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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) वोटों की VVPAT (वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल) पर्चियों से 100 फीसदी मिलान की मांग वाली याचिकाओं पर गुरुवार, 18 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया है.
भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने कोर्ट को बताया कि ईवीएम बनाने वालों को ये नहीं पता होता है कि कौन सा बटन किस राजनीतिक दल को आवंटित किया जाएगा या कौन सी मशीन किस राज्य या निर्वाचन क्षेत्र को आवंटित की जाएगी.
मामले पर दूसरे दिन की सुनवाई के दौरान, चुनाव आयोग के वरिष्ठ अधिकारी ने कोर्ट को बताया कि मतदान से सात दिन पहले, उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों की उपस्थिति में वीवीपैट मशीन की 4 एमबी फ्लैश मेमोरी पर चिन्हों की तस्वीर को अपलोड किया जाता है.
अधिकारी ने आगे बताया कि बैलेट यूनिट (जिसपर वोट के लिए बटन दबाया जाता है) वह किसी खास कैडिडेट या चिन्ह के पक्ष में काम नहीं करती है. उसमें केवल कुछ बटन होते हैं जिसके सामने पार्टी के चिह्न चिपकाए जाते हैं. जब कोई बटन दबाया जाता है, तो बैलेट यूनिट कंट्रोल यूनिट को एक संदेश भेजती है, जो वीवीपैट यूनिट को अलर्ट करती है, फिर वीवीपैट दबाए गए बटन से मेल खाने वाले चिन्ह को प्रिंट कर देता है.
दोपहर में जब अदालती कार्रवाई दोबारा शुरू हुई तब आयोग ने कहा कि उसे अधिकारियों से एक रिपोर्ट मिली है और दावा "झूठा" पाया गया है.
भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने 2019 के लोकसभा चुनावों में डाले गए वोटों और गिने गए वोटों के बीच कथित विसंगतियों के संबंध में 'द क्विंट' की 2019 की रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया दी है.
बता दें कि द क्विंट की रिपोर्ट के अनुसार, 373 निर्वाचन क्षेत्रों में डाले गए वोटों और गिने गए वोटों के बीच अंतर था. सुप्रीम कोर्ट में ईवीएम-वीवीपैट मामले में याचिकाकर्ताओं ने रिपोर्ट का हवाला देकर ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे.
वहीं सुनवाई के दौरान जस्टिस खन्ना ने ये भी कहा कि, "अब आप बहुत ही आगे निकल गए हैं. हर चीज पर संदेह नहीं किया जा सकता. आप हर चीज की आलोचना नहीं कर सकते. अगर उन्होंने कुछ अच्छा किया है तो कृपया उसकी भी सराहना करें. हमने आपकी बात सुनी क्योंकि हम भी चिंतित हैं."
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