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अफगानिस्तान में तालिबानी हिंसा के दौर में सीमांत गांधी क्यों आ रहे याद?

Bharat Ratna Frontier Gandhi: सीमांत गांधी महात्मा गांधी के मित्र और उनके समर्थक थे

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>स्वतंत्रता सेनानी सीमांत गांधी</p></div>
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स्वतंत्रता सेनानी सीमांत गांधी

India Security Press, Nashik

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आज जब अफगानिस्तान में कट्टरपंथी अपने पंथ के नाम पर हिंसा कर रहे हैं, तब उसी पंथ की शिक्षाओं की राह पर चलने वाले एक महान शख्सियत का नाम बरबस याद आ रहा है. जिन्होंने भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अत्याचारों का अहिंसक विरोध करते हुए अपने जीवन के 35 से ज्यादा वर्ष जेलों में बिताए. जो महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला से कहीं ज्यादा हैं और यह सब बस इसलिए कि आने वाला 'कल' बेहतर हो सके.
हम बात कर रहे हैं भारत रत्न खान अब्दुल गफ्फार खान की. जिन्हें सरहदी गांधी, सीमांत गांधी, बच्चा खां और बादशाह खान के नामों से जाना जाता है. सीमांत गांधी महात्मा गांधी के मित्र और उनके समर्थक थे.

अफगानिस्तान और सीमांत गांधी

पश्तूनों को जागृत करने और उनमें नया जज्बा भरने के लिए सीमांत गांधी ने 2015 से 2018 तक लगभग 500 गांवों की यात्रा की, जिसके बाद लोग उन्हें 'बादशाह खान' कहने लगे थे. उन्होंने 1929 में पठानों को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने के लिए 'खुदाई खिदमतगार' नामक संस्था बनाई, जिसका अर्थ होता है 'ईश्वर के सेवक'.
अहिंसा और सत्याग्रह से ओतप्रोत उनका व्यक्तित्व इतना करिश्माई था कि देखते ही देखते उनके संगठन से लगभग 1 लाख लोग जुड़ गए. जिसके माध्यम से उन्होंने शांतिपूर्ण ढंग से अंग्रेजी सेना और दमनकारी पुलिस का विरोध किया और अपने विरोध के अलग अंदाज की वजह से 'खईबर-पख्तूनख्वा' में राजनीतिक शक्ति के केंद्र बन गए.

बादशाह खान जब जलालाबाद (अफगानिस्तान) में देश निर्वासन के दिन काट रहे थे तब भी वे कबायली पठानों को संगठित करने में लगे थे. आज भी अफगानिस्तान के तीसरे सबसे बड़े शहर जलालाबाद के अफगानों के दिल में भारत बसता है. जलालाबाद में सीमांत गांधी का मकबरा बना हुआ है.

बंटवारे का करते रहे हमेशा विरोध

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अहभ रोल निभाने वाले विनम्र स्वभाव के धनी सीमांत गांधी 'मुस्लिम लीग' के बड़े नेताओं में से एकमात्र मुस्लिम नेता थे, जिन्होंने हमेशा भारत-पाकिस्तान के बंटवारे का विरोध किया. दरअसल उनका जीवन पश्तूनों के उत्थान के लिए समर्पित था. वे हमेशा चाहते थे कि पश्तून बहुल सीमांत क्षेत्र या तो स्वतंत्र रूप से पश्तूनिस्तान के रूप में रहे या अफगानिस्तान में मिला दिया जाए.

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सब्र और नेकी का हथियार

गफ्फार खान हमेशा मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर चलने वाले व्यक्ति थे, वो प्रत्येक खुदाई खिदमतगार से कहते कि, मैं आपको एक ऐसा हथियार देता हूं, जिसके सामने दुनिया की कोई पुलिस और सेना नहीं टिक सकती, वह है सब्र और नेकी का हथियार. यह हथियार मोहम्मद साहब का दिया हुआ है.

बादशाह खान भले से मोहम्मद साहब की शिक्षाओं का प्रसार प्रचार किया करते थे लेकिन उनमें सभी धर्मों के प्रति उतनी ही आस्था थी. 1930 की बात है, जब सत्याग्रह आंदोलन के कारण वे गुजरात की जेल में भेजे गए.
वहां पर हिन्दू, मुस्लिम और सिखों में एकता की भावना लाने के लिए गीता, कुरान और गुरु ग्रंथ साहब आदि ग्रंथों का अध्ययन और अध्यापन किया था.

इनपुट- ('गांधी के हमराही सीमान्त गांधी', किताब)

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Published: 17 Aug 2021,11:15 PM IST

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