान आया कि मोतीलाल बास्के “दुर्दांत माओवादी” था, जबकि गांव के लोग कहते हैं कि मोतीलाल पारसनाथ पहाड़ पर अपनी एक दुकान चलाते थे और उसके साथ ही डोली मजदूर का काम करते थे".
मोतीलाल बास्के के बारे में बात करते हुए मधुबन थाना के सह निरीक्षक मुक्तेश्वर राम ने सीधे तौर पर कहा, " यह क्षेत्र भाकपा (माओवादी) की गतिविधियों से प्रभावित है और यहां के लोग माओवादियों का समर्थन करते हैं. लोगों को लगता है कि अगर पार्टी का कोई अंडरग्राउंड सदस्य नाम बदलकर यहां रह सकता है और पुलिस से बच सकता है तो वह गलत सोचते हैं. बास्के भी माओवादी था, यहां नाम बदल कर रह रहा था. अभी इस मामले की जांच धनबाद CID कर रही है".
उधर मोतीलाल बास्के के गांव वाले बताते हैं कि पूरे गांव में इंदिरा आवास योजना के सबसे पहले लाभार्थी मोतीलाल बास्के ही थे. यहां तक कि उनका नाम वर्तमान मतदाता सूची में भी शामिल है. मुक्तेश्वर राम के बयान को गांववालों ने यह कहकर सीधे तौर पर नकार दिया कि "भाकपा (माओवादी) के सदस्य रहकर निर्वाचन सूची में पंजीकृत रहना और सरकारी योजनाओं का लाभ लेना लगभग असंभव ही है."
झारखंड में पुलिसिया दमन का दूसरा चेहरा तब सामने आता है जब आम नागरिकों सहित सामाजिक कार्यकर्ताओ की गिरफ्तारी होती है और उन्हें शारीरिक और मानसिक यातनाएं दी जाती हैं.
हाल फिलहाल के मामलों पर नजर दौड़ाएं तो बलदेव मुर्मू का नाम इस सूची में प्रमुख है. 29 जनवरी 2022 की सुबह आदिवासी मूलवासी विकास मंच के सदस्य बलदेव मुर्मू को पुलिस ने उनके घर से गिरफ्तार कर लिया. बलदेव बताते हैं “पुलिस ने मुझे बिना वारंट उठाया, 54 घंटे हिरासत में रखकर शारीरिक और मानसिक यातनाएं दीं. पुलिस ने मुझे यह मानने को कहा कि मैं माओवादी पार्टी का सदस्य हूं, जब उनकी बात मानने से इंकार कर दिया तो उन्होंने रिहा कर दिया.”
इस सूची में अगला नाम भगवानदास किस्कू का है. भगवानदास किस्कू गिरिडीह में रहकर ग्रामीण चिकित्सक के रूप में काम किया करते हैं और इसके साथ ही विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन के कार्यकर्ता हैं. किस्कू पिछले कई सालों से, गिरिडीह में बनाये जा रहे नए CRPF कैम्पों के विरोध की मुखर आवाज रहे हैं और कैम्पों के विरोध में उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भी दिया है.
आरोप है कि बीते 20 फरवरी की रात जब भगवानदास अपने छोटे भाई के साथ ओरमांझी के एक फ्लैट में थे, तभी कुछ पुलिसवालों ने उन्हें और उनके भाई को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें गिरिडीह ले आये. गिरफ्तारी के दो दिनों के बाद उनके परिजनों को अखबार के माध्यम से पता चला कि भगवानदास पुलिस की गिरफ्त में हैं और पुलिस उन्हें “दुर्दांत माओवादी” बता रही है. इस घटना के अगले दिन पुलिस ने भगवनदास के भाई लालचंद किस्कू को छोड़ दिया मगर भगवानदास अभी भी जेल में हैं.
भगवानदास किस्कु के भाई लालचंद किस्कु जिन्होंने जेल जाकर उनसे मुलाकात की, उनका आरोप है कि भगवानदास को निर्दयी तरीके से शारीरिक यातनाएं दी गई हैं. पुलिस का कहना है कि भगवानदास की गिरफ्तारी खुखरा थाना क्षेत्र के तुइयो नामक इलाके से हुई है और वह कुख्यात माओवादी नेता कृष्णा हंसदा का करीबी है. पुलिस का यह भी कहना है कि भगवानदास लोगों से मिलकर उन्हें माओवादी पार्टी सदस्य बनाने का काम करता था.
झारखण्ड में चल रहे सरकारी दमन के बारे में बात करते हुए विस्थापन विरोधी जन विकास आन्दोलन के राज्य संयोजक दामोदर तुरी का कहना है "BJP सरकार ने बेशर्मी से मुसलमानों, ईसाइयों, दलितों और आदिवासियों के लिंचर्स का समर्थन करके झारखंड के सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश की. दर्जनों सीआरपीएफ कैंप ग्रामीण इलाकों में बनाये गए. जब पारा शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता-सहायिकाएं, आशा कार्यकर्ताओं और संविदाकर्मी अपनी जायज मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे तब उन्हें पुलिस हिंसा का सामना करना पड़ा.
यही कारण है कि झारखंड की जनता ने 2019 के झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया. अब हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाले हुए 26 महीनों से अधिक हो चुके हैं, मगर जिन वादों और दावों के साथ वह मुख्यमंत्री बने हैं, वे कहीं से भी पूरे होते नहीं दिख रहे हैं."
(इस रिपोर्ट को लिखने के दौरान भगवानदास ने रिपोर्टर का सहयोग किया था, इसके कुछ दिनों बाद ही भगवानदास को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया)
(यह स्टोरी स्वतंत्र पत्रकारों के लिए नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया की मीडिया फेलोशिप के तहत रिपोर्ट की गई है)
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