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छठ से जुड़े उन 21 सवालों के जवाब,जो अक्‍सर आपके मन में उठते हैं..

छठ पूजा या सूर्यषष्‍ठी व्रत से जुड़ी प्रामाणिक और सटीक जानकारी सवाल-जवाब के रूप में क्‍व‍िंंट हिंदी

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बिहार-झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ या सूर्यषष्‍ठी पूजा धूमधाम से मनाया जाता है. छठ भारत ही नहीं देश-विदेश में वहां भी मनाया जाता है, जहां इस इलाके के लोग जाकर बस गए हैं. इसके बावजूद, देश की बहुत बड़ी आबादी इस पूजा की कई बातों से अनजान है. इतना ही नहीं, जिन लोगों के घर में यह व्रत होता है, उनके मन में भी इसे लेकर कई सवाल उठते हैं.

आगे इस पूजा से जुड़ी प्रामाणिक और सटीक जानकारी सवाल-जवाब के रूप में दी गई है.

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छठ या सूर्यषष्‍ठी व्रत में किन देवी-देवताओं की पूजा की जाती है?

इस व्रत में सूर्य देवता की पूजा की जाती है, जो प्रत्‍यक्ष दिखते हैं और सभी प्राणियों के जीवन के आधार हैं. सूर्य के साथ-साथ षष्‍ठी देवी या छठ मैया की भी पूजा की जाती है. पौराणिक मान्‍यता के अनुसार, षष्‍ठी माता संतानों की रक्षा करती हैं और उन्‍हें स्‍वस्‍थ और दीघार्यु बनाती हैं.

छठ व्रत में इन दोनों की पूजा साथ-साथ की जाती है. इस तरह ये पूजा अपने-आप में बेहद खास है.

सूर्य से तो सभी परिचित हैं, लेकिन छठ मैया कौन-सी देवी हैं?

ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड में बताया गया है कि सृष्‍ट‍ि की अधिष्‍ठात्री प्रकृति देवी के एक प्रमुख अंश को देवसेना कहा गया है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इन देवी का एक प्रचलित नाम षष्‍ठी है.

षष्‍ठी देवी को ब्रह्मा की मानसपुत्री भी कहा गया है. पुराणों में इन देवी का एक नाम कात्‍यायनी भी है. इनकी पूजा नवरात्र में षष्‍ठी तिथि‍ को होती है.

षष्‍ठी देवी को ही स्‍थानीय बोली में छठ मैया कहा गया है, जो नि:संतानों को संतान देती हैं और सभी बालकों की रक्षा करती हैं.

जवाब विस्‍तार से जानने के लिए ये भी पढ़ें:

छठ मैया कौन-सी देवी हैं? सूर्य के साथ षष्‍ठी देवी की पूजा क्‍यों?

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षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे हुई? पुराण की कथा क्‍या है?

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, यह कथा इस तरह है:

प्रथम मनु स्‍वायम्‍भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी, इसके कारण वह दुखी रहते थे. महर्षि कश्‍यप ने राजा से पुत्रेष्‍ट‍ि यज्ञ कराने को कहा. राजा ने यज्ञ कराया, जिसके बाद उनकी महारानी मालिनी ने एक पुत्र को जन्‍म दिया. लेकिन दुर्योग से वह शिशु मरा पैदा हुआ था. राजा का दुख देखकर एक दिव्‍य देवी प्रकट हुईं. उन्‍होंने उस मृत बालक को जीवित कर दिया.

देवी की इस कृपा से राजा बहुत खुश हुए. उन्‍होंने षष्‍ठी देवी की स्‍तुति की. ऐसी मान्‍यता है कि इसके बाद ही धीरे-धीरे हर ओर इस पूजा का प्रसार हो गया.

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छठ या षष्‍ठी देवी की पूजा की शुरुआत कैसे? पुराण की कथा क्‍या है?

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आध्‍यात्‍म‍िक ग्रंथों में सूर्य की पूजा का प्रसंग कहां-कहां मिलता है?

शास्‍त्रों में भगवान सूर्य को गुरु भी कहा गया है. पवनपुत्र हनुमान ने सूर्य से ही शिक्षा पाई थी. श्रीराम ने आदित्‍यहृदयस्‍तोत्र का पाठ कर सूर्य देवता को प्रसन्‍न करने के बाद ही रावण को अंतिम बाण मारा था और उस पर विजय पाई थी.

श्रीकृष्‍ण के पुत्र साम्‍ब को कुष्‍ठ रोग हो गया था, तब उन्‍होंने सूर्य की उपासना करके ही रोग से मुक्‍त‍ि पाई थी. सूर्य की पूजा वैदिक काल से काफी पहले से होती आई है.

