छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले में आदिवासी और आदिवासी ईसाई समाज के बीच जारी टकराव अब और बढ़ गया है. नारायणपुर में साल के पहले दिन दो पक्षों में भारी तनाव देखने को मिला. कथित धर्मांतरण के मामले को लेकर दो पक्षों में तनाव इतना बढ़ गया कि दोनों पक्षों से दर्जनों लोग घायल हो गए. इस दौरान पुलिसकर्मियों के साथ भी झड़प हुई, जिसमें एडका थाना प्रभारी भुनेश्वर जोशी घायल हो गए.
बता दें कि धर्म परिवर्तन करने वाले आदिवासी समाज के लोगों का आरोप है कि उन लोगों को 18 दिसंबर को कथित रूप से ग्रामीणों ने उनके घरों से बाहर कर दिया गया और "कभी वापस नहीं आने" के लिए कहा है.
एक जनवरी को झड़प के दौरान घायल थाना प्रभारी को नारायणपुर अस्पताल में प्राथमिक उपचार के बाद जगदलपुर रेफर किया गया है. इस घटना की वजह से नारायणपुर के अलग-अलग हिस्सों में भारी तनाव की स्थिति है.
क्या है पूरा मामला?
माओवादियों की भारी मौजूदगी वाले इलाके नारायणपुर में धर्म परिवर्तन को लेकर आदिवासी समाज आमने-सामने हैं. अपने घरों से निकाले गए आदिवासी 19 दिसंबर को जिला कलेक्टर से मिलने के लिए नारायणपुर जिला मुख्यालय पहुंचे थे. प्रशासन ने तब परिवारों के लिए नारायणपुर के एक इनडोर स्टेडियम में रहने की व्यवस्था की थी. 10 दिनों के बाद, जब कुछ लोग अपने गांव लौटे तो उन्हें विरोध का सामना करना पड़ रहा है. वहीं लगभग 80 लोग अभी भी शेल्टर में रहने को मजबूर हैं.
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के बोरावंड गांव की निवासी 17 वर्षीय मोहंती सलामी ने कहा, "चूंकि हम चर्च जाते हैं, इसलिए हमें अपने ही घरों से निकाल दिया गया."
दिसंबर में 200 आदिवासी ईसाइयों को घर छोड़ने पर मजबूर किया गया
यह कोई पहली घटना नहीं है जब लोगों को उनका घर छोड़ने पर मजबूर किया गया हो. छत्तीसगढ़ में क्रिश्चियन कम्युनिटी फोरम के अध्यक्ष अरुण पन्नालाल के मुताबिक अकेले दिसंबर महीने में ही 14 गांवों के करीब 200 आदिवासी ईसाइयों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है.
उनके और दूसरे कार्यकर्ताओं और समुदाय के नेताओं के मुताबिक, इससे भी बुरी बात यह है कि ऐसी घटनाओं पर भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार की चुप्पी है.
"ईसाइयों पर दिनदहाड़े हमला किया जा रहा है - और सरकार की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. लगभग 200 लोग नारायणपुर जिला मुख्यालय में बंद हैं. उन्हें हत्या की धमकी मिलने के बाद अपने बच्चों और परिवारों के साथ भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न छत्तीसगढ़ में अपने चरम पर है."अरुण पन्नालाल
पन्नालाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार पहले से कहीं अधिक प्रचलित हो गए हैं, लेकिन सरकार द्वारा इसकी कोई निंदा नहीं की गई है.
"पिछले साल, हमारे एक पादरी पर राज्य की राजधानी रायपुर में एक पुलिस स्टेशन के अंदर हमला किया गया था और उसके बाद से छत्तीसगढ़ में ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार की कई घटनाएं हो रही हैं. लेकिन सरकार चुप है."अरुण पन्नालाल
बस्तर की वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता बेला भाटिया ने कहा, "आदिवासी जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, उन्हें पिछले कुछ वर्षों में दक्षिणपंथी समूहों द्वारा समर्थित उनके ही ग्रामीणों द्वारा लक्षित किया गया है. उन्हें कब्रिस्तानों तक जाने से वंचित किया जा रहा है - यहां तक कि अपमानित और पिटाई भी की जाती है. लेकिन सरकार या प्रशासन की ओर से शायद ही इसे रोकने के लिए कोई कार्रवाई हो रही है."
'पुलिस ने दर्ज नहीं की एफआईआर'
आदिवासी ईसाइयों ने इनडोर स्टेडियम के अंदर सोमवार, 19 दिसंबर को नारायणपुर जिला प्रशासन को एक ज्ञापन भी सौंपा है, जिसमें दावा किया गया है कि कथित हिंसा की सूचना मिलने के बावजूद पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज नहीं की.
द क्विंट के पास ज्ञापन की एक कॉपी है. जिसमें लिखा है,
"आदिवासी ईसाइयों के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं बढ़ रही हैं, और हमें अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करने की अनुमति नहीं दी जा रही है... हमारे घरों में तोड़फोड़ की जा रही है, हमारे परिवारों को गांवों से बेदखल किया जा रहा है, और पुलिस इन घटनाओं की जानकारी होने के बावजूद दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है और बदले में पीड़ित परिवारों को धमका रही है."
मीडिया से बात करते हुए नारायणपुर के अनुविभागीय मजिस्ट्रेट जितेंद्र कुर्रे ने कहा: "हमें लोगों से एक ज्ञापन मिला है और हम उनकी मांगों को पूरा करने और उनके मुद्दों को जल्द से जल्द हल करने की दिशा में काम कर रहे हैं."
हालांकि, नारायणपुर जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक हेमसागर सिकदर ने द क्विंट को बताया कि उन्हें ग्रामीणों से कई शिकायतें मिली हैं और इस मामले में प्राथमिकी भी दर्ज की गई है. एसपी ने कहा, "हमें ग्रामीणों से कई शिकायतें मिली हैं और हमने पहले ही इन मामलों की जांच शुरू कर दी है. प्रथम दृष्टया, अधिकांश घटनाएं ग्रामीणों के बीच उनके दैनिक जीवन को लेकर असहमति के कारण हुईं, जिसके कारण लड़ाई हुई. फिर हम बेदखल किए गए ग्रामीणों की सभी शिकायतों पर कार्रवाई कर रहे हैं और क्षेत्र में शांति भंग करने की कोशिश करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ आवश्यक कार्रवाई की जाएगी."
वहीं दूसरी ओर आदिवासी समाज के लोगों का आरोप है कि ईसाई धर्म अपनाने वालों ने खुद को आदिवासी संस्कृति से अलग कर लिया है और गांव की गतिविधियों में पहले की तरह हिस्सा नहीं लेते हैं.
इनपुट- मोहम्मद इमरान खान
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