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छत्तीसगढ़ में 2 जनवरी को उग्र हुई एंटी क्रिश्चियन रैली द्वारा मचाया गया उत्पात कोई अचानक घटना नहीं थी, बल्कि इसकी बिसात महीनों पहले अक्टूबर 2022 में ही बिछाई जा चुकी थी. क्योंकि, छत्तीसगढ़ में ईसाई आदिवासीयों आज से नहीं बल्कि एक सदी से भी पहले से वहां बसे हुए हैं, और उन्हीं गांवों में आपस में मेल-मिलाप बैठाकर जीवन यापन कर रहे थे.
1890 में बस्तर के जगदलपुर में लाल चर्च के नाम से प्रचलित सबसे पहला चर्च बना था. लेकिन, 132 साल बाद ऐसा क्या हुआ कि उसी बस्तर में आदिवासी और ईसाई आदिवासी आपस में टकरा गए और हालात इतने बिगड़ गए कि दिन दहाड़े, एसपी कलेक्टर से शांति बनाए रखने का वादा करने के बाद, भीड़ नारायणपुर के एक चर्च में घुसकर तोड़फोड़ करती है और इसी दौरान पुलिस पर भी हमला कर देती है.
सिलेसिलेवार तरीके से बताएं तो अक्टूबर 2022 से नारायणपुर जिले और आसपास के इलाकों से आदिवासी ईसाइयों के खिलाफ हिंसा, उनका उत्पीड़न और उनको घरों से निकाल देने की घटनाएं सामने आने लगी थीं. लेकिन, दूरदराज के इलाकों से निकलकर आने वाली इन घटनाओं पर जिला प्रशासन और पुलिस दोनों ही इन्हें छिटपुट घटनाएं बताकर अनदेखा करते रहे. यहां तक कि, 18 दिसंबर 2022 को जब 200 से अधिक ईसाई आदिवासियों को करीब 32 गावों से उनके घरों से निकाला दिया गया. ये ईसाई आदिवासी पैदल चलकर नारायणपुर जिला मुख्यालय अपनी फरियाद लेकर पहुंचे, बावजूद प्रशासन ने इस ओर कोई कड़ी कारवाई नहीं की.
इधर, इस मसले का हल सरकार सामाजिक स्तर पर निकाल लेने की कवायद करती रही है, उधर करीब 3 महीनों से आदिवासी और ईसाई आदिवासियों के बीच चिंगारी को ज्वाला बनाने में राइट विंग के कुछ लोग कामयाब हो गए. बीजेपी और राइट विंग संगठन बस्तर में दशकों से आदिवासियों को हिंदू बनाने की अपनी मुहिम को धीरे- धीरे आगे बढ़ा रही है. इसी बीच 2012 में बीजेपी और राइट विंग संगठन के सपोर्ट पर जनजातीय गौरव मंच के नाम से चालू हुआ एक ग्रुप 'आदिवासी हिंदू होते हैं' के विचार को फैलाने में लगा हुआ था. लेकिन, उस वक्त बीजेपी की सरकार थी, इसलिए सबकुछ बिना शोर -शराबे के होता रहा.
नारायणपुर में इसी बीच बीजेपी के एक जिलाध्यक्ष की वापसी हुई, जिनका नाम रूप साय सलाम है. सलाम के साथ पूर्व बीजेपी जिला अध्यक्ष नारायण मरकाम, बीजेपी विधायक केदार कश्यप और भोजराम नाग फिर एक बार आदिवासी बनाम ईसाई आदिवासी की लड़ाई को हवा देने लगे. मरकाम बेनूर ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच हैं. उसी गांव के हालिया सरपंच सोभी राम पोटाई कहते हैं कि "मरकाम और सलाम दोनों ही लोग बीते कुछ महीनों से जगह-जगह जाकर मीटिंग कर रहे थे और आदिवासी समुदाय के बीच वैमनस्यता बढ़ा रहे थे.
Quint को अपनी पड़ताल में कुछ विडियोज भी मिले जो नारायणपुर के एड़का गांव के बताए जा रहे हैं, जहां पर भोजराम नाग ने आदिवासी समुदाय के बीच अपने बयान में कहा था कि अगर आप (आदिवासी ईसाई) हमारे गांव के रीति रिवाज के हिसाब से रहेंगे, हमारे देवी देवताओं को मानेंगे तो ही तुम हमारे समाज के आदमी हो, तभी तुम हमारे गांव के आदमी हो.
उधर, दूसरी तरफ कांग्रेस सरकार का इस मुद्दे पर रवैया भी सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर दो तीन महीनों से लगातार हो रही घटनाओं के बावजूद कोई ठोस कदम क्यों नही उठाया गया, और एंटी क्रिश्चियन रैली की इजाजत क्यों दी गई?
राज्य के एक वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि चुनाव के पहले कांग्रेस अपने आप को ऐसी स्थिति में नहीं रखना चाहती थी जिसके चलते आदिवासी समाज का कोई भी वर्ग उसके खिलाफ हो.
वहीं, राज्य के राजनीतिक विश्लेषक अशोक तोमर कहते हैं कि "भूपेश बघेल, नरेंद्र मोदी के कदमों को फॉलो करते हैं और आगे भी इस मुद्दे पर किसी भी आदिवासी के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाएगा."
तोमर आगे कहते हैं कि अगर बस्तर में ये समस्या ऐसे ही बनी रही तो ईसाई आदिवासी हो सकता है की कांग्रेस से विमुख हो जाएं.
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