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सनातन धर्म के अनेक देवी-देवताओं के बीच सूर्य का क्‍या स्‍थान है?

सूर्य की गिनती उन 5 प्रमुख देवी-देवताओं में की जाती है, जिनकी पूजा सबसे पहले करने का विधान है. पंचदेव में सूर्य के अलाव अन्‍य 4 हैं: गणेश, दुर्गा, शिव, विष्‍णु. (मत्‍स्‍य पुराण)

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सूर्य की पूजा से क्‍या-क्‍या फल मिलते हैं? पुराण का क्‍या मत है?

भगवान सूर्य सभी पर उपकार करने वाले, अत्‍यंत दयालु हैं. वे उपासक को आयु, आरोग्‍य, धन-धान्‍य, संतान, तेज, कांति, यश, वैभव और सौभाग्‍य देते हैं. वे सभी को चेतना देते हैं.

पद्मपुराण में इस बारे में विस्‍तार से बताया गया है. इसमें कहा गया है कि सूर्य की उपासना करने से मनुष्‍य को सभी तरह के रोगों से छुटकारा मिल जाता है. जो सूर्य की उपासना करते हैं, वे दरिद्र, दुखी, शोकग्रस्‍त और अंधे नहीं होते.

सूर्य को ब्रह्म का ही तेज बताया है. ये धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है. साथ ही पूरे संसार की रक्षा करने वाले हैं.

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इस पूजा में लोग पवित्र नदी और तालाबों आदि के किनारे क्‍यों जमा होते हैं?

सूर्य की पूजा में उन्‍हें जल से अर्घ्‍य देने का विधान है. पवित्र नदियों के जल से सूर्य को अर्घ्‍य देने और स्‍नान करने का विशेष महत्‍व बताया गया है. हालांकि ये पूजा किसी भी साफ-सुथरी जगह पर की जा सकती है.

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छठ में नदी-तालाबों पर हर साल भीड़ बहुत बढ़ जाती है. भीड़ से बचते हुए व्रत करने का क्‍या तरीका हो सकता है.

इस भीड़ से बचने के लिए हाल के दशकों में घर में ही छठ करने का चलन तेजी से बढ़ा है. 'मन चंगा, तो कठौती में गंगा' की कहावत यहां भी गौर करने लायक है.

कई लोग घर के आंगन या छतों पर भी छठ व्रत करते हैं. व्रत करने वालों की सहूलियत को ध्‍यान में रखकर ऐसा किया जाता है.

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ज्‍यादातर महिलाएं ही छठ पूजा क्‍यों करती हैं?

ऐसा देखा जाता है कि महिलाएं अनेक कष्‍ट सहकर पूरे परिवार के कल्‍याण की न केवल कामना करती हैं, बल्‍कि इसके लिए तरह-तरह के यत्‍न करने में पुरुषों से आगे रहती हैं. इसे महिलाओं के त्‍याग-तप की भावना से जोड़कर देखा जा सकता है.

छठ पूजा कोई भी कर सकता है, चाहे वो महिला हो या पुरुष. पर इतना जरूर है कि महिलाएं संतान की कामना से या संतान के स्‍वास्‍थ्‍य और उनके दीघार्यु होने के लिए ये पूजा बढ़-चढ़कर श्रद्धा से करती हैं.

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क्‍या ये पूजा किसी भी सामाजिक वर्ग या जाति के लोग कर सकते हैं?

सूर्य सभी प्राणियों पर समान रूप से कृपा करते हैं. वे किसी तरह का भेदभाव नहीं करते. इस पूजा में वर्ण या जाति के आधार पर भेद नहीं है. इस पूजा के प्रति समाज के हर वर्ग-जाति में गहरी श्रद्धा देखी जाती है. हर कोई मिल-जुलकर, साथ-साथ इसमें शामिल होता है.

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क्‍या इस पूजा में कोई सामाजिक संदेश भी छिपा हुआ है?

सूर्यषष्‍ठी व्रत में लोग उगते हुए सूर्य की भी पूजा करते हैं, डूबते हुए सूर्य की भी उतनी ही श्रद्धा से पूजा करते हैं. इसमें कई तरह के संकेत छिपे हैं. ये पूरी दुनिया में भारत की आध्‍यात्‍म‍िक श्रेष्‍ठता को दिखाता है.

घर-परिवार में अपनी संतानों के प्रति जितना प्रेम और मोह रखते हैं, उतना ही प्रेम और आदर बड़े-बुर्जुगों के प्रति भी रखना चाहिए.

