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चीफ जस्टिस एनवी रमना (NV Ramana) रिटायर होने वाले हैं. और चीफ जस्टिस के रिटायरमेंट से ठीक एक दिन पहले यानी आज 25 अगस्त 2022 को भारत का सर्वोच्च न्यायालय कई हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई कर रहे हैं.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रमना छह अलग-अलग बेंच कॉम्बिनेशन में बैठे हैं और पेगासस, बिलकिस बानो रिमिशन, पीएमएलए जैसे महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई कर रहे हैं.
आइए जानते हैं चीफ जस्टिस एनवी रमना अपने रिटायरमेंट से एक दिन पहले किन अहम केस की सुनवाई कर रहे हैं.
पेगासस (Pegasus spyware) के जरिए पत्रकारों, नेताओं, समाजिक कार्यकर्ताओं की फोन टैपिंग और जासूसी का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. इस मामले की सुनवाई जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हेमा कोहली के साथ चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रमना की बेंच कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन की अगुवाई वाली समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को आगे बढ़ाने के लिए मामला आज पोस्ट किया गया है, जिसे आरोपों की जांच के लिए अक्टूबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित किया गया था.
इस मामले में एडवोकेट एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, हिंदू ग्रुप ऑफ पब्लिकेशन के निदेशक एन राम और एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, इप्सा शताक्षी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आबिदी और प्रेम शंकर झा ने याचिका दायर की थी.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बनाई हुई कमेटी ने बताया कि उन्हें जासूसी के शक में 29 फोन दिए गए थे, जिसमें से 5 फोन में मालवेयर मिला, लेकिन वो पेगासस था, ये साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता है. वहीं कमेटी ने अदालत में अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की.
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने कहा कि अगली सुनवाई सितंबर के आखिरी हफ्ते में होगी.
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) आज प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) पर अपने पुराने फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. 27 जुलाई के विवादास्पद फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका कार्ति चिदंबरम ने दायर की है.
इसकी सुनवाई CJI एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने की.
सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारों और प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए कहा था ईडी को गिरफ्तारी का अधिकार है. कोर्ट ने कहा था कि 2018 में कानून में किए गए संशोधन सही हैं.
पीएमएलए मामले पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. साथ ही चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा है कि यह कानून बहुत अहम है, और हम सिर्फ 2 पहलू को दोबारा विचार लायक मानते हैं. एक तो ECIR (ED की तरफ से दर्ज FIR) की रिपोर्ट आरोपी को न देने का प्रावधान और दूसरा खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपी पर होने का प्रावधान.
जनवरी 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के पंजाब दौरे पर सुरक्षा में चूक (security lapse) की बात सामने आई थी. ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
CJI एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने सुनवाई की. अदालत ने पहले मामले की जांच करने और उसके बाद एक रिपोर्ट सौंपने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में एक जांच पैनल नियुक्त किया था.
पंजाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा उल्लंघन की जांच के लिए गठित एक समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि फिरोजपुर में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (एसएसपी) कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहे.
भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने यह भी कहा कि समिति ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए उपाय करने का सुझाव दिया था. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज, जस्टिस इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट को देखते हुए, CJI रमना ने कहा,
समिति के निष्कर्षों पर कोर्ट ने कहा, "फिरोजपुर एसएसपी कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में विफल रहे, पर्याप्त फोर्स मौजूद होने के बावजूद वह ऐसा करने में विफल रहे जब्कि उन्हें 2 घंटे पहले खबर दे दी गई थी कि पीएम मोदी उस मार्ग से जाएंगे."
इसे ध्यान में रखते हुए, समिति ने प्रधानमंत्री की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए कुछ उपचारात्मक उपायों का सुझाव दिया है. CJI रमना ने कहा, "हम सरकार को रिपोर्ट भेजेंगे ताकि कदम उठाए जा सकें."
साल 2002, गुजरात दंगे के दौरान 5 महीने की गर्भवती बिलकिस बानो का रेप हुआ था, साथ ही बिलकिस बानो के परिवार के 14 लोगों की हत्या की गई थी, जिनमें उनकी तीन साल की बच्ची को जमीन पर पटक-पटक कर मार डाला था. लेकिन अभी हाल ही में गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो केस के 11 दोषियों की सजा माफ कर उन्हें रिहा कर दिया था. गुजरात सरकार के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
गुजरात सरकार के फैसले के खिलाफ CPI(M) नेता सुभासिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार और फिल्म निर्माता रेवती लौल और पूर्व दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर और कार्यकर्ता रूप रेखा वर्मा ने याचिका दायर की है. जिसकी सुनवाई CJI एनवी रमना और जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच करेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना जवाब दाखिल करने के लिए गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया और याचिकाकर्ताओं से 11 दोषियों को मामले में पक्ष बनाने के लिए कहा है. मामले की दो हफ्ते बाद फिर सुनवाई होगी.
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) एनवी रमना, जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने की. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि उसे इस बात पर विचार करना है कि क्या गुजरात सरकार ने नियमों के तहत दोषी छूट के हकदार हैं और क्या इस मामले में छूट देते समय दिमाग लगाया गया था. अदालत ने पूछा, "हमें यह देखना होगा कि क्या इस मामले में छूट प्रदान करते समय दिमाग का इस्तेमाल किया गया था."
जस्टिस रस्तोगी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल से पूछा, "सिर्फ इसलिए कि कृत्य भयानक था, क्या यह कहना पर्याप्त है कि छूट गलत है?" यही नहीं जस्टिस रस्तोगी ने कपिल सिबब्ल से ये भी पूछा कि
बता दें कि जस्टिस रस्तोगी और जस्टिस विक्रम नाथ उस बेंच का हिस्सा थे जिसने मई, 2022 में फैसला सुनाया था कि मामले में छूट का फैसला करने का अधिकार गुजरात के पास है.
इसके अलावा जस्टिस एनवी रमना ने ये भी साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई के आदेश नहीं दिए थे, बल्कि सिर्फ विचार करने की बात कही थी.
उन्होंने कहा, "मैंने कहीं पढ़ा है कि कोर्ट ने छूट की इजाजत दी है. नहीं, कोर्ट ने सिर्फ विचार करने के लिए कहा है."
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