ADVERTISEMENTREMOVE AD

जाति आधारित जनगणना की मांग क्यों? जानें,जातियों की गिनती कितनी अहम

बिहार विधानसभा ने गुरुवार को जाति आधारित जनगणना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. इसके बाद इस पर बहस तेज हो गई है. 

Updated
कुंजी
3 min read
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा
Hindi Female
स्नैपशॉट

बिहार विधानसभा ने गुरुवार को जाति आधारित जनगणना के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. बिहार विधानसभा में केंद्र से मांग की गई कि 2021 की जनगणना जाति के आधार पर हो. जाति आधारित जनगणना की इस मांग को नीतीश का राजनीतिक दांव माना जा रहा है. जाति आधारित जनगणना को क्यों जरूरी माना जा रहा है? और इसकी मांग क्यों हो रही है. आइए जानते हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2011 में जाति आधारित जनगणना, दोबारा मांग क्यों?

भारत में हर दस साल में जनगणना होती है. लेकिन 2011 में सोशियो इकॉनोमिक एंड कास्ट सेंसस 2011 (एसईसीसी 2011) शुरू हुई. जाति जनगणना यूपीए-2 के समय में शुरू हुई और एनडीए सरकार के समय में यानी 31 मार्च, 2016 को खत्म हुई. केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि इस जनगणना ने अपने सभी लक्ष्य पूरे कर लिए हैं. लेकिन 4,893 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी सरकार ने इसके आंकड़े जारी नहीं किए.

यह गिनती जनगणना कानून के तहत नहीं कराया गया था. जाति जनगणना का काम अनुभवहीन लोगों, एनजीओ कर्मियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों ने किया. इन्हें स्थानीय समाज की वो जानकारी नहीं होती है, जो सरकारी शिक्षक जानता है. जनगणना के काम में सरकारी शिक्षकों को लगाया जाता है. इस जनगणना के फील्ड सर्वे में 46 लाख जातियों, उपजातियों और गोत्र की जानकारी सामने आई. माना जा रहा है कि अनुभवहीन गणनाकर्मियों की वजह से इस तरह की अविश्वसनीय जानकारी आई. लिहाजा अब नए सिरे से पुख्ता तौर पर जाति आधारित जनगणना कराने की मांग की जा रही है?

भारत में आखिरी जाति जनगणना 1931 में हुई. अभी तक इसी आंकड़े से ही काम चल रहा है. इसी आंकड़े के आधार पर बताया गया कि देश में ओबीसी आबादी 52 फीसदी है. जाति के आंकड़ों के बिना काम करने में मंडल आयोग को काफी दिक्कत आई और उसने सिफारिश की थी कि अगली जो भी जनगणना हो, उसमें जातियों से जुड़े आंकड़े इकट्ठा किए जाएं.

0

1931 में हुई थी आखिरी जाति जनगणना

भारत में आखिरी जाति जनगणना 1931 में हुई. अभी तक इसी आंकड़े से ही काम चल रहा है. इसी आंकड़े के आधार पर बताया गया कि देश में ओबीसी आबादी 52 फीसदी है. जाति के आंकड़ों के बिना काम करने में मंडल आयोग को काफी दिक्कत आई और उसने सिफारिश की थी कि अगली जो भी जनगणना हो, उसमें जातियों से जुड़े आंकड़े इकट्ठा किए जाएं. जनगणना अंग्रेजों के शासन में शुरू हुई थी और 1931 को आखिरी बार जातियों की गिनती हुई थी.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

2021 की जनगणना को जाति आधारित कराने की मांग क्यों?

दस साल पर होने वाली जनगणना को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया जनगणना कानून 1948 के तहत कराते हैं. इस वजह से इस जनगणना में गलत जानकारी देना और गलत जानकारी नोट करना, दोनों अपराध हैं. इस जनगणना में सरकारी शिक्षकों को लगाया जाता है. चूंकि 2011 की सोशियो इकनॉमिक एंड कास्ट सेंसस में खामियों की आशंका रही हैं इसलिए 2021 को जाति आधारित जनगणना बनाने की मांग हो रही है ताकि यह प्रोफेशनल तरीके से हो और आंकड़े विश्वसनीय बन सके.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

जाति आधारित जनगणना न कराने से क्या नुकसान?

जातियों की गिनती न होने से हम यह पता नहीं कर पाते कि देश में विभिन्न जातियों के कितने लोग हैं और उनकी शैक्षणिक-आर्थिक स्थिति कैसी है.उनके बीच संसाधनों का बंटवारा किस तरह का है और उनके लिए किस तरह की नीतियों की जरूरत है. भारत में जाति संबंधी नीतियां हैं, विभाग हैं, लेकिन ये सब बिना आंकड़ों के काम करते हैं.

देश में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग है, पिछड़ा वर्ग डेवलपमेंट फंड है, राज्यों में पिछड़ी जातियों के मंत्रालय हैं. उनके लिए तमाम योजनाएं हैं लेकिन उन्हें बिना आंकड़ों के काम करना पड़ता है. केंद्र की ओर से राज्यों को पिछड़ी जातियों के विकास के लिए भेजे जाने वाले फंड का आधार उस राज्य की ओबीसी आबादी नहीं, कुल आबादी होती है, क्योंकि ओबीसी का कोई आंकड़ा ही नहीं है.

अभी कौन सी जाति पिछड़ी है, इसका अनुमान या तो 1931 के आंकड़ों के आधार पर लगाया जाता है या फिर मनमाने तरीके से. इसलिए जातियां अक्सर राजनीतिक दबाव डालती हैं कि उसे भी ओबीसी में शामिल किया जाए. ओबीसी में शामिल होने के लिए जातियों के हिंसक आंदोलनों की सबसे बड़ी वजह आंकड़ों का अभाव है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

क्या जाति आधारित जनगणना सिर्फ ओबीसी गणना है?

2018 में सरकार ने ऐलान किया था कि वह 2021 की प्रस्तावित जनणगना में ओबीसी का आंकड़ा जुटाएगी. लेकिन जाति आधारित जनगणना के समर्थकों का कहना है कि सिर्फ ओबीसी के आंकड़े ही नहीं, सभी जातियों की गिनती की जाए. जाति आधारित जनगणना का मकसद सिर्फ ओबीसी की गिनती नहीं बल्कि भारतीय समाज की विविधता से जुड़े तथ्यों को सामने लाना है.

जाहिर है जाति आधारित जनगणना इनक्लूसिव ग्रोथ के लिए जरूरी है. क्योंकि समाज में सभी जातियों से जुड़े आंकड़े सामने आने के बाद ही संसाधनों के बंटवारे और उनके विकास की नीतियां सही तरीके से बन सकेंगीं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×