ADVERTISEMENTREMOVE AD

Chattisgarh: सुकमा माओवादी हमले में आरोपी बनाए गए 121 आदिवासी 5 साल बाद बरी

Sukma Attack: क्या इन ग्रामीण आदिवासियों को Maoist के खिलाफ जंग में बलि का बकरा बनाया गया?

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

NIA (नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी) के एक स्पेशल कोर्ट (NIA Special Court) ने 5 साल बाद 121 आदिवासियों को हमले के एक केस में बरी कर दिया है. छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले (Sukma District) में हुए उस हमले में 25 सैनिक मारे गए थे, जबकि 7 घायल हो गए थे. निर्दोष होते हुए भी इन 121 लोगों में से ज्यादातर ने अपने पिछले 5 साल जेल में बिताए हैं.

सुकमा जिले में चिंतागुफा पुलिस स्टेशन के तहत करिगुंडम गांव के रहने वाले पदम बुस्का ने बस्तर टाकीज़ (छत्तीसगढ़ स्थित एक मल्टीमीडिया प्लेटफॉर्म) को बताया, "जब वे लोग आए थे, तब मैं अपने घर पर था. हम कभी माओवादियों के साथ शामिल नहीं रहे. हमारे गांव से चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था."

पुलिस और माओवादियों का एनकाउंटर 24 अप्रैल, 2017 को तब हुआ, जब डोरनापाल-जागरगुणा रोड के निर्माण के दौरान सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन सुरक्षा प्रदान कर रही थी.

इस हमले के बाद पुलिस ने इन 121 लोगों को आईपीसी की धारा 302 (हत्या के लिए सजा), 307 (हत्या का प्रयास), 149, आर्म्स एक्ट की धारा 25(1) (1-b) (a), 27, विस्फोटक सामग्री अधिनियम की धारा 3 और 5, सीएसपीएसए की धारा 8(1)(3)(5) और यूएपीए की धारा 38 और 39 के तहत गिरफ्तार किया था.

लेकिन मामले की सुनवाई केस दर्ज होने के चार साल बाद, मतलब अगस्त 2021 में ही शुरु हो पाई. कोर्ट ने पुलिस जांच पर सवाल उठाए और कहा कि प्रोसेक्यूशन यह साबित करने में नाकाम रहा है कि हमले के दौरान आरोपी घटनास्थल पर मौजूद थे और आरोपियों से असलहा-बारूद बरामद किया गया है.

एक और आदिवासी महिला जिसने पांच साल जेल में बिताए, वह कहती हैं कि उन्हें नहीं पता कि उन्हें किस वजह से यह सजा दी गई.

क्या छत्तीसगढ़ पुलिस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए- बेला भाटिया

वकीलों के एक पैनल ने आदिवासियों की तरफ से इस केस की सुनवाई की. मामले से जुड़ी रही वकील बेला भाटिया कहती हैं,

"क्या छत्तीसगढ़ पुलिस पर आम गांव वालों को क्रूर अपराधी के तौर पर पेश किए जाने और माओवादियों के खिलाफ जारी मौजूदा संघर्ष में बली का बकरा बनाने का इल्जाम नहीं लगना चाहिए? क्या जेल में बिताए गए वक्त के लिए इन लोगों को कोई मुआवजा मिलेगा, आखिर इस दौर में इन्होंने अपनी आजीविका खो दी थी?"
बेला भाटिया

एक और आदिवासी महिला दर्द के साथ मुस्कुराते हुए कहती हैं कि उन्होंने जेल में सिर्फ हिंदी सीखी. निर्दोष होने के बावजूद उनके जीवन के 5 साल उनसे छीन लिए गए. पुलिस ने जिन 121 लोगों को गिरफ्तार किया था, उनमें से 7 माइनर को पहले छोड़ दिया गया था, जबकि एक डोंडी मंगलू की 2 अक्टूबर, 2021 को मौत हो गई थी.

यह भी पढ़ें: UP: हापुड़ में टीचर्स ने ड्रेस के लिए 2 दलित छात्राओं को निर्वस्त्र किया

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×