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बिहार में जातिगत जनगणना के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों से लेकर सत्ता दल एक साथ दिख रही है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में पटना में ऑल पार्टी मीटिंग हुई. मीटिंग के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जातिगत जनगणना पर कैबिनेट का फैसला जल्द होगा और सभी दलों की सहमति के बाद तेजी से काम होगा. सीएम ने ये भी कहा कि तय समय सीमा पर जनगणना का काम होगा.
इस पूरे मामले में खास ये बात ये रही कि जो बीजेपी केंद्र में जाती जनगणना के खिलाफ है वो बिहार में जातीय जनगणना के सुर में सुर मिला रही है. अब ऐसे में सवाल है कि आखिर जाती जनगणना है क्या और इसके पीछे विवाद क्या है?
भारत में हर 10 साल में एक बार जनगणना की जाती है. जिसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए अलग से कॉलम है. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कोई कॉलम नहीं है. इसलिए जाती जनगणना को आप अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) गिनती कह सकते हैं. अगर तकनीकी शब्दावली की बात करें तो इसे 'सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग' (Social and Educational Backward Class) गणना कहा जाता है.
बता दें कि जाती जनगणना की जो मांग उठ रही है इमसें बाकी जातियों की नहीं बल्कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आने वाली जातियों की गिनती की मांग हो रही है.
जवाब है हां, लेकिन जातीय जनगणना को समझने के लिए आपको इतिहास के पन्नों को पलटना होगा. दरअसल, भारत में साल 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी. लेकिन दूसरे विश्व युद्ध की वजह से साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया जरूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया.
अब इसके बाद साल 2011 तक भारत में कभी भी जातीय जनगणना नहीं हुआ. 1951 के बाद से लेकर 2011 तक दशकीय जनगणना (Decennial Census) में अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.
ऐसे में अब राजनीतिक दल जोर शोर से 2021 में होने वाली जनगणना में ओबीसी जातियों की गणना की आवाज उठा रहे हैं.
दरअसल, भारत में ओबीसी आबादी कितनी है, इसका कोई ठोस सबूत नहीं है. हालांकि 1990 में विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, यानी मंडल आयोग के आंकड़ों के आधार पर कहा जाता है कि भारत में ओबीसी आबादी 52 प्रतिशत है. लेकिन मंडल कमीशन का ये आकंड़ा साल 1931 की जनगणना के आधार पर है.
वीपी सिंह के दौरान जब मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया गया तब अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 फीसदी आरक्षण देने की बात की गई थी.
23 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर एक हलफनामे में, केंद्र सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) आयोजित करने से इंकार कर दिया था, सरकार की तरफ से कहा गया था कि जाति जनगणना (अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पारंपरिक रूप से की गई) को छोड़कर असंभव है. इसे "प्रशासनिक रूप से कठिन और बोझिल" बताया गया था. हलफनामा महाराष्ट्र सरकार द्वारा एक रिट याचिका के जवाब में था, जिसमें केंद्र सरकार को 2021 की जनगणना के दौरान ग्रामीण भारत के पिछड़े वर्ग के नागरिकों (बीसीसी) पर डेटा एकत्र करने के निर्देश देने की मांग की गई थी. याचिका में यह भी कहा गया है कि केंद्र एसईसीसी-2011 के दौरान एकत्र किए गए अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) पर जाति के आंकड़ों का खुलासा करे.
सरकार का तर्क है कि न्यायपालिका सरकार को जाति जनगणना करने का निर्देश नहीं दे सकती क्योंकि ये एक "नीतिगत निर्णय" है, और न्यायपालिका सरकार की नीति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. साथ ही ये भी कहा गया है कि जाति जनगणना का प्रयास करना व्यावहारिक नहीं है और प्रशासनिक रूप से भी ऐसा करना बेहद मुश्किल है.
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Published: 01 Jun 2022,06:39 PM IST