समाज में केवल संपन्‍न लोगों को ही आदर देते की जगह, उन्‍हें भी आदर-सम्‍मान देना चाहिए, जो किसी वजह से आज विपन्‍न और जरूरतमंद हैं.

इस पूजा में जातियों के आधार पर कहीं कोई भेदभाव नहीं है, समाज में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है. सूर्य देवता को बांस के बने जिस सूप और डाले में रखकर प्रसाद अर्पित किया जाता है, उसे सामा‍जिक रूप से अत्‍यंत पिछड़ी जाति के लोग बनाते हैं. सामाजिक संदेश एकदम स्‍पष्‍ट है.

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बिहार से छठ पूजा का विशेष संबंध क्‍यों है?

सूर्य की पूजा के साथ-साथ षष्‍ठी देवी की पूजा की अनूठी परंपरा बिहार के इस सबसे बड़े लोकपर्व में देखी जाती है. यही बात इस पूजा के मामले में प्रदेश को खास बनाती है.

साथ ही देश के जिन गिने-चुने जगहों पर प्राचीन और भव्‍य सूर्य मंदिर हैं, उनमें बिहार भी प्रमुख है. बिहार के औरंगाबाद जिले के देव में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, जहां सालभर दूर-दूर से लोग मनोकामना लेकर और दर्शन करने आते हैं. खास तौर से कार्तिक और चैत महीने में छठ के दौरान व्रत करने वालों और श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है.

इस बात के स्‍पष्‍ट प्रमाण मिलते हैं कि बिहार में सूर्य पूजा सदियों से प्रचलित है. सूर्य पुराण में इस देव मंदिर की महिमा का वर्णन मिलता है. ऐसे में अगर इस प्रदेश के लोगों की आस्‍था सूर्य देवता में ज्‍यादा है, तो इसमें अचरज की कोई बात नहीं है.

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बिहार के देव सूर्य मंदिर की खासियत क्‍या है?

सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर का मुख्‍य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है, जबकि आम तौर पर सूर्य मंदिर का मुख्‍य द्वार पूरब दिशा की ओर होता है. ऐसी मान्‍यता है कि मंदिर का निर्माण देवताओं के शिल्‍पी भगवान विश्‍वकर्मा ने किया था. जो भी हो, स्‍थापत्‍य और वास्‍तुकला कला के दृष्‍ट‍िकोण से ये मंदिर बेजोड़ है.

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कार्तिक महीने के अलावा यह पूजा साल में कब की जाती है?

कार्तिक के अलावा छठ व्रत चैत्र शुक्‍ल पक्ष में चतुर्थी से लेकर सप्‍तमी तक किया जाता है. इसे आम बोलचाल में चैती छठ कहते हैं.

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इस पूजा में कुछ लोग जमीन पर बार-बार लेटकर, कष्‍ट सहते हुए घाट की ओर क्‍यों जाते हैं?

ज्‍यादातर मामलों में ऐसा तब होता है, जब किसी ने इस तरह की कोई मनौती मानी हो. मान लें, किसी ने मनौती मानी कि अमुक काम हो जाने पर मैं कष्‍ट सहते हुए घाट को जाऊंगा या किसी ने कोई बिगड़ी बात बनने से पहले ही इस तरह की कष्‍टी देने की ठानी. इस स्‍थ‍िति में वह जमीन पर निश्‍चित दूरी तक लेटते हुए घाट की ओर जाता है. इस बारे में कोई निश्‍चित नियम नहीं है.

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4 दिनों तक चलने वाली छठ पूजा में किस-किस दिन क्‍या-क्‍या होता है?

नहाय-खाय

कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को व्रत की शुरुआत 'नहाय-खाय' के साथ होती है. इस दिन व्रत करने वाले और घर के सारे लोग चावल-दाल और कद्दू से बने व्‍यंजन प्रसाद के तौर पर ग्रहण करते हैं. वास्‍तव में ये अगले 3 दिनों तक चलने वाली पूजा की शारीरिक और मानसिक तैयारी है.

खरना

दूसरे दिन, कार्तिक शुक्ल पंचमी को शाम में मुख्‍य पूजा होती है. इसे ‘खरना’ कहा जाता है. प्रसाद के रूप में गन्ने के रस या गुड़ में बनी खीर चढ़ाई जाती है. कई घरों में चावल का पिट्ठा भी बनाया जाता है. लोग उन घरों में जाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं, जिन घरों में पूजा होती है.

अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍यदान

तीसरे दिन, कार्तिक शुक्ल षष्‍ठी की शाम को अस्‍ताचलगामी सूर्य को अर्घ्‍य दिया जाता है. व्रती के साथ-साथ सारे लोग डूबते हुए सूर्य को अर्घ्‍य देते हैं.

