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10 जून को होनेवाले राज्यसभा चुनाव (Rajyasabha Election) के लिए सभी राजनीतिक दलों ने अपनी चाल चल दी है, पत्ते खुल चुके हैं, खिलाड़ी मैदान में उतर चुके हैं. बिहार में भी 5 ऐसी सीटें हैं, जिनके लिए चुनाव होने हैं. लालू यादव (Lalu Yadav) की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से लेकर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. लेकिन इन ऐलानों के पीछे सियासत भी है, मोहब्बत भी है, अदावत भी है और शिकायत भी. अब आप पूछेंगे ये सियासत तो समझ आती है लेकिन ये अदावत कैसी?
एक-एक कर इन पांच सीटों के समीकरण से पर्दा उठाते हैं और बताते हैं कि इस चुनाव के जरिए राजनीतिक दल जनता से लेकर गठबंंधन के साथी और कार्यकर्ताओं को क्या संदेश देना चाहते हैं. साथ ही इसपर भी नजर डालते हैं कि राज्यसभा टिकट के बहाने JDU ने किसपर 'तीर' चलाया है, BJP ने किसके घर कमल खिलाया है और क्यों तेजस्वी यादव के A to Z वाली रणनीति पर लालू यादव का MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण हावी हो गया.
बीजेपी ने राज्यसभा चुनाव के लिए बिहार से 2 उम्मीदवारों के नाम का ऐलान किया है. बीजेपी ने एक तो पार्टी कार्यकर्ता और राजनीतिक हिसाब से युवा शंभू शरण पटेल को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं दूसरे कैंडिडेट के रूप में अपने मौजूदा राज्यसभा सांसद सतीश चंद्र दुबे को दोबारा उम्मीदवार बनाया है.
और जनता के बीच भी इस तर्क में बल मिलता है कि बीजेपी में परिवारवाद से ज्यादा काम को तरजीह दिया जाता है.
बीजेपी ने ब्राह्मण समुदाय के सतीश चंद्र दुबे को रिपीट किया है. बेतिया जिला के रहने वाले सतीश चंद्र दुबे इससे पहले साल 2014-19 तक वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र से सांसद रहे हैं. लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उनकी सीटिंग सीट जेडीयू को दे दी गयी थी. हालांकि लोकसभा चुनाव के बाद आरजेडी के राज्यसभा सांसद राम जेठमलानी के निधन से खाली हुई सीट पर उप चुनाव में सतीश चंद्र दूबे को उम्मीदवार बना कर राज्यसभा भेजा गया था. सतीश चंद्र तीन बार विधायक भी रहे हैं. ऐसे में दोबारा सतीश चंद्र दुबे को राज्यसभा भेजकर बीजेपी ब्राह्मण वोटरों को अपने साथ बनाए रखना चाहती है.
अब आते हैं नीतीश कुमार के राज्यसभा चुनाव के उम्मीदवार पर. नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने आरसीपी सिंह का पत्ता साफ कर दिया है. जेडीयू ने खीरू महतो को बिहार राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है. खीरू महतो झारखंड के पूर्व विधायक रहे हैं और झारखंड जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
ऊपर जिस अदावत की बात कर रहे थे वो जेडीयू पर फिट बैठ रहा है. दरअसल, केंद्रीय मंत्री रामचंद्र प्रसाद सिंह यानी आरसीपी (RCP Singh) दो बार राज्यसभा सासंद रह चुके हैं लेकिन तीसरी बार पार्टी ने टिकट नहीं दिया. IAS से नेता बने आरसीपी सिंह और नीतीश के बीच रिश्ते में दूरी की खबरें भी सामने आई थीं. आरसीपी सिंह लगातार केंद्र की बीजेपी सरकार की तारीफ करते नजर आ रहे थे.
यही नहीं, कहा जाता है कि नीतीश के रेलमंत्री रहते हुए उनके करीब आए RCP सिंह जब जेडीयू के अध्यक्ष थे तब केंद्र में नरेंद्र मोदी सरकार का मंत्रिमंडल विस्तार हुआ. इस दौरान जेडीयू चाहती थी कि उनकी पार्टी को दो कैबिनेट और दो राज्य मंत्री का पद दिया जाए. लेकिन आखिर में एक सीट पर बात बनी और आरसीपी सिंह खुद केंद्र में इस्पात मंत्री बन गए. जिसके बाद से ही नीतीश और आरसीपी सिंह की दूरी की खबरें सामने आने लगीं.
यही नहीं राज्यसभा से पत्ता कटने के बाद आरसीपी सिंह ने मीडिया से बात करते हुए एक बार फिर बीजेपी की तारीफ में कसीदे पढ़ दिए. आरसीपी सिंह ने बीजेपी को मजबूत सहयोगी बताते हुए कहा कि 303 सासंद होने के बावजूद बीजेपी ने उन्हें मंत्री बनने का मौका दिया, यह बीजेपी का बड़प्पन है.
अब नीतीश कुमार की जेडीयू ने आरसीपी सिंह का पत्ता काट कर पार्टी लाइन से अलग जाने वालों को संदेश दिया है. हालांकि ये पहली बार नहीं है जब नीतीश ने अपने साथियों के 'पर कतरे' हैं. इस लिस्ट में पूर्व रक्षा मंत्री और नीतीश कुमार के मेंटर जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव का नाम शामिल है. इसके अलावा पूर्व राज्यसभा सांसद उपेंद्र कुशवाहा को भी नीतीश की नाराजगी का सामना करना पड़ा था. हालांकि अब उपेंद्र कुशवाहा वापस नीतीश के साथ आ गए हैं.
अब आते हैं नीतीश कुमार के आरसीपी सिंह को राज्यसभा न भेजने के फैसले पर. नीतीश कुमार की पार्टी ने बिहार की सीट से झारखंड के नेता को उम्मीदवार बनाकर ये बताने की कोशिश की है कि पार्टी विस्तार पर जोर दे रही है. जेडीयू प्रदेश अध्यक्ष खीरू महतो को उम्मीदवार बनाकर जेडीयू झारखंड में पार्टी को नई पहचान दिलाने की कोशिश कर सकती है.
राज्यसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल ने तेजस्वी यादव के A to Z पर नहीं बल्कि लालू यादव की पॉलिटिकल कॉकटेल यानी MY (मुस्लिम-यादव) पर भरोसा जताया है. आरजेडी ने एक बार फिर लालू यादव की बेटी मीसा भारती को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं इसके अलावा बिस्फी के पूर्व विधायक फैयाज आलम को राज्यसभा भेजने का फैसला किया है. अगर देखा जाए तो आरजेडी ने अपने जातीय और सियासी समीकरण को तवज्जो दी है. हालांकि इससे पहले प्रोफेसर मनोज झा को राज्यसभा भेजकर अपने ऊपर मुस्लिम यादव की पार्टी होने का टैग हटाने की कोशिश कर चुकी है.
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