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Central Vista: मालचा-रायसीन गांव वालों को भगाकर अंग्रेजों ने खड़ी कर दी थी इमारत

1912 में किसानों ने 2400 रुपये एक़ॉ जमीन का मुआवजा मांगा था और अंग्रेजों ने 35 रुपये एकड़ का ऑफर दिया था.

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 राष्ट्रपति भवन 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों ने बनवाया था.
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राष्ट्रपति भवन 20वीं सदी की शुरुआत में अंग्रेजों ने बनवाया था.
(फोटो: द क्विंट)

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी(PM Modi) ने 8 सितंबर को 'सेंट्रल विस्टा'(Central Vista) का उद्घाटन कर दिया. दरअसल दिल्ली के ऐतिहासिक राजपथ और 'सेंट्रल विस्टा लॉन' का रीडेवलपमेंट किया गया है. इसके बाद अब इनका नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' कर दिया गया है. सेंट्रल विस्टा को ब्रिटिश काल में बनाया गया था, लेकिन क्या आपको पता है इसके लिए जमीन कैसे तलाशी गई और किन की जमीन पर इसे बनाया गया, हम जानेंगे कैसे सेंट्रल विस्टा के लिए जमीन तय हुई और राष्ट्रपति भवन को रायसीना हिल्स में कैसे बदला गया.

1912 में जमीन अधिग्रहण का काम शुरू हुआ

ये दौर था ब्रिटिश शासन काल का जब अंग्रेजों की भारत पर हुकूमत थी. 1911 में किंग जॉर्ज ने घोषणा की, और नाटकीय ढंग से भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाया गया. साल 1912 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने रायसीना हिल्स पर 'वॉयसरॉय हाउस' बनाने का सोचा. इस स्थान पर 300 परिवार रहते थे जिन्हें रायसीना के नाम से जाना जाता था. सरकार ने इन रायसीना परिवारों के जमीन का अधिग्रहण कर. राष्ट्रपति भवन को दिल्ली के दो गांव मालचा और रायसीना हिल्स की जमीन पर बनाया गया है. इस महल के निर्माण के लिए इन गांव को हटा दिया गया था. इस पूरे स्थान में 4000 एकड़ जमीन पर राष्ट्रपति भवन बना हुआ है.

राष्ट्रपति भवन बनाने में लगे 20 साल

इसे बनाने के लिए 4 साल निर्धारित किये गये थे, लेकिन विश्‍वयुद्ध के कारण इसे बनाने में 20 साल लगे. 23 जनवरी 1931 को पहली बार अंग्रेजों के जमाने में वॉयसरॉय ऑफ इंडिया लॉर्ड इरविन यहां रहने आये. 1950 के पहले तक इसे वॉयसरॉय हाउस कहा जाता था और इस इलाके का नाम लुटियंस था.

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दोनों गांव की जमीन का अंग्रेजों ने ऐसे किया सौदा

दो गांवों मालचा और रायसीना के ग्रामीणों को किसी ने सूचित नहीं किया था कि उनकी जमीनें छीन ली जाएंगी. फाउंटेन इंक पत्रिका की एक रिपोर्ट के मुताबिक, गांव के लोगों ने अंग्रेजों को अपनी जमीन देने से इनकार कर दिया था, इसके बाद अंग्रेजों ने गांव वालों से उनकी जमीन की कीमत मांगी. इसके बाद किसानों ने उपजाऊ जमीन के लिए 2400 रूपये एकड़ और शुष्क जमीन यानी जिस पर खेती नहीं की जा सकती, के लिए 1920 रूपये प्रति एकड़ की मांग की

इसके उलट अंग्रेजों ने किसानों को काउंटर ऑफर करते हुए उपजाऊ जमीन के लिए 35 रूपये एकड़ और शुष्क जमीन के लिए 15 रूपये एकड़ देने की बात कही,जिससे किसान खुश नहीं थे.

मौखिक इतिहास से पता चलता है कि अंग्रेजों द्वारा हमला होने के बाद किसान अंग्रेजों की जमीन देने के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं थे, और उनके खिलाफ एक स्ट्रिक्ट एक्शन लेने की तैयारी में थे. इस हमले में कई किसान मारे गए, और कई परिवार भाग गए. क्षेत्र के 300 परिवारों में से केवल कुछ ही परिवारों ने अपने मुआवजे का दावा किया. ज्यादातर बस भाग गए और मेवात जिले के नई नांगला जैसे अन्य गांवों में बस गए.

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