उगते सूर्य को अर्घ्‍यदान

चौथे दिन, कार्तिक शुक्ल सप्‍तमी को उगते सूर्य को अर्घ्‍य देने के बाद पारण के साथ व्रत की समाप्‍त‍ि होती है.

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जो लोग अपने गांव छोड़कर बड़े-बड़े नगरों में बस गए हैं, वो अपनी परंपरा को जीवित रखते हुए छठ कैसे करें?

कोई कहीं भी रहकर छठ व्रत कर सकता है. अपने गांव से दूर महानगरों में बसे लोग भी सूर्य की पूजा कर सकते हैं. अगर छत या आंगन पर पूजा करने की सुविधा न हो, तो अन्‍य किसी भी जगह से सूर्य को देखते हुए उन्‍हें अर्घ्‍य दिया जा सकता है. कई लोग कठौत में जल भरकर, उसमें पांव रखकर भी सूर्य की पूजा करते हैं.

महत्‍व नियम के साथ व्रत करने का है, जलाशय का बड़ा होना जरूरी नहीं है. इतना जरूर है कि ये अन्‍य व्रतों की तुलना में थोड़ा कठिन है, इसलिए इसमें अन्‍य लोगों के सहयोग की जरूरत पड़ती है.

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सूर्यषष्‍ठी व्रत दूसरी पूजा की तुलना में ज्‍यादा कठिन क्‍यों माना जाता है? इसमें विधि-विधान का कठोरता से पालन क्‍यों करते हैं?

1. इसमें व्रत करने वाले को 24 घंटे से ज्‍यादा समय तक बिना अन्‍न-जल के रहना पड़ता है.

2. पौराणिक ग्रथों के आधार पर, ऐसी मान्‍यता है कि सूर्य की पूजा में किसी तरह की चूक नहीं होनी चाहिए. वे तत्‍काल फल देने वाले देवता माने जाते हैं. इस वजह से लोग उनकी पूजा सतर्क होकर करते हैं.

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कहते हैं कि छठ का प्रसाद मांगकर ग्रहण करना चाहिए. इसके पीछे कौन-सी भावना काम करती है?

इसके पीछे ये दो कारण हो सकते हैं. आम तौर पर लोग अपने मान-अभिमान के कारण किसी से कुछ भी मांगने से परहेज करते हैं. लेकिन छठ का प्रसाद व्रत करने वालों से मांगकर लोग सूर्य देवता और षष्‍ठी माता के प्रति अपनी विशेष श्रद्धा जताते हैं.

दूसरी बात ये कि किसी भी व्‍यक्‍त‍ि की उन्‍नति की राह में गर्व-अभिमान को बड़ी बाधा माना गया है. प्रसाद मांगने से लोगों में मान-बड़प्‍पन की भावना कम होती है और दुर्गुण छूटते हैं.

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छठ पूजा से पहले कुछ लोग सार्वजनिक जगहों पर बांस से बने सूप लेकर रुपये-पैसे क्‍यों मांगते हैं?

इनमें से कुछ वैसे श्रद्धालु हो सकते हैं, जिन्‍होंने व्रत के लिए मनौती मान रखी हो कि वे दूसरों से भिक्षा लेकर ही छठ करेंगे. ये उनके विश्‍वास से जुड़ा मामला होता है.

इनमें कुछ वैसे लोग हो सकते हैं, जो धन के अभाव में छठ करने में असमर्थ हों, लेकिन ये पूजा करना चाहते हों.

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छठ पूजा के बाद नदी-तालाब प्रदूषित हो जाते हैं. क्‍या शास्‍त्रों में गंदगी फैलाने की मनाही नहीं है?

जल ही जीवन है, इसके स्रोतों को बचाना जरूरी है. मुख्‍य रूप से इसी बात को ध्‍यान में रखकर शास्‍त्रों में नदी और जलाशयों की पूजा करने का विधान बनाया गया है. लेकिन इन्‍हें किसी भी तरह से गंदा करने की सख्‍त मनाही है.

शास्‍त्र तो यहां तक कहता है कि पहले नदी के किनारों पर जल लेकर स्‍नान कर लेना चाहिए, तब नदी में डुबकी लगानी चाहिए.

मलं प्रक्षालयेत्तीरे तत: स्‍नानं समाचरेत् (मेधातिथि‍)

साथ ही पवित्र नदियों में कपड़े निचोड़ने की भी मनाही है. छठ से पहले और बाद में घाटों की सफाई कर देनी चाहिए.

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