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‘नहाय-खाय’ के साथ लोकपर्व छठ की शुरुआत, जानें क्‍या है इसका महत्‍व

चार दिवसीय महापर्व का समापन होगा 27 अक्टूबर को

द क्विंट
भारत
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नहाय-खाय के दिन गंगा नदी में स्नान करने का है विशेष महत्व
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नहाय-खाय के दिन गंगा नदी में स्नान करने का है विशेष महत्व
( फोटोः PTI)

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'नहाय-खाय' के साथ लोकपर्व छठ की शुरुआत हो गई है. बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत देश के तमाम हिस्सों में व्रत करने वाले मंगलवार से पूजा की शुरुआत कर रहे हैं.

चार दिनों तक चलने वाले इस अनुष्ठान का समापन 27 अक्टूबर को सुबह में सूर्य को अर्घ्य देने के साथ होगा.

पवित्र जल में स्नान से शुरू होगी पूजा की शुरुआत

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को 'नहाय-खाय' किया जाता है. आज के दिन व्रती गंगा नदी या किसी नदी-तालाब में स्नान के साथ भगवान सूर्य और माता षष्ठी की अराधना की शुरुआत करते हैं. नदी-तालाब नहीं जाने की स्थिति में व्रती घर में ही शुद्ध जल से स्नान कर पूजा शुरू करते हैं.

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सात्विक खाना, लौकी है जरूरी

स्नान के बाद घर में दाल-चावल और लौकी (घीया) की सब्जी बनाई जाती है. मान्यताओं के मुताबिक, नहाय-खाय में लौकी की सब्जी को जरूरी माना जाता है. इसे बनाने में खास ध्यान रखा जाता है. दाल और सब्जी बनाने में लहसुन-प्याज का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. व्रत करने वाले के साथ घर के सारे लोग इसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं. सात्विक भोजन ग्रहण कर वास्‍तव में ये अगले 3 दिनों तक चलने वाली पूजा की शारीरिक और मानसिक तैयारी है.

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ये रहा व्रत का कैलेंडर

आमतौर पर नहाय-खाय के दिन ही प्रसाद बनाने के लिए गेहूं को धोया और सुखाया जाता है. इसके बाद इससे आटा तैयार कर खरना के लिए रोटी और छठ के लिए ठेकुआ बनाया जाता है.

25 अक्टूबर यानी बुधवार को खरना होगा. पूरे दिन उपवास में रहने के बाद व्रती शाम को खीर-रोटी और केले का प्रसाद माता षष्ठी को चढ़ाते हैं. पूजा के बाद खुद भी इसी प्रसाद को ग्रहण करते हैं.

खरना के बाद 24 घंटे से ज्यादा समय तक व्रती बिना अन्न-जल के भगवान भास्कर और माता षष्ठी की आराधना करते हैं. 26 अक्टूबर को शाम के समय अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. 27 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ इस लोकपर्व का समापन होगा.

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