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"EVM पर जर्मनी का उदाहरण यहां काम नहीं करता", VVPAT मामले में SC में Quint की रिपोर्ट का जिक्र

VVPAT Case in SC: कोर्ट ने ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से चुनाव कराने की याचिका भी खारिज कर दी है.

Published
भारत
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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मंगलवार,16 अप्रैल को वीवीपैट (VVPAT) पर्चियों के साथ ईवीएम वोटों के 100% मिलान करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई की. जस्टिस संजीव खन्ना और दीपांकर दत्ता की बेंच ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई की है. अगली सुनवाई 18 अप्रैल को होनी. आइए जानते हैं कोर्ट में आज क्या-क्या हुआ?

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स्नैपशॉट

पहले जानिए क्या है VVPAT?

Voter Verifiable Paper Audit Trail - ईवीएम के साथ वीवीपैट नाम की मशीन भी जुड़ी होती है. मान लीजिए आप ईवीएम पर कैंडिडेट एक्स के पक्ष में वोट करते हैं तो इसके तुरंत बाद वीवीपैट मशीन पर आपको एक पर्ची दिखाई देगी जिसमें लिखा होगी की आपने कैंडिडेट एक्स को वोट दिया है. ये पर्ची कुछ सैकेंड के लिए दिखाई देगी फिर वीवीपैट में ही स्टोर हो जाएगी. दरअसल वीवीपैट इसलिए लाया गया ताकी वोटर ये सुनिश्चित कर सके कि जिस कैंडिडेट के पक्ष में वोटर ने वोट किया है - उसका वोट उसी कैंडिडेट को गया है, जिसके लिए वोटर ने वोट किया है.

कोर्ट में दाखिल हुई ADR की याचिका का जवाब देते हुए, चुनाव आयोग ने सभी वीवीपैट को वेरिफाई करने में व्यावहारिक कठिनाइयों का हवाला दिया था. इससे पहले, कोर्ट ने कहा था कि इससे बिना किसी खास फायदे के चुनाव आयोग का बोझ बढ़ जाएगा.

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कोर्ट में क्या सुनवाई हुई?

कोर्ट: मान लीजिए कि उसमें (ईवीएम) में कुछ हेराफेरी होती है तो सजा का क्या प्रावधान किया गया है, यह गंभीर बात है. यह डर होना चाहिए कि अगर कुछ गलत किया तो सजा मिलेगी.

ईसीआई वकील: अगर कोई उल्लंघन होता है तो वह दंडनीय है.

कोर्ट: हम इस प्रक्रिया में नहीं हैं. यदि हेरफेर किया गया है तो उसके संबंध में कोई विशेष प्रावधान नहीं है.

कोर्ट: आम तौर पर मानवीय हस्तक्षेप से समस्याएं पैदा होती हैं और मानवीय कमजोरी भी हो सकती है जिसमें पूर्वाग्रह (Bias) भी शामिल हैं. आम तौर पर मानवीय हस्तक्षेप के बिना मशीन आपको सटीक परिणाम देगी. हां, समस्या तब पैदा होती है जब मानवीय हस्तक्षेप होता है. यदि आपके पास इसे रोकने के लिए कोई सुझाव है तो आप हमें दे सकते हैं.

कोर्ट ने ईवीएम के बजाय बैलेट पेपर से चुनाव कराने की याचिका भी खारिज कर दी है.

कोर्ट: हम सभी जानते हैं कि जब बैलेट पेपर थे तो क्या होता था. आप भूले होंगे लेकिन हम नहीं भूले हैं. वैसे भी हमने तीन समाधान सुने हैं. हम इस पर अभी बहस नहीं चाहते.

कोर्ट: हमने कुछ सोचा - मतदान हो जाने के बाद मशीनों को तकनीकी टीम के निरीक्षण के लिए रखा जा सकता है ताकि कोई गड़बड़ी न हो. हमने जवाबी हलफनामे का अध्ययन किया और देखा कि मॉक पोलिंग कैसे की जाती है. हम जानना चाहते हैं कि क्या तीनों मशीन वहां होती हैं और क्या तीनों मशीनों को एक साथ रखा जा सकता है?

कोर्ट: क्या सभी मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं?

ईसीआई वकील: 50 फीसदी मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी कैमरे लगे होते हैं.

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ADR की ओर से क्या दलीलें दी गईं?

ADR ने अपनी याचिका में कहा है कि, वीवीपैट पर्चियों का मिलान ईवीएम के माध्यम से डाले गए वोटों से किया जाना चाहिए ताकि नागरिक यह पुष्टि कर सकें कि उनका वोट 'रिकॉर्ड के रूप में गिना गया है' और 'डाले गए वोट के रूप में दर्ज किया गया है.'

ADR के वकील: हम बैलेट पेपर की ओर वापस जा सकते हैं. दूसरा विकल्प मतदाताओं को हाथ में वीवीपैट पर्ची देना है. पर्चियां मशीन में ही गिर जाती हैं. पर्ची मतदाता को भी दी जा सकती है और उसे मतपेटी में डाला जा सकता है. वीवीपैट का डिजाइन बदला गया है. इसे एक पारदर्शी ग्लास होना था लेकिन इसे गहरे अपारदर्शी ग्लास में बदल दिया गया जहां यह केवल 7 सेकंड के लिए लाइट आती है और पर्ची दिखाई देती है.

इसके बाद ADR के वकील ने जर्मनी का उदाहरण दिया कि वहां भी ऐसा ही होता है.

कोर्ट: जर्मनी की जनसंख्या कितनी है?

ADR के वकील: 5-6 करोड़

कोर्ट: भारत में रजिस्टर्ड मतदाताओं की कुल संख्या 97 करोड़ है.

ADR के वकील: इसमें चिप्स को प्रोग्राम किया जा सकता है. ज्यादातर यूरोपीय देश ईवीएम से पेपर बैलेट पर वापस लौट गए हैं.

कोर्ट: उस बात पर मत जाइए

ADR के वकील: यह विवादित नहीं है, तथ्य है.

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कोर्ट में द क्विंट की रिपोर्ट का जिक्र 

वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा, ईसीआई का कहना है कि सभी वीवीपैट पर्चियों को गिनने में 12 दिन लगेंगे. उन्होंने आगे कहा कि, ब्लूमबर्ग-क्विंट की एक रिपोर्ट है जिसके अनुसार 373 निर्वाचन क्षेत्रों में ईवीएम और वीवीपैट पर्चियों के बीच मिसमैच था.

हम क्या कह रहे हैं कि वीवीपैट से पर्ची गिरती है और हम उस पर्ची को इकट्ठा करते हैं.. और देखते हैं कि हमने किसे वोट दिया है. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर 2019 के चुनाव के डेटा का क्विंट ने विश्लेषण किया और पाया कि 373 निर्वाचन क्षेत्रों में मिसमैच था. इस डेटा को बाद में वेबसाइट से हटा लिया गया था.
वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन

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